होम >> विदेश यात्राएं - 2013 >> विदेश यात्राएं

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा सिहान संवाद एजेंसी को दिया गया साक्षात्कार

05.10.2013

1. किसी भारतीय राष्ट्रपति द्वारा 15 वर्षों के बाद पहली यात्रा। यात्रा का सामान्य उद्देश्य तथा कार्यसूची? शिष्टमंडल के सदस्य?

भारत एवं तुर्की के बीच बहुत-सी राजकीय यात्राएं हुई हैं। मुझसे पहले दो भारतीय राष्ट्रपति तुर्की आ चुके हैं और मेरी तीसरी यात्रा होगी। तुर्की की ओर से भी इतनी ही यात्राएं हुई हैं। राष्ट्रपति अब्दुल्ला गुल 2010 में भारत आए थे तथा मैं उसके उत्तर में तुर्की जा रहा हूं। हमारे उपराष्ट्रपति, श्री मोहम्मद हामिद अंसारी यहां अक्तूबर, 2010 में आए थे तथा हमारे विदेश मंत्री इसी वर्ष जुलाई में यहां आए थे।

भारत और तुर्की दोनों साझीदारी विकसित करने के लिए समर्पित हैं। मेरी इस यात्रा से तुर्की के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों की बेहतरी को भारत द्वारा दिए जाने वाले महत्त्व का पता चलता है। मुझे उम्मीद है कि इस यात्रा से भारत-तुर्की संबंधों के सभी पहलुओं को बढ़ावा मिलेगा तथा तुर्की में मेरी तथा मेरे शिष्टमंडल की बातचीतों के दौरान नए विशेष क्षेत्रों का पता लगाया जाएगा।

श्री जी.के. वासन, पोत परिवहन मंत्री तथा संसद सदस्यों का एक बहुदलीय पांच सदस्यीय शिष्टमंडल तथा प्रमुख भारतीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का एक शिष्टमंडल भी मेरे साथ इस यात्रा पर जा रहा है।

2. दो उभरती अर्थव्यवस्थाएं, किन क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग का लक्ष्य है?

भारत-तुर्की व्यापार लगातार बढ़ा है तथा यह 2011 में 7 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुंच गया है, जो कि 2010 के लिए निर्धारित 5 बिलियन अमरीकी डालर के लक्ष्य से काफी आगे है।

निवेश दोनों और से बढ़ रहे हैं। 100 से अधिक भारतीय कंपनियों ने संयुक्त उपक्रमों, व्यापार तथा प्रतिनिधि कार्यालयों के रूप में व्यापार शुरू किया है। भारतीय कंपनियों की रुचि अवसंरचना परियोजनाओं तथा ऑटोमोबाइल, ऊर्जा तथा स्टील सेक्टरों में रुचि है। भारत में तुर्की की कंपनियों की संख्या भी बढ़ रही है, जो कि सड़कों एवं राजमार्ग सेक्टरों में तथा पाइप लाइनों के निर्माण में लगी है।

दोनों देशों के बीच आर्थिक तथा तकनीकी सहयोग पर संयुक्त आयोग तथा संयुक्त व्यापार परिषद जैसे संस्थागत प्रबंध मौजूद हैं। मेरे तुर्की प्रवास के दौरान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा मध्यम, लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों के क्षेत्र में सहयोग के अन्य करार होने की संभावना है।

3. दोनों देश सांस्कृतिक रूप से बहुत निकट हैं, इस यात्रा में किस तरह के सांस्कृतिक तथा सामाजिक सहयोग का लक्ष्य है?

भारत एवं तुर्की के प्राचीन काल से ही संस्कृति, दर्शन तथा भाषा की दृष्टि से ऐतिहासिक संबंध रहे हैं और यही वह मजबूत आधार हैं जिनसे हमारे संबंधों की मीनार खड़ी की मीनार खड़ी हो सकती है। सांस्कृतिक क्षेत्र में हमारा बहुत से क्षेत्रों में सहयोग है जैसे कि तुर्की रेडियो तथा टेलीविजन तथा हमारे सरकारी प्रसारकों दूरदर्शन और प्रसार भारती के बीच सहयोग तथा अभिलेख के क्षेत्र में सहयोग, और भारत तथा तुर्की के कुछ ऐतिहासिक शहरों के बीच सहयोग करार शामिल हैं।

4. शिक्षा, सहयोग का एक क्षेत्र? सरकारी छात्रवृत्ति से अकादमिक आदान-प्रदान बढ़ाया जाएगा?

हमारे दोनों ही समाजों में जनसंख्या का प्रमुख भाग युवा है। इसलिए विश्व के वैश्विक नागरिक, हमारे युवाओं के प्रति हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम उनके लिए यथासंभव सबसे अच्छे अवसर उपलब्ध कराएं।

शिक्षा, अनुसंधान तथा नवान्वेषण को प्राथमिकता क्षेत्र माना गया है तथा मुझे यह उल्लेख करते हुए खुशी हो रही है कि भारत एवं तुर्की के प्रमुख विश्वविद्यालयों के बीच, मेरी इस यात्रा के दौरान, पांच करारों पर हस्ताक्षर किए जाएं। भारत सरकार द्वारा तुर्की के नागरिकों को व्यावसायिक तथा पेशेवर क्षेत्रों में छात्रवृत्तियां प्रदान की जा रही है और इस तरह के सहयोग को बढ़ाने के लिए विभिन्न संस्थानों के बीच सहमतियां हुई हैं।

5. पर्यटन? पर्यटन में नागर विमानन का महत्त्व? टर्किश एयरलाइन्स की भूमिका भारतीय नागर विमानन मंत्रालय द्वारा टर्किश एयरलाइन्स की उड़ानों की संख्या बढ़ाने की संभावना?

आज के इस आधुनिक विश्व में अपनी साझी सांस्कृतिक विरासत के चलते हमारे दो देशों के बीच आदान-प्रदान बढ़ाने के लिए संयोजन अनिवार्य शर्त है। इसके लिए न केवल भौतिक संयोजन जरूरी है बल्कि जनता के बीच संबंधों के लिए जरूरी अन्य क्षेत्रों जैसे कि संगीत, फिल्म, दृश्य तथा प्रदर्शन कलाओं एवं मीडिया के अलावा व्यापार और आर्थिक संबंध भी जरूरी हैं। दोनों देशों के बीच पर्यटन के लिए आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है। इस तरह के आदान-प्रदान को बढ़ाने की जरूरत है। जनता के बीच अधिक संपर्क से दोनों ओर से संयोजनों को बढ़ाने की जरूरत होगी।

6. रक्षा क्षेत्र। दोनों देशों की अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत सेनाएं हैं। पिछले वर्षों में उच्च स्तरीय सैन्य यात्राएं हुई हैं। इस क्षेत्र में अथवा सैन्य अभ्यास की कोई संभावना?

रक्षा क्षेत्र में तुर्की के साथ सहयोग को बढ़ाने की अच्छी संभावनाएं हैं। नवंबर 2008 में तुर्की के प्रधानमंत्री एर्डागन की भारत यात्रा के दौरान हमारे दोनों प्रधानमंत्री, सेनाओं तथा प्रशिक्षण आदान-प्रदान के माध्यम से दोनों की रक्षा सेनाओं के बीच सहयोग पर सहमत हुए थे। दोनों के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग करार पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव है तथा यह कुछ समय से तुर्की के पास विचाराधीन है।

7. मध्यम एशिया तथा अफगानिस्तान ऊर्जा कॉरीडोर तथा सामरिक दृष्टि से दोनों के राष्ट्रीय हित हैं। इस क्षेत्र में सहयोग की कोई संभावना?

भारत का मानना है कि अफगानिस्तान के पश्चिम एशिया, मध्य एशिया तथा दक्षिण एशिया के बीच केंद्रीय स्थल पर स्थित होने के कारण यह अन्तर क्षेत्रीय व्यापार के केंद्र के रूप में ऐतिहासिक भूमिका निभा सकता है। इसलिए उत्तर-2014 परिदृश्य में एक मजबूत, आत्मनिर्भर तथा व्यवहार्य अफगान राष्ट्र की स्थापना के लिए यह जरूरी है कि व्यापार, परिवहन तथा ऊर्जा के वैकल्पिक कॉरीडोर विकसित किए जाएं जिससे अफगानिस्तान आपसी समावेशी व्यापार चैनलों के बीच में आ जाएं और इससे आने वाले वर्षों में अफगानिस्तान को एक सहायता आधारित अर्थव्यवस्था से व्यापार आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने में सहायता मिले। हां, यह तभी संभव है जब अफगानिस्तान को क्षेत्रीय बाजारों और नजदीकी पड़ोसियों के द्वारा समुद्री बंदरगाहों तक सुगमता से आवागमन की सुविधा मिले।

एक बहुपक्षीय स्तर पर भारत, तुर्की तथा अन्य क्षेत्रीय देशों ने इस्तांबुल प्रोसेस के अधीन इस क्षेत्र में सहयोग और विश्वास पैदा करने की नई परिकल्पना प्रस्तुत करने के लिए सहयोग किया है जिसके केंद्र में अफगानिस्तान है और इसमें क्षेत्रीय देश, सहयोगी देश तथा अंतरराष्ट्रीय संगठन शामिल है। भारत इन सभी विश्वासोत्पादक उपायों में सक्रिय रूप से भागीदारी कर रहा है तथा वह व्यापार, वाणिज्य तथा निवेश अवसर संबंधी विश्वासोत्पादक उपायों की अध्यक्षता कर रहा है। भारत ने पिछले वर्ष अफगानिस्तान में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए ‘अफगानिस्तान में निवेश पर दिल्ली समिट’ भी आयोजित किया था।

अफगानिस्तान में स्थाईत्व के लिए, यह जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान में कार्यरत रहे तथा वह इसके संक्रमण तथा बदलाव की प्रक्रिया में सहयोग दे। यह भी जरूरी है कि अफगानिस्तान में सभी समस्याओं के प्रमुख कारण अर्थात् अफगानिस्तान की सीमाओं के बाहर से पैदा होने वाले आतंकवाद का सख्ती से सामना किया जाए।

भारत एवं तुर्की दोनों के सदियों से मध्य एशियाई क्षेत्र के साथ व्यापक संबंध रहे हैं। भारत एवं तुर्की के अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया के स्थाईत्व तथा सुरक्षा में साझे हित हैं। भारतीय कंपनियां इस क्षेत्र में संयुक्त परियोजना पर अपने तुर्की के सहयोगियों के साथ सहयोग के लिए तैयार हैं। भारत का इरादा ऊर्जा सहयोग परियोजनओं तथा क्षेत्रीय परिवहन कॉरीडोरों के विकास में भाग लेने का है।

8. तुर्की की निर्माण कपनियां विश्व की दूसरी सबसे बड़ी कंपनियां हैं। भारत के अगले 15 वर्षों के अवसंरचनात्मक निवेश में तुर्की की भमिका?

भारत ने अपनी अवसंरचना संबंधी जरूरतों को वैश्विक कंपनियों के लिए खोल दिया है तथा वह पूरी दुनिया से अधुनातन प्रौद्योगिकियां प्राप्त करना चाहता है। अगले पांच वर्षों के दौरान लगभग एक ट्रिलियन अमरीकी डालर के खर्च की संभावना है जिसके लिए हम निवेश विशेषज्ञता तथा तकनीकी ज्ञान का स्वागत करते हैं। भारत तुर्की की कंपनियों द्वारा इस प्रकार की परियोजनाओं में भाग लेने का स्वागत करेगा। कुछ शुरुआतें हुई हैं। भारत में कुछ तुर्की की कंपनियां पहले ही मौजूद हैं और मैं समझता हूं कि इन कंपनियों ने भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग करते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग, जम्मू-कश्मीर में बांध निर्माण तथा दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कार्गो टर्मिनल के निर्माण पर कार्य किया है और इसी तरह भारतीय कंपनियों ने भी तुर्की में अवसंरचना पर निवेश किया है जिसका एक उदाहरण इस्तांबुल हवाई अड़डा है।

9. भारत की संयुक्त राष्ट्र में अहम् भूमिका है। सीरिया में शांति की स्थापना में भारत का क्या रुख है?

सीरिया में लगातार जारी हिंसा तथा इससे पैदा मानवीय संकट हमारे लिए गहरी चिंता का विषय है। भारत ने सभी पक्षों से हिंसा का त्याग करने के लिए आग्रह किया है ताकि ऐसे समावेशी राजनीतिक संवाद के लिए परिवेश बनाया जा सके जिससे सीरिया की जनता की उचित आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए व्यापक राजनीतिक हल तक पहुंचा जा सके। सीरिया के बारे में भारत की नीति इस क्षेत्र में अपने पुराने स्थाई संबंधों से तथा अपने महत्त्वपूर्ण आर्थिक, ऊर्जा संबंधी तथा भारतवंशियों के हितों से निर्देशित है।

हमारा यह मानना है कि इस संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता। सीरिया में रसायनिक हथियारों का कथित प्रयोग गहरी चिंता का विषय है। भारत ने लगातार पूरे विश्व से रासायनिक हथियारों की पूर्ण समाप्ति तथा खात्मे का समर्थन किया है। भारत ने रूस तथा अमरीका के बीच सीरिया के रासायनिक हथियारों के भंडार की समयबद्ध सुरक्षा तथा खात्मे के लिए ढांचा करार तथा सीरिया द्वारा रासायनिक हथियार संधि पर सहमति का स्वागत किया है। हमें उम्मीद है कि हाल ही के शांति प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र के अधीन प्रस्तावित ‘सीरिया पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन’ के शीघ्र आयोजन में सहायता मिलेगी तथा इससे सीरिया के संघर्ष में शामिल सभी पक्षों को इस संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए वार्ता की मेज पर लाया जा सकेगा।

10. पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर भारत का क्या नजरिया है?

भारत पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण, मैत्रीपूर्ण तथा सहयोगात्मक संबंधों के पक्ष में है, जिसके लिए आतंक तथा हिंसा मुक्त माहौल जरूरी है। भारत सीमा पार से लगातार प्रोत्साहन तथा सहायता प्राप्त आतंकवाद का सामना करने और उसे परास्त करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। हमने पाकिस्तान को लगातार यह याद दिलाया है कि उसे अपनी भूमि से भारत के विरुद्ध किसी भी प्रकार के आतंकवाद को प्रश्रय न देने के अपने वायदे को पूरा करना चाहिए। पाकिस्तान को आतंकवादी नेटवर्क, तथा अपनी भूमि से संचालित संगठनों और अवसंरचना को खत्म करने के लिए दृढ़ कार्रवाई दिखानी होगी।

भारत की जनता यह उम्मीद करती है कि पाकिस्तान द्वारा, इस्लामाबाद में जिन पर मुकदमा चल रहा है उन लोगों सहित, उन पाकिस्तानी नागरिकों के विरुद्ध जांच करने और न्याय के कटघरे में लाने के लिए ठोस प्रयास किए जाएंगे जो नवंबर, 2008 में मुंबई पर आतंकवादी हमले के लिए जिम्मेदार हैं।

11. भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ अपने मसलों को कैसे सुलझाया जाएगा?

भारत, जम्मू-कश्मीर के भारतीय राज्य से संबंधित अनसुलझे मसलों का 1972 के शिमला समझौते के तहत सहमत, शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल करने की प्रति प्रतिबद्ध है1...