भारत के राष्ट्रपति का यूरोन्यूज को साक्षात्कार
यूरोन्यूज (सुश्री शिएरा रीड) : राष्ट्रपति महोदय, अपने आवास पर स्वागत करने तथा इस वैश्विक वार्ता में भागीदारी करने के लिए आपका धन्यवाद। हमें उम्मीद है कि इस वार्ता से वर्तमान भारत के लिए कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर थोड़ा प्रकाश पड़ेगा।
आप छह दशकों तक भारतीय राजनीति में अग्रिम मोर्चे पर रहे हैं। आपने आधुनिक भारतीय राष्ट्र के निर्माण में भागीदारी की और अब पिछले वर्ष से इसके राष्ट्रपति के रूप में, आपके पास इसकी भावी चुनौतियों पर एक अनूठी दृष्टि है।
आइए, भावी कार्यक्रम पर एक नज़र डालें। आप यूरोप के हृदय ब्रुसेल्स की यात्रा शुरू करने वाले हैं। आपका इस यात्रा का क्या मिशन है?
भारत के राष्ट्रपति (श्री प्रणब मुखर्जी) : सबसे पहले मैं, इस मनोरम शहर ब्रुसेल्स की यात्रा के लिए आमंत्रित करने हेतु महामहिम नरेश के प्रति अपना गहरा आभार प्रकट करता हूं।
हालांकि मैं पहले भी यहां आया था क्योंकि यह आर्थिक और अन्य बहुत सी गतिविधियों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है, परंतु राष्ट्राध्यक्ष के रूप में, गणतंत्र के राष्ट्रपति के रूप में संभवत: मेरी यह यात्रा किसी भारतीय राष्ट्रपति की पहली यात्रा है। वास्तव में, हाल ही में हमने उच्च स्तरीय सम्पर्क आरंभ किए हैं। हमें 2008 के आसपास महामहिम एलबर्ट-II का स्वागत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वर्तमान महामहिम नरेश फिलिप युवराज के रूप में आए थे और उन्होंने भारत-बेल्जियम द्विपक्षीय संबंध के बहुत से पहलुओं पर भारतीय नेताओं के साथ विचार-विमर्श के लिए एक बड़े शिष्टमंडल का नेतृत्व किया था। इसलिए, मैं बेल्जियम के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा।
यूरोन्यूज : आप एक सांस्कृतिक महोत्सव यूरोपालिया के लिए आ रहे हैं, इस शानदार महोत्सव में समग्र भारतीय संस्कृति और कला का प्रदर्शन होगा।
भारत के राष्ट्रपति : बिल्कुल। और यह हमारे संबंधों का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। जैसा कि आप जानते हैं, भारत दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता है। यद्यपि एक राष्ट्र के रूप में हमारा अनुभव तुलनात्मक तौर से नया है, परंतु भारत प्राचीनतम सभ्यता का घर है।
यूरोन्यूज : (अस्पष्ट) ... बहुत-बहुत वर्ष पीछे तक।
भारत के राष्ट्रपति : और भारतीय सभ्यता का अहम तत्त्व इसका बहुलवादी होना है। बहुलवाद का सम्मान, विविधता की स्वीकार्यता, इस विविधता के बीच मौजूदा एकता और सामंजस्य को ढूंढ़ने का प्रयास भारतीय संस्कृति की प्रवृत्तियां हैं। अत:, इस महोत्सव में, जिसमें हम भाग ले रहे हैं, मेरे ख्याल से यह एक बड़ी भागीदारी है क्योंकि भारत के अलग-अलग हिस्सों के 200 से अधिक कलाकार इसमें भाग लेंगे। सात अति महत्त्वपूर्ण प्रदर्शनियां, 15 संगीतमय प्रस्तुतियां, विख्यात कलाकारों के नेतृत्व में सात नृत्य दल इसमें हिस्सा ले रहे हैं। और हम अपनी संस्कृति की गहनता प्रकट करेंगे जो यह संदेश देती है जिसके बारे में मैंने अभी कहा, अनेकता में एकता, भिन्नता में सामंजस्य।
यूरोन्यूज : यह एक महान संदेश है। परंतु आप ऐसे वक्त पर यूरोप आ रहे हैं जब भारत और यूरोपीय संघ बड़ी आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे हैं। हमने यूरो संकट के बारे में काफी सुना है। परंतु भारत की समस्याओं ने हमें हैरान किया है। आप तथाकथित ब्रिक्स देशों का एक भविष्य, श्रेष्ठ औद्योगिक शक्तिपुंज और उसमें से एक देश माने जाते हैं। वहां क्या हुआ?
भारत के राष्ट्रपति : सबसे पहले मैं इस मुद्दे पर अपने विचार प्रकट करना चाहता हूं। मुझे इसकी पूरी जानकारी है क्योंकि मैं भी खुद इसमें शामिल था।
जब 2008 में पहला वित्तीय संकट शुरू हुआ, वास्तव में भारत में इसका असर देरी से पड़ा परंतु उस समय मुझे वित्त मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी उठानी पड़ी क्योंकि मेरे पूर्ववर्ती और परवर्ती, श्री चिदंबरम उस समय कुछ तात्कालिकता की वजह से वित्त मंत्रालय से गृह मंत्रालय चले गए। और विदेश मंत्री के रूप में महती जिम्मेदारी के साथ-साथ, मुझे पुराने अनुभव के आधार पर वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त भार भी उठाना पड़ा। मैंने 70 और 80 के दशक के दौरान अनेक वर्षों तक श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में उनके वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया। इसलिए मुझे इस समस्या से निपटना पड़ा।
और मेरी तत्काल चिंता जैसा कि आपने कहा है, भारत की बड़ी समस्या थी जो वाकई बड़ी थी। भारत का सकल घरेलू उत्पाद 9 प्रतिशत से ज्यादा के आसपास की तेज दर से बढ़ रही थी। परंतु जब मैंने काम संभाला तो पाया कि पखवाड़े के आधार पर सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट आ रही है। परंतु उससे पहले, जी-20 देशों में अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ पहली शिखर बैठक हुई। और इसके परिणामस्वरूप समस्या का समाधान सामने आया। जी-20 में यह सर्वसम्मति हुई कि वर्तमान समस्या के समाधान के लिए प्रोत्साहन पैकेज देने की जरूरत है।
पीछे मुड़कर हम कह सकते हैं कि हम उस समय संकट की गहराई को नहीं समझ पाए। इसलिए, हमने अन्य बहुत से देशों की तरह यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहन पैकेज मुहैया करवाया कि तेजी से गिर रहे सकल घरेलू उत्पाद से होने वाली बेरोजगारी रुक जाए।
स्पष्ट कहा जाए तो हम उस झटके से उबर नहीं पाए। मैं भारत की ही नहीं पूरी दुनिया की बात कर रहा हूं। भारत में हमें कुछ अस्थायी राहत मिली क्योंकि उस वर्ष हमने 9 प्रतिशत के बजाय 6.7 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद दर्ज किया। परंतु बाकी दो वर्षों में, हमने 8.7 और 9.3 की विकास दर हासिल की। परंतु एक बार फिर, इसमें गिरावट शुरू हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि समस्या जड़ में थी। और इस जड़ में यूरोजोन तथा बहुत से उभरते हुए देश तथा विकसित देशों की समस्याओं में यह समानता है कि हम उधार राशि के बराबर संसाधन नहीं जुटाए जा सके।
इसलिए, यूरोप के चार छोटे देशों पुर्तगाल, आयरलैंड और स्पेन... (अस्पष्ट) में लक्षण दिखाई दे रहे थे और यह अत्यधिक सरकारी ऋण है। इस अंतर को कैसे कम किया जाए? इसके लिए बुनियादी सुधारों की जरूरत थी। बहुत से यूरोपीय देशों ने जोखिम उठाकर भी इन्हें लागू किया। मैं उनको नमन करता हूं। उन्होंने चुनाव हारने का जोखिम लेने की राजनीतिक बुद्धिमत्ता थी परंतु उन्होंने आवश्यक सुधारों को अपनाया।
प्रश्न : आपके विचार से क्या भारत ऐसा करेगा?
भारत के राष्ट्रपति : भारत ने पहले ही ऐसा करना शुरू कर दिया है।
प्रश्न : परंतु अभी सुधारों की और जरूरत है, आप क्या सोचते हैं?
भारत के राष्ट्रपति : मैं इसी मुद्दे पर आ रहा हूं। हमें भारत की जनसंख्या के आकार, असमान विकास के स्तर को भी ध्यान में रखना होगा। बहुत से उन्नत देशों का विनिर्माण क्षेत्र अत्यंत विकसित है। सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र और विनिर्माण क्षेत्र का बड़ा योगदान है। परंतु भारत में हम इस मॉडल को नहीं अपना सकते क्योंकि मुझे 1.2 अरब से ज्यादा लोगों का पेट भरना है।
इसी प्रकार, मुझे कृषि पर जोर देना होगा, मुझे ग्रामीण भारत के विकास पर भी जोर देना होगा जिसका हमारी 1.2 अरब की विशाल जनसंख्या में 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। इसलिए हमें अपनी विकासात्मक कार्यनीति कुछ हद तक देश विशिष्ट बनानी होगी क्योंकि जैसा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक देश की समस्याएं अलग होती हैं जिन्हें वहां की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के संदर्भ में हल किया जाना चाहिए।
तीसरी बात, यूरोजोन की समस्या को सुलझाना है, जैसा कि आपको मालूम है, निवर्तमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के निदेशक डोमिनिक के कार्यकाल में भी उपाय लागू किए गए थे। उनके बाद क्रिश्चिन लेगार्डे के कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के माध्यम से पैकेज दिया गया। परंतु वित्त मंत्रियों के शिखर सम्मेलन के अलावा, जी-20 की आधा दर्जन बैठकों में, मैंने भारत की ओर से भाग लिया और अपने पूरा सहयोग का आश्वासन दिया क्योंकि मेरा आर्थिक विकास और प्रगति यूरो के साथ घनिष्ठता से जुड़ी हुई है। यूरोप भी यूरोप के लिए ही नहीं बल्कि पूरी विश्व अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर है।
पहले मैं एक छोटा सा उदाहरण आपको देता हूं। यूरोप भारत का दूसरा विशालतम निर्यात गंतव्य है, विदेशी निवेश का दूसरा सबसे विशाल स्रोत है। इसीलिए, और जैसा कि हुआ है, जो प्रमुख कारणों में से भी है, जब इन उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मांग कम हुई, चाहे वह उत्तरी अमरीका हो, जापान हो या यूरोप हो, जिनका हमारे निर्यात और विदेशी निवेश में बड़ा हिस्सा है, उनकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई। स्वाभाविक रूप से इसका हम पर भी असर होगा। परंतु हमें इस पर ध्यान देना होगा तथा साथ ही अपनी घरेलू समस्याओं पर भी ध्यान देना होगा।
परंतु मैं सहमत हूं कि वर्तमान संदर्भ में जबकि दुनिया आर्थिक रूप से एक होती जा रही है और विश्व अर्थव्यवस्था अब सपना नहीं बल्कि एक हकीकत है, तो हमें मिलकर कार्य करना होगा, परंतु इसके लिए देश विशेष की जरूरतें देखनी होंगी और किसी खास स्थिति पर ध्यान देने के लिए कार्यनीति बनानी होगी।
यूरोन्यूज : सहयोग के बारे में बात करें तो यूरोपीय संघ तथा भारत कार्यनीतिक साझीदार हैं और 2007 से मुक्त व्यापार और निवेश समझौते पर बातचीत चल रही है। यदि यह पूरी हो जाती है तो इससे 1.8 बिलियन लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आपके ख्याल से हम अब इस काम को कैसे शुरू कर सकते हैं?
भारत के राष्ट्रपति : वास्तव में अब मैं सीधे इसका उत्तर या इस पर कार्रवाई नहीं कर सकता है। परंतु मंत्रालय के मेरे सहयोगियों को मेरी यह सलाह होगी कि बातचीत के पंद्रह दौर पूरे हो चुके हैं। मैं वित्त मंत्रालय में था तो मैं भी इस पर बारीकी से नज़र रख रहा था। हम बहुत से क्षेत्रों में समझौते कर चुके हैं। असहमति के केवल कुछ क्षेत्र हैं। हमें इन असहमतियों को कम करना चाहिए तथा व्यापक आर्थिक साझीदारी करारों को सम्पन्न करना चाहिए जिससे हम, जैसा कि आपने कहा है, 1.8 बिलियन लोगों को लाभ पहुंचा सकते हैं।
यूरोन्यूज : क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जिसमें आपको अभी भी भारत में मौजूद व्यापक लालफीताशाही से निपटना होगा या निर्यात के नियंत्रण की जरूरतों...
भारत के राष्ट्रपति : मैं महसूस करता हूं कि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें अवधारणा संबंधी मतभेद है। परंतु ऐसा आसियान में हुआ है, बहुत से देशों के साथ द्विपक्षीय स्तर पर हुआ है। परंतु आसियान के साथ ऐसा करना या सार्क के ढांचे के भीतर ऐसा करने का प्रयास करना एक जैसा नहीं है, यूरोपीय संघ सबसे अहम है और इसीलिए जैसा कि मैंने जिक्र किया, हम 2007 से बातचीत के पंद्रह दौर पूरे कर चुके हैं। असहमति के क्षेत्र हैं परंतु मैं ज्यादा ब्योरे में नहीं जाना चाहता। मैं जिस बात पर जोर देना चाहता हूं वह यह है कि हमें निश्चय करना चाहिए और देर सबेर समझौता कर लेना चाहिए।
यूरोन्यूज : जी हां। हमने पिछले बारह महीनों के दौरान, एक अन्य मुद्दे, भारत में महिलाओं के प्रति हिंसा के बारे में बहुत कुछ सुना है। क्या आप सहमत हैं कि मीडिया हमें असली तस्वीर दिखा रहा है क्योंकि विदेश में भारत की काफी खराब तस्वीर पेश की जाती है? आपके विचार से यह हमें असली और सही तस्वीर दिखा रहा है या इस कहानी का कोई अन्य पहलू भी है?
भारत के राष्ट्रपति : एक बात ध्यान में रखनी होगी। ये कुछ घटनाएं परेशान करने वाली हैं जैसे कि पिछले वर्ष की घटना है। मैंने कई बार कहा है कि इसने राष्ट्रीय चेतना को हिला दिया। इस घटना ने एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों को प्रभावित किया, परंतु इसने राष्ट्र की चेतना को हिला दिया। इनके बाद बहस और चर्चाएं हुई हैं। लेकिन मीडिया का यह प्रदर्शन काफी हद तक इसलिए है क्योंकि भारतीय, विशेष कर ग्रामीण महिलाएं आमतौर पर संकोची होती हैं, परंतु इस प्रकार की घटनाओं को सहन करना और (अस्पष्ट)... पहले वे इसकी रिपोर्ट नहीं करते थे। परंतु आजकल वे इसकी पूरी रिपोर्ट करते हैं। एक तरह से यह सही है। परंतु इस समय इससे भारत की विकृत छवि पेश की जा रही है। मगर हम सच्चाई को अनदेखा नहीं कर सकते। अगर ऐसा होता है तो इस पर ध्यान देना होगा और यह मानना होगा कि ऐसा हुआ है।
परंतु मैं आपको विश्वास दिला सकता हूं कि हम पहले ही जो भी कदम उठा चुके हैं और जिस पर हम अभी चिंतन कर रहे हैं, हमारे समावेशी विकास का प्रमुख उद्देश्य है, सशक्तीकरण, कमजोर तबकों का सशक्तीकरण, महिलाओं का सशक्तीकरण। हमारे स्थानीय निकायों में प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, संबंधित क्षेत्र के आर्थिक विकास सहित स्थानीय प्रगति के लिए निर्णय की प्रक्रिया में तीस लाख से अधिक प्रतिनिधि भाग लेते हैं। एक तिहाई सीट केवल महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इस समय जैसा कि मैंने पहले कहा, इन स्थानीय निकायों में 1.2 मिलियन से ज्यादा महिला मुखिया अपनी शक्ति का प्रयोग कर रही हैं।
यूरोन्यूज : जी हां, क्योंकि यह सच है कि आपको महिलाओं को और अधिक ताकत, और शिक्षा तथा और अधिकार देने हैं। पुरुष की बात करें तो क्या उन्हें कुछ और शिक्षित करने की जरूरत नहीं है?
भारत के राष्ट्रपति : जागरूकता, शिक्षा और सर्वसम्मति पैदा करने की वाकई जरूरत है। इसलिए... (अस्पष्ट)... और मैंने अपने देशवासियों से भी कहा कि वे हमारे नैतिकता की दिशा का फिर से निर्धारण करें क्योंकि भारत को हमेशा महिलाओं के सम्मान के लिए जाना जाता है। हम उनकी पूजा करते हैं। हमारे महत्त्वपूर्ण देवी-देवता महिलाएं हैं।
यूरोन्यूज : और आपके देश की पहली महिला नेता इंदिरा गांधी थीं जिनके आप बेहद निकट थे। और आपसे पहले आपके वर्तमान पद पर एक महिला थीं।
भारत के राष्ट्रपति : ऐतिहासिक रूप से भी मैं कह सकता हूं कि एक महिला बहुत शक्तिशाली साम्राज्ञी थी। दिल्ली पर रजिया सुल्तान ने शासन किया था। एक अन्य महत्त्वपूर्ण मुगल शासक जहांगीर के शासन के दौरान उसकी पत्नी नूरजहां वास्तविक शासक थी।
यूरोन्यूज : परंतु शिक्षित शहरी महिला और ग्रामीण महिलाओं के बीच एक बड़ा अंतर है और इस अंतर को समापत करने की जरूरत है।
भारत के राष्ट्रपति : जो उदाहरण मैंने आपको दिए हैं, इस अंतर को ग्रामीण इलाकों में तेजी से समाप्त किया जा रहा है क्योंकि ग्रामीण इलाकों की स्थानीय सरकार में, जैसा कि मेंने जिक्र किया था, 1.2 मिलियन महिला मुखिया स्थानीय यूनिट चला रही हैं। वे अंग्रेजी पढ़ी-लिखी नहीं हैं। उनमें से बहुत सी शिक्षित हैं, लेकिन ज्यादातर का पालन-पोषण भारतीय परंपरा के अनुसार हुआ है। उन्हें पता है कि कैसे शासन करना है, अपने निर्णयों को अमल में लाना है, कैसे सही निर्णय लेने हैं, और वे ऐसी ही कर रही हैं। इसी तरह, जैसा कि मैंने कहा था, एक राष्ट्र के तौर पर हमें इस पर ध्यान देना है और इसे सही करना है।
यूरोन्यूज : एक दशक की शांति के बाद, हमने पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर, हिंसा में बढ़ोतरी देखी है। हम जानते हैं कि यह खबर आजकल मुख पृष्ठों की सुर्खी बनी हुई है। राष्ट्रपति के रूप में, आप सेना के मुख्य कमांडर, सर्वोच्च कमांडर हैं। आपकी राय में, आप हिंसा में वृद्धि को कैसे रोक सकते हैं, और क्या आपको अपने जीवनकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की उम्मीद दिखाई देती है?
भारत के राष्ट्रपति : हमारे प्रधानमंत्री ने सुंयक्त राष्ट्र की आम सभा में एक बहुत अहम बयान दिया है। उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, जिन्होंने एक दिन पहले इसी मंच का प्रयोग किया था, के साथ सहयोग का हाथ बढ़ाया है। प्रधानमंत्री ने ध्यान दिलाया है कि भारत शांति, स्थिरता की बहाली के लिए तथा द्विपक्षीय विचार-विमर्श के जरिए जम्मू और कश्मीर की समस्या सहित सभी बकाया मुद्दों को सुलझाने के लिए पाकिस्तान के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है।
1971 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, तो भारत ने पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया था, जिसे शिमला समझौते के तौर पर जाना जाता है। भारत ने वे सभी इलाके छोड़ दिए थे जो भारतीय सेना ने युद्ध के दौरान कब्जे में ले लिए थे। इक्यानवे हजार बंदी सैनिकों, युद्ध बदियों को रिहा कर दिया गया था। यह केवल सद्भावना की अभिव्यक्ति थी जो हमारी विदेश नीति में निहित है कि हमारी कोई क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षा नहीं है, न ही हमें किसी दूसरे देश पर अपनी विचारधारा लादने की महत्वाकांक्षा है और न ही हमारा कोई वाणिज्यिक हित हैं।
यूरोन्यूज : भारत हमेशा से ऐसा रहा है। प्राचीन भारतीय इतिहास भी ऐसा ही रहा है।
भारत के राष्ट्रपति : हां, इसलिए हम अपने पड़ोसियों के साथ बेहतर रिश्ते कायम रखना चाहते हैं। जब मैं विदेश मंत्री था, मैं अक्सर कहा करता था कि चाहूं तो अपने मित्र बदल सकता हूं परंतु मैं चाहकर भी अपने पड़ोसी नहीं बदल सकता। पड़ोसी जैसा भी है, मुझे उसे उसी रूप में स्वीकार करना होगा। वह मेरा पड़ोसी है। मुझे वह पसंद है या नहीं, इस बात की कोई अहमियत नहीं है। इसलिए मुझे यह फैसला करना है कि मुझे अपने पड़ोसी के साथ तनाव से रहना है या शांति से। हमने शांति को चुना।
इसीलिए, मैं खुद पाकिस्तान गया। जब बेनजीर की हत्या हुई, मैंने वहां जाने की पेशकश की परंतु उनके जनरल मुशर्रफ के शासनकाल के दौरान, उनकी अन्य घरेलू समस्याएं थीं। और हमारे नवाज शरीफ के साथ अच्छे व्यक्तिगत रिश्ते हैं और प्रधानमंत्री उनसे मिलने वाले हैं। लेकिन एक बात को समझना होगा। कोई भी देश अपनी क्षेत्रीय अखंडता के साथ समझौता नहीं कर सकता। यह मुमकिन नहीं है।
दूसरी चीज आतंकवाद है। आतंकवादी गतिविधियों को खत्म किया जाना चाहिए। राष्ट्र द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसलिए हम बार-बार कहते हैं कि कृपया आप अपने क्षेत्र में आतंकवादी संगठनों को समाप्त कर दें।
यूरोन्यूज : भारत कहता है कि यह राष्ट्र प्रायोजित आतंकवाद है और वास्तव में पाकिस्तान का कहना है कि यह राष्ट्र प्रायोजित आतंकवाद नहीं है।
भारत के राष्ट्रपति : हो सकता है कि न हो। परंतु गैर सरकारी तत्त्वों का क्या, वे इन शब्दों का प्रयोग करते हैं, तब मैं इसका उत्तर यह कहकर देता हूं कि गैर सरकारी तत्त्व आसमान से नहीं उतरे हैं। गैर सरकारी तत्त्व आपके नियंत्रण वाले इलाके से आ रहे हैं। अभी नहीं, 2004 में, पाकिस्तान सहमत था कि वह अपने इलाकों का इस्तेमाल भारत विरोधी ताकतों को नहीं करने देगा।
यूरोन्यूज : भारत में अगले वसंत में मतदान होने जा रहे हैं। प्रमुख आम चुनाव नजदीक हैं। मैं जानता हूं कि अपने पद की वजह से आप दलगत राजनीति के बारे में बातचीत नहीं कर सकते। परंतु आप एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं। आपने भारतीय राजनीति में बहुत कुछ देखा है। इसलिए क्या आप संक्षेप में मुझे बता सकते हैं कि ऐसे कौन से मुद्दे हैं जिनसे चुनाव जीते या हारे जाएंगे?
भारत के राष्ट्रपति : विभिन्न दलों द्वारा अनेक मुद्दे सामने लाए जा रहे हैं। भारत एक बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली, विश्व का विशालतम जीवंत लोकतंत्र है। हमारे लगभग 800 मिलियन मतदाता हैं और उनमें से 60 प्रतिशत अपने मत का प्रयोग करते हैं। मुझे भारतीय मतदाताओं के राजनीतिक ज्ञान में बहुत आस्था और विश्वास है। वे जानते हैं कि उनके द्वारा चुना गया कौन-सा दल उनके हितों, आर्थिक विकास, समावेशी विकास को आगे बढ़ाएगा, कानून और व्यवस्था को कायम रखेगा, आंतरिक सुरक्षा और बाहरी खतरों से उनकी हिफाजत करेगा। इसलिए, भारतीय मतदाताओं को अपनी जिम्मेदारियां पता है, और मुझे विश्वास है कि वे अपने अधिकारों का प्रयोग समझदारी से करेंगे।
यूरोनयूज : परंतु आपने जिन मुद्दों का अभी उल्लेख किया है, क्या वे उन पर विचार करके अपना वोट डालेंगे? क्या वे अर्थव्यवस्था, समावेशिता और रोजगार के बारे में सोचकर मतदान करेंगे या वे अपने पेट का हवाला देकर मतदान करेंगे? आपने प्रत्येक को भोजन मुहैया करवाने की एक बहुत विशाल भोजन की योजना बनाई, क्या यह तरीका भी...
भारत के राष्ट्रपति : बिल्कुल नहीं, कुछ ऐसे कार्यक्रम हैं जिन पर चर्चा की जाएगी और यह हमारे आर्थिक विकास की कार्यनीति है। जब हम समावेशी विकास के बारे में बात कर रहे थे तो यह खोखली बात नहीं थी। हम समावेशी विकास कैसे कर सकते हैं? हम हकदारी के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाकर और कानून बनाकर, कानूनी गारंटी के जरिए हकदारी देकर लोगों को सशक्त बनाकर समावेशी विकास कर सकते हैं। हमने ग्रामीण क्षेत्रों में काम मुहैया करवाकर यह गारंटी दी है। हमने 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को शिक्षा की गारंटी दी है। हमने भारतीयों का इस प्रकार से सशक्तीकरण किया है। उनमें से दो तिहाई को जो 1.2 अरब लोगों का 66 प्रतिशत है, को सस्ती कीमत पर भोजन की कुछ मात्रा कानूनी गारंटी द्वारा, जिसे खाद्य सुरक्षा कहा जाता है, उपलब्ध करवाई गई है। वास्तव में, इन महत्त्वपूर्ण अग्रणी कार्यक्रमों पर बहस चल रही है, तथा लोग आम चुनावों में अपने फैसले को सामने लाएंगे।
यूरोन्यूज : मैंने इसके बारे में इसलिए कहा क्योंकि मैंने द इकनोमिस्ट में पढ़ा था, उसमें इस योजना की आलोचना की गई थी क्योंकि इसमें काफी लागत, सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत आएगी। इस पत्रिका के मुताबिक, 70 प्रतिशत लोगों को पांच किलो अनाज बांटने की बजाय अगर इस योजना को स्वच्छता, स्वास्थ्य, सड़क निर्माण के लिए बनाया जाता तो इस धन को बेहतर ढंग से खर्च किया जा सकता था।
भारत के राष्ट्रपति : एक योजना दूसरी योजना को रद्द नहीं करती। कोई भी स्वच्छता को बढ़ने से नहीं रोक सकता, कोई भी स्वास्थ्य, शिक्षा को बढ़ने से नहीं रोक सकता। खाद्य सुरक्षा बिल जिसे पारित कर दिया गया है, के अलावा 1.2 मिलियन से ज्यादा प्राथमिक स्कूलों में हम 10.8 करोड़ लोगों को भोजन मुहैया करवा रहे हैं। एक करोड़ 10 मिलियन के बराबर होता है। 10.8 करोड़ बच्चों को नियमित भोजन दिया जा रहा है।
इसलिए, मैं जो बात कहना चाहता हूं, वह है कि हम समावेशी विकास प्राप्त करना चाहते हैं, और समावेशी विकास के लिए भोजन, शिक्षा होनी चाहिए, स्वास्थ्य और स्वच्छता होनी चाहिए। हमें समावेशी विकास करना होगा और समावेशी विकास भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता प्रदान करके ही हासिल की जा सकती है, आखिरकार भारत के नीति निर्माताओं को 1.2 अरब लोगों का ध्यान रखना है, जो कि एक विराट कार्य है। इसलिए, हमारे विकासात्मक मॉडल को अन्य देशों के विकासात्मक मॉडलों के अनुसार नहीं गढ़ा जा सकता। यह भारत में मौजूद सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार होगा।
यूरोन्यूज : आपके विचार से, इस चुनाव में जीत के लिए एक करिश्माई नेता का होना जरूरी है?
भारत के राष्ट्रपति : कोई नेता करिश्माई है या नहीं, यह वोट हासिल करने पर निर्भर करता है। करिश्मा इसके द्वारा आजमाया जाता है। मैं यह बात एक राजनीतिक कार्यकर्ता की हैसियत से कर रहा हूं कि हम चुनाव के दौरान लहर या हवा की बात करते हैं। परंतु लहर या हवा का पता तभी चलता है जब यह गुजर जाती है। यह कब आ रही है या कब बह रही है, कोई नहीं बता सकता कि हवा कहां बह रही है या लहर कहां चल रही है।
यूरोन्यूज : आइए, दूसरे प्रश्न पर आते हैं। मैं अब आपकी अद्भुत ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बातचीत करना चाहता हूं। इंदिरा गांधी के बाद, यदि कोई इतिहास की किताब के हर पन्ने से गुजरा है, तो वह आप हैं। हमारे पास इतिहास पढ़ने के लिए समय नहीं है। परंतु मुझे एक बात बताइए। यदि आज भारत के संस्थापक गांधी, नेहरू यहां होते तो क्या वे यह देखकर संतुष्ट होते?
भारत के राष्ट्रपति : बिल्कुल। जब हम आजाद हुए तो एकता नहीं थी। जब हमने संविधान सभा में अपना संविधान बनाया तो एक गंभीर बहस हुई थी। इस बंटवारे के समझौते के परिणामस्वरूप अलग हुए भारत के एक हिस्से ने अपने संविधान में एक धर्म को अपना राष्ट्र धर्म बना घोषित कर दिया। उसी संदर्भ में, हमने पंथनिरपेक्ष संविधान अपनाया। भारत के संविधान की उद्देशिका में कहा गया है, ‘एक संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य।’ यह भारत राष्ट्र का चरित्र है। और इस राष्ट्र के निर्माण के लिए, भारत को संघ के रूप में एकताबद्ध करने, और इस मजबूत बनाने के लिए...
जब भारत स्वतंत्र हुआ, उससे पचास वर्ष पूर्व, भारतीय अर्थव्यवस्था की वार्षिक विकास की दर सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत थी। 1900 से 1950 तक, भारतीय अर्थव्यवस्था एक प्रतिशत की दर से बढ़ी। अगले उनतीस वर्षों में यह 3.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी। परंतु अगले 20 वर्षों में इसका औसत विकास छह प्रतिशत से अधिक था। पिछले दशक में यह लगभग 8 प्रतिशत था। हम मुश्किल से कोई विनिर्माण कर सके। परंतु पिछले वर्षों के दौरान, हमने विनिर्माण का मजबूत आधार निर्मित किया। साक्षरता की दर एक तिहाई से कम थी। आज यह संयुक्त राष्ट्र साक्षरता सहित तीन-चौथाई से अधिक है। रोग, औसत आयु प्रत्याशा 30 से कम थी। आज यह दुगुने से भी ज्यादा है।
इस प्रकार, ये ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर हमारे राष्ट्र निर्माता वास्तव में संतुष्टि अनुभव करेंगे। लेकिन इसी तरह, वे संतुष्टि महसूस नहीं करेंगे क्योंकि हमें और अधिक ऊंचाई पर पहुंचना है जिसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं।
यूरोन्यूज : मैं एक ऐसे राष्ट्र से आई हूं जो पूरी तरह युवा है। मैं इतालवी हूं। जब गारिबाल्डी और केवोर ने इटली का निर्माण किया, उनका कहना था कि अब एक मुश्किल काम इतालवी लोगों को तैयार करना है। इटली को संगठित करना नहीं बल्कि नागरिक तैयार करना, उन्हें इतालवी होने का अहसास करवाना। और भारत के लिए भी कुछ ऐसा ही है। जैसा कि आपने बताया, स्वतंत्रता से पहले, राज्य संगठित नहीं थे। आपके ख्याल से, क्या आज आपने भारतीय लोगों को राष्ट्र का हिस्सा होने का अहसास करवा दिया है?
भारत के राष्ट्रपति : हां, काफी हद तक।
यूरोन्यूज : आपको कोई पछतावा है?
भारत के राष्ट्रपति : नहीं।
यूरोन्यूज : आपको क्या बात रात में जगाए रखती है?
भारत के राष्ट्रपति : मैं उस ऊंचाई को देखना चाहता हूं जिसे हम हासिल करना चाहते हैं, हम उस ऊंचाई को जल्द हासिल कर लेंगे। भारत एक सबसे समृद्ध, विकसित देश के रूप में ऐसे राष्ट्रों की पंक्ति में अपना स्थान प्राप्त कर लेगी, जो मानव अधिकारों की रक्षा करता है, जो एक-एक को विकास में शामिल करता है, यही हमारा प्राचीन सिद्धांत है।
यूरोन्यूज : एक और बात ...(अस्पष्ट)... मेरे विचार से आपका सोशल मीडिया, यह नई चीज, टिवट्र अकाउंट नहीं है। परंतु हमने शुरू कर दिया है...(अस्पष्ट)... एक अनुरोध ताकि वे अपने सवाल पूछ सकें। और कुछ लोगों ने आपसे सवाल पूछने के लिए हमसे अनुरोध किया है। दिल्ली के अर्थशास्त्र के एक भारतीय युवा विद्यार्थी तन्मय कुमार आपसे सिर्फ एक सवाल पूछना चाहते हैं। क्या भारत में राजनीति का तरीका समय के साथ बदल गया है, और आपके ख्याल से सबसे स्पष्ट बदलाव क्या हुआ है?
भारत के राष्ट्रपति : भारत में एक बड़ा बदलाव आया है। एक अति पिछड़े हुए देश से बदलकर भारत एक अग्रणी, उभरती हुई, विकसित अर्थव्यवस्थाओं के समूह में शामिल हो गया है।
यूरोन्यूज (सुश्री शिएरा रीड) : राष्ट्रपति महोदय, अपने आवास पर स्वागत करने तथा इस वैश्विक वार्ता में भागीदारी करने के लिए आपका धन्यवाद। हमें उम्मीद है कि इस वार्ता से वर्तमान भारत के लिए कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर थोड़ा प्रकाश पड़ेगा।
आप छह दशकों तक भारतीय राजनीति में अग्रिम मोर्चे पर रहे हैं। आपने आधुनिक भारतीय राष्ट्र के निर्माण में भागीदारी की और अब पिछले वर्ष से इसके राष्ट्रपति के रूप में, आपके पास इसकी भावी चुनौतियों पर एक अनूठी दृष्टि है।
आइए, भावी कार्यक्रम पर एक नज़र डालें। आप यूरोप के हृदय ब्रुसेल्स की यात्रा शुरू करने वाले हैं। आपका इस यात्रा का क्या मिशन है?
भारत के राष्ट्रपति (श्री प्रणब मुखर्जी) : सबसे पहले मैं, इस मनोरम शहर ब्रुसेल्स की यात्रा के लिए आमंत्रित करने हेतु महामहिम नरेश के प्रति अपना गहरा आभार प्रकट करता हूं।
हालांकि मैं पहले भी यहां आया था क्योंकि यह आर्थिक और अन्य बहुत सी गतिविधियों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है, परंतु राष्ट्राध्यक्ष के रूप में, गणतंत्र के राष्ट्रपति के रूप में संभवत: मेरी यह यात्रा किसी भारतीय राष्ट्रपति की पहली यात्रा है। वास्तव में, हाल ही में हमने उच्च स्तरीय सम्पर्क आरंभ किए हैं। हमें 2008 के आसपास महामहिम एलबर्ट-II का स्वागत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वर्तमान महामहिम नरेश फिलिप युवराज के रूप में आए थे और उन्होंने भारत-बेल्जियम द्विपक्षीय संबंध के बहुत से पहलुओं पर भारतीय नेताओं के साथ विचार-विमर्श के लिए एक बड़े शिष्टमंडल का नेतृत्व किया था। इसलिए, मैं बेल्जियम के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा।
यूरोन्यूज : आप एक सांस्कृतिक महोत्सव यूरोपालिया के लिए आ रहे हैं, इस शानदार महोत्सव में समग्र भारतीय संस्कृति और कला का प्रदर्शन होगा।
भारत के राष्ट्रपति : बिल्कुल। और यह हमारे संबंधों का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। जैसा कि आप जानते हैं, भारत दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता है। यद्यपि एक राष्ट्र के रूप में हमारा अनुभव तुलनात्मक तौर से नया है, परंतु भारत प्राचीनतम सभ्यता का घर है।
यूरोन्यूज : (अस्पष्ट) ... बहुत-बहुत वर्ष पीछे तक।
भारत के राष्ट्रपति : और भारतीय सभ्यता का अहम तत्त्व इसका बहुलवादी होना है। बहुलवाद का सम्मान, विविधता की स्वीकार्यता, इस विविधता के बीच मौजूदा एकता और सामंजस्य को ढूंढ़ने का प्रयास भारतीय संस्कृति की प्रवृत्तियां हैं। अत:, इस महोत्सव में, जिसमें हम भाग ले रहे हैं, मेरे ख्याल से यह एक बड़ी भागीदारी है क्योंकि भारत के अलग-अलग हिस्सों के 200 से अधिक कलाकार इसमें भाग लेंगे। सात अति महत्त्वपूर्ण प्रदर्शनियां, 15 संगीतमय प्रस्तुतियां, विख्यात कलाकारों के नेतृत्व में सात नृत्य दल इसमें हिस्सा ले रहे हैं। और हम अपनी संस्कृति की गहनता प्रकट करेंगे जो यह संदेश देती है जिसके बारे में मैंने अभी कहा, अनेकता में एकता, भिन्नता में सामंजस्य।
यूरोन्यूज : यह एक महान संदेश है। परंतु आप ऐसे वक्त पर यूरोप आ रहे हैं जब भारत और यूरोपीय संघ बड़ी आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे हैं। हमने यूरो संकट के बारे में काफी सुना है। परंतु भारत की समस्याओं ने हमें हैरान किया है। आप तथाकथित ब्रिक्स देशों का एक भविष्य, श्रेष्ठ औद्योगिक शक्तिपुंज और उसमें से एक देश माने जाते हैं। वहां क्या हुआ?
भारत के राष्ट्रपति : सबसे पहले मैं इस मुद्दे पर अपने विचार प्रकट करना चाहता हूं। मुझे इसकी पूरी जानकारी है क्योंकि मैं भी खुद इसमें शामिल था।
जब 2008 में पहला वित्तीय संकट शुरू हुआ, वास्तव में भारत में इसका असर देरी से पड़ा परंतु उस समय मुझे वित्त मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी उठानी पड़ी क्योंकि मेरे पूर्ववर्ती और परवर्ती, श्री चिदंबरम उस समय कुछ तात्कालिकता की वजह से वित्त मंत्रालय से गृह मंत्रालय चले गए। और विदेश मंत्री के रूप में महती जिम्मेदारी के साथ-साथ, मुझे पुराने अनुभव के आधार पर वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त भार भी उठाना पड़ा। मैंने 70 और 80 के दशक के दौरान अनेक वर्षों तक श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में उनके वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया। इसलिए मुझे इस समस्या से निपटना पड़ा।
और मेरी तत्काल चिंता जैसा कि आपने कहा है, भारत की बड़ी समस्या थी जो वाकई बड़ी थी। भारत का सकल घरेलू उत्पाद 9 प्रतिशत से ज्यादा के आसपास की तेज दर से बढ़ रही थी। परंतु जब मैंने काम संभाला तो पाया कि पखवाड़े के आधार पर सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट आ रही है। परंतु उससे पहले, जी-20 देशों में अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ पहली शिखर बैठक हुई। और इसके परिणामस्वरूप समस्या का समाधान सामने आया। जी-20 में यह सर्वसम्मति हुई कि वर्तमान समस्या के समाधान के लिए प्रोत्साहन पैकेज देने की जरूरत है।
पीछे मुड़कर हम कह सकते हैं कि हम उस समय संकट की गहराई को नहीं समझ पाए। इसलिए, हमने अन्य बहुत से देशों की तरह यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहन पैकेज मुहैया करवाया कि तेजी से गिर रहे सकल घरेलू उत्पाद से होने वाली बेरोजगारी रुक जाए।
स्पष्ट कहा जाए तो हम उस झटके से उबर नहीं पाए। मैं भारत की ही नहीं पूरी दुनिया की बात कर रहा हूं। भारत में हमें कुछ अस्थायी राहत मिली क्योंकि उस वर्ष हमने 9 प्रतिशत के बजाय 6.7 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद दर्ज किया। परंतु बाकी दो वर्षों में, हमने 8.7 और 9.3 की विकास दर हासिल की। परंतु एक बार फिर, इसमें गिरावट शुरू हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि समस्या जड़ में थी। और इस जड़ में यूरोजोन तथा बहुत से उभरते हुए देश तथा विकसित देशों की समस्याओं में यह समानता है कि हम उधार राशि के बराबर संसाधन नहीं जुटाए जा सके।
इसलिए, यूरोप के चार छोटे देशों पुर्तगाल, आयरलैंड और स्पेन... (अस्पष्ट) में लक्षण दिखाई दे रहे थे और यह अत्यधिक सरकारी ऋण है। इस अंतर को कैसे कम किया जाए? इसके लिए बुनियादी सुधारों की जरूरत थी। बहुत से यूरोपीय देशों ने जोखिम उठाकर भी इन्हें लागू किया। मैं उनको नमन करता हूं। उन्होंने चुनाव हारने का जोखिम लेने की राजनीतिक बुद्धिमत्ता थी परंतु उन्होंने आवश्यक सुधारों को अपनाया।
प्रश्न : आपके विचार से क्या भारत ऐसा करेगा?
भारत के राष्ट्रपति : भारत ने पहले ही ऐसा करना शुरू कर दिया है।
प्रश्न : परंतु अभी सुधारों की और जरूरत है, आप क्या सोचते हैं?
भारत के राष्ट्रपति : मैं इसी मुद्दे पर आ रहा हूं। हमें भारत की जनसंख्या के आकार, असमान विकास के स्तर को भी ध्यान में रखना होगा। बहुत से उन्नत देशों का विनिर्माण क्षेत्र अत्यंत विकसित है। सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र और विनिर्माण क्षेत्र का बड़ा योगदान है। परंतु भारत में हम इस मॉडल को नहीं अपना सकते क्योंकि मुझे 1.2 अरब से ज्यादा लोगों का पेट भरना है।
इसी प्रकार, मुझे कृषि पर जोर देना होगा, मुझे ग्रामीण भारत के विकास पर भी जोर देना होगा जिसका हमारी 1.2 अरब की विशाल जनसंख्या में 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। इसलिए हमें अपनी विकासात्मक कार्यनीति कुछ हद तक देश विशिष्ट बनानी होगी क्योंकि जैसा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक देश की समस्याएं अलग होती हैं जिन्हें वहां की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के संदर्भ में हल किया जाना चाहिए।
तीसरी बात, यूरोजोन की समस्या को सुलझाना है, जैसा कि आपको मालूम है, निवर्तमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के निदेशक डोमिनिक के कार्यकाल में भी उपाय लागू किए गए थे। उनके बाद क्रिश्चिन लेगार्डे के कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के माध्यम से पैकेज दिया गया। परंतु वित्त मंत्रियों के शिखर सम्मेलन के अलावा, जी-20 की आधा दर्जन बैठकों में, मैंने भारत की ओर से भाग लिया और अपने पूरा सहयोग का आश्वासन दिया क्योंकि मेरा आर्थिक विकास और प्रगति यूरो के साथ घनिष्ठता से जुड़ी हुई है। यूरोप भी यूरोप के लिए ही नहीं बल्कि पूरी विश्व अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर है।
पहले मैं एक छोटा सा उदाहरण आपको देता हूं। यूरोप भारत का दूसरा विशालतम निर्यात गंतव्य है, विदेशी निवेश का दूसरा सबसे विशाल स्रोत है। इसीलिए, और जैसा कि हुआ है, जो प्रमुख कारणों में से भी है, जब इन उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मांग कम हुई, चाहे वह उत्तरी अमरीका हो, जापान हो या यूरोप हो, जिनका हमारे निर्यात और विदेशी निवेश में बड़ा हिस्सा है, उनकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई। स्वाभाविक रूप से इसका हम पर भी असर होगा। परंतु हमें इस पर ध्यान देना होगा तथा साथ ही अपनी घरेलू समस्याओं पर भी ध्यान देना होगा।
परंतु मैं सहमत हूं कि वर्तमान संदर्भ में जबकि दुनिया आर्थिक रूप से एक होती जा रही है और विश्व अर्थव्यवस्था अब सपना नहीं बल्कि एक हकीकत है, तो हमें मिलकर कार्य करना होगा, परंतु इसके लिए देश विशेष की जरूरतें देखनी होंगी और किसी खास स्थिति पर ध्यान देने के लिए कार्यनीति बनानी होगी।
यूरोन्यूज : सहयोग के बारे में बात करें तो यूरोपीय संघ तथा भारत कार्यनीतिक साझीदार हैं और 2007 से मुक्त व्यापार और निवेश समझौते पर बातचीत चल रही है। यदि यह पूरी हो जाती है तो इससे 1.8 बिलियन लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आपके ख्याल से हम अब इस काम को कैसे शुरू कर सकते हैं?
भारत के राष्ट्रपति : वास्तव में अब मैं सीधे इसका उत्तर या इस पर कार्रवाई नहीं कर सकता है। परंतु मंत्रालय के मेरे सहयोगियों को मेरी यह सलाह होगी कि बातचीत के पंद्रह दौर पूरे हो चुके हैं। मैं वित्त मंत्रालय में था तो मैं भी इस पर बारीकी से नज़र रख रहा था। हम बहुत से क्षेत्रों में समझौते कर चुके हैं। असहमति के केवल कुछ क्षेत्र हैं। हमें इन असहमतियों को कम करना चाहिए तथा व्यापक आर्थिक साझीदारी करारों को सम्पन्न करना चाहिए जिससे हम, जैसा कि आपने कहा है, 1.8 बिलियन लोगों को लाभ पहुंचा सकते हैं।
यूरोन्यूज : क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जिसमें आपको अभी भी भारत में मौजूद व्यापक लालफीताशाही से निपटना होगा या निर्यात के नियंत्रण की जरूरतों...
भारत के राष्ट्रपति : मैं महसूस करता हूं कि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें अवधारणा संबंधी मतभेद है। परंतु ऐसा आसियान में हुआ है, बहुत से देशों के साथ द्विपक्षीय स्तर पर हुआ है। परंतु आसियान के साथ ऐसा करना या सार्क के ढांचे के भीतर ऐसा करने का प्रयास करना एक जैसा नहीं है, यूरोपीय संघ सबसे अहम है और इसीलिए जैसा कि मैंने जिक्र किया, हम 2007 से बातचीत के पंद्रह दौर पूरे कर चुके हैं। असहमति के क्षेत्र हैं परंतु मैं ज्यादा ब्योरे में नहीं जाना चाहता। मैं जिस बात पर जोर देना चाहता हूं वह यह है कि हमें निश्चय करना चाहिए और देर सबेर समझौता कर लेना चाहिए।
यूरोन्यूज : जी हां। हमने पिछले बारह महीनों के दौरान, एक अन्य मुद्दे, भारत में महिलाओं के प्रति हिंसा के बारे में बहुत कुछ सुना है। क्या आप सहमत हैं कि मीडिया हमें असली तस्वीर दिखा रहा है क्योंकि विदेश में भारत की काफी खराब तस्वीर पेश की जाती है? आपके विचार से यह हमें असली और सही तस्वीर दिखा रहा है या इस कहानी का कोई अन्य पहलू भी है?
भारत के राष्ट्रपति : एक बात ध्यान में रखनी होगी। ये कुछ घटनाएं परेशान करने वाली हैं जैसे कि पिछले वर्ष की घटना है। मैंने कई बार कहा है कि इसने राष्ट्रीय चेतना को हिला दिया। इस घटना ने एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों को प्रभावित किया, परंतु इसने राष्ट्र की चेतना को हिला दिया। इनके बाद बहस और चर्चाएं हुई हैं। लेकिन मीडिया का यह प्रदर्शन काफी हद तक इसलिए है क्योंकि भारतीय, विशेष कर ग्रामीण महिलाएं आमतौर पर संकोची होती हैं, परंतु इस प्रकार की घटनाओं को सहन करना और (अस्पष्ट)... पहले वे इसकी रिपोर्ट नहीं करते थे। परंतु आजकल वे इसकी पूरी रिपोर्ट करते हैं। एक तरह से यह सही है। परंतु इस समय इससे भारत की विकृत छवि पेश की जा रही है। मगर हम सच्चाई को अनदेखा नहीं कर सकते। अगर ऐसा होता है तो इस पर ध्यान देना होगा और यह मानना होगा कि ऐसा हुआ है।
परंतु मैं आपको विश्वास दिला सकता हूं कि हम पहले ही जो भी कदम उठा चुके हैं और जिस पर हम अभी चिंतन कर रहे हैं, हमारे समावेशी विकास का प्रमुख उद्देश्य है, सशक्तीकरण, कमजोर तबकों का सशक्तीकरण, महिलाओं का सशक्तीकरण। हमारे स्थानीय निकायों में प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, संबंधित क्षेत्र के आर्थिक विकास सहित स्थानीय प्रगति के लिए निर्णय की प्रक्रिया में तीस लाख से अधिक प्रतिनिधि भाग लेते हैं। एक तिहाई सीट केवल महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इस समय जैसा कि मैंने पहले कहा, इन स्थानीय निकायों में 1.2 मिलियन से ज्यादा महिला मुखिया अपनी शक्ति का प्रयोग कर रही हैं।
यूरोन्यूज : जी हां, क्योंकि यह सच है कि आपको महिलाओं को और अधिक ताकत, और शिक्षा तथा और अधिकार देने हैं। पुरुष की बात करें तो क्या उन्हें कुछ और शिक्षित करने की जरूरत नहीं है?
भारत के राष्ट्रपति : जागरूकता, शिक्षा और सर्वसम्मति पैदा करने की वाकई जरूरत है। इसलिए... (अस्पष्ट)... और मैंने अपने देशवासियों से भी कहा कि वे हमारे नैतिकता की दिशा का फिर से निर्धारण करें क्योंकि भारत को हमेशा महिलाओं के सम्मान के लिए जाना जाता है। हम उनकी पूजा करते हैं। हमारे महत्त्वपूर्ण देवी-देवता महिलाएं हैं।
यूरोन्यूज : और आपके देश की पहली महिला नेता इंदिरा गांधी थीं जिनके आप बेहद निकट थे। और आपसे पहले आपके वर्तमान पद पर एक महिला थीं।
भारत के राष्ट्रपति : ऐतिहासिक रूप से भी मैं कह सकता हूं कि एक महिला बहुत शक्तिशाली साम्राज्ञी थी। दिल्ली पर रजिया सुल्तान ने शासन किया था। एक अन्य महत्त्वपूर्ण मुगल शासक जहांगीर के शासन के दौरान उसकी पत्नी नूरजहां वास्तविक शासक थी।
यूरोन्यूज : परंतु शिक्षित शहरी महिला और ग्रामीण महिलाओं के बीच एक बड़ा अंतर है और इस अंतर को समापत करने की जरूरत है।
भारत के राष्ट्रपति : जो उदाहरण मैंने आपको दिए हैं, इस अंतर को ग्रामीण इलाकों में तेजी से समाप्त किया जा रहा है क्योंकि ग्रामीण इलाकों की स्थानीय सरकार में, जैसा कि मेंने जिक्र किया था, 1.2 मिलियन महिला मुखिया स्थानीय यूनिट चला रही हैं। वे अंग्रेजी पढ़ी-लिखी नहीं हैं। उनमें से बहुत सी शिक्षित हैं, लेकिन ज्यादातर का पालन-पोषण भारतीय परंपरा के अनुसार हुआ है। उन्हें पता है कि कैसे शासन करना है, अपने निर्णयों को अमल में लाना है, कैसे सही निर्णय लेने हैं, और वे ऐसी ही कर रही हैं। इसी तरह, जैसा कि मैंने कहा था, एक राष्ट्र के तौर पर हमें इस पर ध्यान देना है और इसे सही करना है।
यूरोन्यूज : एक दशक की शांति के बाद, हमने पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर, हिंसा में बढ़ोतरी देखी है। हम जानते हैं कि यह खबर आजकल मुख पृष्ठों की सुर्खी बनी हुई है। राष्ट्रपति के रूप में, आप सेना के मुख्य कमांडर, सर्वोच्च कमांडर हैं। आपकी राय में, आप हिंसा में वृद्धि को कैसे रोक सकते हैं, और क्या आपको अपने जीवनकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की उम्मीद दिखाई देती है?
भारत के राष्ट्रपति : हमारे प्रधानमंत्री ने सुंयक्त राष्ट्र की आम सभा में एक बहुत अहम बयान दिया है। उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, जिन्होंने एक दिन पहले इसी मंच का प्रयोग किया था, के साथ सहयोग का हाथ बढ़ाया है। प्रधानमंत्री ने ध्यान दिलाया है कि भारत शांति, स्थिरता की बहाली के लिए तथा द्विपक्षीय विचार-विमर्श के जरिए जम्मू और कश्मीर की समस्या सहित सभी बकाया मुद्दों को सुलझाने के लिए पाकिस्तान के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है।
1971 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, तो भारत ने पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया था, जिसे शिमला समझौते के तौर पर जाना जाता है। भारत ने वे सभी इलाके छोड़ दिए थे जो भारतीय सेना ने युद्ध के दौरान कब्जे में ले लिए थे। इक्यानवे हजार बंदी सैनिकों, युद्ध बदियों को रिहा कर दिया गया था। यह केवल सद्भावना की अभिव्यक्ति थी जो हमारी विदेश नीति में निहित है कि हमारी कोई क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षा नहीं है, न ही हमें किसी दूसरे देश पर अपनी विचारधारा लादने की महत्वाकांक्षा है और न ही हमारा कोई वाणिज्यिक हित हैं।
यूरोन्यूज : भारत हमेशा से ऐसा रहा है। प्राचीन भारतीय इतिहास भी ऐसा ही रहा है।
भारत के राष्ट्रपति : हां, इसलिए हम अपने पड़ोसियों के साथ बेहतर रिश्ते कायम रखना चाहते हैं। जब मैं विदेश मंत्री था, मैं अक्सर कहा करता था कि चाहूं तो अपने मित्र बदल सकता हूं परंतु मैं चाहकर भी अपने पड़ोसी नहीं बदल सकता। पड़ोसी जैसा भी है, मुझे उसे उसी रूप में स्वीकार करना होगा। वह मेरा पड़ोसी है। मुझे वह पसंद है या नहीं, इस बात की कोई अहमियत नहीं है। इसलिए मुझे यह फैसला करना है कि मुझे अपने पड़ोसी के साथ तनाव से रहना है या शांति से। हमने शांति को चुना।
इसीलिए, मैं खुद पाकिस्तान गया। जब बेनजीर की हत्या हुई, मैंने वहां जाने की पेशकश की परंतु उनके जनरल मुशर्रफ के शासनकाल के दौरान, उनकी अन्य घरेलू समस्याएं थीं। और हमारे नवाज शरीफ के साथ अच्छे व्यक्तिगत रिश्ते हैं और प्रधानमंत्री उनसे मिलने वाले हैं। लेकिन एक बात को समझना होगा। कोई भी देश अपनी क्षेत्रीय अखंडता के साथ समझौता नहीं कर सकता। यह मुमकिन नहीं है।
दूसरी चीज आतंकवाद है। आतंकवादी गतिविधियों को खत्म किया जाना चाहिए। राष्ट्र द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसलिए हम बार-बार कहते हैं कि कृपया आप अपने क्षेत्र में आतंकवादी संगठनों को समाप्त कर दें।
यूरोन्यूज : भारत कहता है कि यह राष्ट्र प्रायोजित आतंकवाद है और वास्तव में पाकिस्तान का कहना है कि यह राष्ट्र प्रायोजित आतंकवाद नहीं है।
भारत के राष्ट्रपति : हो सकता है कि न हो। परंतु गैर सरकारी तत्त्वों का क्या, वे इन शब्दों का प्रयोग करते हैं, तब मैं इसका उत्तर यह कहकर देता हूं कि गैर सरकारी तत्त्व आसमान से नहीं उतरे हैं। गैर सरकारी तत्त्व आपके नियंत्रण वाले इलाके से आ रहे हैं। अभी नहीं, 2004 में, पाकिस्तान सहमत था कि वह अपने इलाकों का इस्तेमाल भारत विरोधी ताकतों को नहीं करने देगा।
यूरोन्यूज : भारत में अगले वसंत में मतदान होने जा रहे हैं। प्रमुख आम चुनाव नजदीक हैं। मैं जानता हूं कि अपने पद की वजह से आप दलगत राजनीति के बारे में बातचीत नहीं कर सकते। परंतु आप एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं। आपने भारतीय राजनीति में बहुत कुछ देखा है। इसलिए क्या आप संक्षेप में मुझे बता सकते हैं कि ऐसे कौन से मुद्दे हैं जिनसे चुनाव जीते या हारे जाएंगे?
भारत के राष्ट्रपति : विभिन्न दलों द्वारा अनेक मुद्दे सामने लाए जा रहे हैं। भारत एक बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली, विश्व का विशालतम जीवंत लोकतंत्र है। हमारे लगभग 800 मिलियन मतदाता हैं और उनमें से 60 प्रतिशत अपने मत का प्रयोग करते हैं। मुझे भारतीय मतदाताओं के राजनीतिक ज्ञान में बहुत आस्था और विश्वास है। वे जानते हैं कि उनके द्वारा चुना गया कौन-सा दल उनके हितों, आर्थिक विकास, समावेशी विकास को आगे बढ़ाएगा, कानून और व्यवस्था को कायम रखेगा, आंतरिक सुरक्षा और बाहरी खतरों से उनकी हिफाजत करेगा। इसलिए, भारतीय मतदाताओं को अपनी जिम्मेदारियां पता है, और मुझे विश्वास है कि वे अपने अधिकारों का प्रयोग समझदारी से करेंगे।
यूरोनयूज : परंतु आपने जिन मुद्दों का अभी उल्लेख किया है, क्या वे उन पर विचार करके अपना वोट डालेंगे? क्या वे अर्थव्यवस्था, समावेशिता और रोजगार के बारे में सोचकर मतदान करेंगे या वे अपने पेट का हवाला देकर मतदान करेंगे? आपने प्रत्येक को भोजन मुहैया करवाने की एक बहुत विशाल भोजन की योजना बनाई, क्या यह तरीका भी...
भारत के राष्ट्रपति : बिल्कुल नहीं, कुछ ऐसे कार्यक्रम हैं जिन पर चर्चा की जाएगी और यह हमारे आर्थिक विकास की कार्यनीति है। जब हम समावेशी विकास के बारे में बात कर रहे थे तो यह खोखली बात नहीं थी। हम समावेशी विकास कैसे कर सकते हैं? हम हकदारी के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाकर और कानून बनाकर, कानूनी गारंटी के जरिए हकदारी देकर लोगों को सशक्त बनाकर समावेशी विकास कर सकते हैं। हमने ग्रामीण क्षेत्रों में काम मुहैया करवाकर यह गारंटी दी है। हमने 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को शिक्षा की गारंटी दी है। हमने भारतीयों का इस प्रकार से सशक्तीकरण किया है। उनमें से दो तिहाई को जो 1.2 अरब लोगों का 66 प्रतिशत है, को सस्ती कीमत पर भोजन की कुछ मात्रा कानूनी गारंटी द्वारा, जिसे खाद्य सुरक्षा कहा जाता है, उपलब्ध करवाई गई है। वास्तव में, इन महत्त्वपूर्ण अग्रणी कार्यक्रमों पर बहस चल रही है, तथा लोग आम चुनावों में अपने फैसले को सामने लाएंगे।
यूरोन्यूज : मैंने इसके बारे में इसलिए कहा क्योंकि मैंने द इकनोमिस्ट में पढ़ा था, उसमें इस योजना की आलोचना की गई थी क्योंकि इसमें काफी लागत, सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत आएगी। इस पत्रिका के मुताबिक, 70 प्रतिशत लोगों को पांच किलो अनाज बांटने की बजाय अगर इस योजना को स्वच्छता, स्वास्थ्य, सड़क निर्माण के लिए बनाया जाता तो इस धन को बेहतर ढंग से खर्च किया जा सकता था।
भारत के राष्ट्रपति : एक योजना दूसरी योजना को रद्द नहीं करती। कोई भी स्वच्छता को बढ़ने से नहीं रोक सकता, कोई भी स्वास्थ्य, शिक्षा को बढ़ने से नहीं रोक सकता। खाद्य सुरक्षा बिल जिसे पारित कर दिया गया है, के अलावा 1.2 मिलियन से ज्यादा प्राथमिक स्कूलों में हम 10.8 करोड़ लोगों को भोजन मुहैया करवा रहे हैं। एक करोड़ 10 मिलियन के बराबर होता है। 10.8 करोड़ बच्चों को नियमित भोजन दिया जा रहा है।
इसलिए, मैं जो बात कहना चाहता हूं, वह है कि हम समावेशी विकास प्राप्त करना चाहते हैं, और समावेशी विकास के लिए भोजन, शिक्षा होनी चाहिए, स्वास्थ्य और स्वच्छता होनी चाहिए। हमें समावेशी विकास करना होगा और समावेशी विकास भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता प्रदान करके ही हासिल की जा सकती है, आखिरकार भारत के नीति निर्माताओं को 1.2 अरब लोगों का ध्यान रखना है, जो कि एक विराट कार्य है। इसलिए, हमारे विकासात्मक मॉडल को अन्य देशों के विकासात्मक मॉडलों के अनुसार नहीं गढ़ा जा सकता। यह भारत में मौजूद सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार होगा।
यूरोन्यूज : आपके विचार से, इस चुनाव में जीत के लिए एक करिश्माई नेता का होना जरूरी है?
भारत के राष्ट्रपति : कोई नेता करिश्माई है या नहीं, यह वोट हासिल करने पर निर्भर करता है। करिश्मा इसके द्वारा आजमाया जाता है। मैं यह बात एक राजनीतिक कार्यकर्ता की हैसियत से कर रहा हूं कि हम चुनाव के दौरान लहर या हवा की बात करते हैं। परंतु लहर या हवा का पता तभी चलता है जब यह गुजर जाती है। यह कब आ रही है या कब बह रही है, कोई नहीं बता सकता कि हवा कहां बह रही है या लहर कहां चल रही है।
यूरोन्यूज : आइए, दूसरे प्रश्न पर आते हैं। मैं अब आपकी अद्भुत ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बातचीत करना चाहता हूं। इंदिरा गांधी के बाद, यदि कोई इतिहास की किताब के हर पन्ने से गुजरा है, तो वह आप हैं। हमारे पास इतिहास पढ़ने के लिए समय नहीं है। परंतु मुझे एक बात बताइए। यदि आज भारत के संस्थापक गांधी, नेहरू यहां होते तो क्या वे यह देखकर संतुष्ट होते?
भारत के राष्ट्रपति : बिल्कुल। जब हम आजाद हुए तो एकता नहीं थी। जब हमने संविधान सभा में अपना संविधान बनाया तो एक गंभीर बहस हुई थी। इस बंटवारे के समझौते के परिणामस्वरूप अलग हुए भारत के एक हिस्से ने अपने संविधान में एक धर्म को अपना राष्ट्र धर्म बना घोषित कर दिया। उसी संदर्भ में, हमने पंथनिरपेक्ष संविधान अपनाया। भारत के संविधान की उद्देशिका में कहा गया है, ‘एक संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य।’ यह भारत राष्ट्र का चरित्र है। और इस राष्ट्र के निर्माण के लिए, भारत को संघ के रूप में एकताबद्ध करने, और इस मजबूत बनाने के लिए...
जब भारत स्वतंत्र हुआ, उससे पचास वर्ष पूर्व, भारतीय अर्थव्यवस्था की वार्षिक विकास की दर सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत थी। 1900 से 1950 तक, भारतीय अर्थव्यवस्था एक प्रतिशत की दर से बढ़ी। अगले उनतीस वर्षों में यह 3.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी। परंतु अगले 20 वर्षों में इसका औसत विकास छह प्रतिशत से अधिक था। पिछले दशक में यह लगभग 8 प्रतिशत था। हम मुश्किल से कोई विनिर्माण कर सके। परंतु पिछले वर्षों के दौरान, हमने विनिर्माण का मजबूत आधार निर्मित किया। साक्षरता की दर एक तिहाई से कम थी। आज यह संयुक्त राष्ट्र साक्षरता सहित तीन-चौथाई से अधिक है। रोग, औसत आयु प्रत्याशा 30 से कम थी। आज यह दुगुने से भी ज्यादा है।
इस प्रकार, ये ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर हमारे राष्ट्र निर्माता वास्तव में संतुष्टि अनुभव करेंगे। लेकिन इसी तरह, वे संतुष्टि महसूस नहीं करेंगे क्योंकि हमें और अधिक ऊंचाई पर पहुंचना है जिसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं।
यूरोन्यूज : मैं एक ऐसे राष्ट्र से आई हूं जो पूरी तरह युवा है। मैं इतालवी हूं। जब गारिबाल्डी और केवोर ने इटली का निर्माण किया, उनका कहना था कि अब एक मुश्किल काम इतालवी लोगों को तैयार करना है। इटली को संगठित करना नहीं बल्कि नागरिक तैयार करना, उन्हें इतालवी होने का अहसास करवाना। और भारत के लिए भी कुछ ऐसा ही है। जैसा कि आपने बताया, स्वतंत्रता से पहले, राज्य संगठित नहीं थे। आपके ख्याल से, क्या आज आपने भारतीय लोगों को राष्ट्र का हिस्सा होने का अहसास करवा दिया है?
भारत के राष्ट्रपति : हां, काफी हद तक।
यूरोन्यूज : आपको कोई पछतावा है?
भारत के राष्ट्रपति : नहीं।
यूरोन्यूज : आपको क्या बात रात में जगाए रखती है?
भारत के राष्ट्रपति : मैं उस ऊंचाई को देखना चाहता हूं जिसे हम हासिल करना चाहते हैं, हम उस ऊंचाई को जल्द हासिल कर लेंगे। भारत एक सबसे समृद्ध, विकसित देश के रूप में ऐसे राष्ट्रों की पंक्ति में अपना स्थान प्राप्त कर लेगी, जो मानव अधिकारों की रक्षा करता है, जो एक-एक को विकास में शामिल करता है, यही हमारा प्राचीन सिद्धांत है।
यूरोन्यूज : एक और बात ...(अस्पष्ट)... मेरे विचार से आपका सोशल मीडिया, यह नई चीज, टिवट्र अकाउंट नहीं है। परंतु हमने शुरू कर दिया है...(अस्पष्ट)... एक अनुरोध ताकि वे अपने सवाल पूछ सकें। और कुछ लोगों ने आपसे सवाल पूछने के लिए हमसे अनुरोध किया है। दिल्ली के अर्थशास्त्र के एक भारतीय युवा विद्यार्थी तन्मय कुमार आपसे सिर्फ एक सवाल पूछना चाहते हैं। क्या भारत में राजनीति का तरीका समय के साथ बदल गया है, और आपके ख्याल से सबसे स्पष्ट बदलाव क्या हुआ है?
भारत के राष्ट्रपति : भारत में एक बड़ा बदलाव आया है। एक अति पिछड़े हुए देश से बदलकर भारत एक अग्रणी, उभरती हुई, विकसित अर्थव्यवस्थाओं के समूह में शामिल हो गया है।