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भारत के राष्ट्रपति ने भारतीय सिविल लेखा सेवा की 40वीं वर्षगांठ के समारोह में भाग लिया

राष्ट्रपति भवन : 01.03.2016

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज 01 मार्च, 2016 को नई दिल्ली में भारतीय सिविल लेखा सेवा की 40वीं वर्षगांठ के समारोह में भाग लिया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि वे भारतीय सिविल लेखा सेवा के लेखाओं के विभागीकरण और सृजन के बाद हुए महत्वपूर्ण सुधार और पहलों से बहुत प्रसन्न हैं। उन्होंने देश की सेवा में अपने उत्तरदायित्वों के प्रभावी और दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए भारतीय सिविल लेखा सेवा के महालेखानियंत्रक, अधिकारियों और कर्मचारियों को मुबारकबाद दिया। उन्होंने कहा कि वे यह जानकर खुश हैं कि पिछले चालीस वर्षों के दौरान महालेखानियंत्रक के कार्यालय ने सूचना प्रौद्योगिकी में स्वचालीकरण प्रणाली और मानव संसाधन के प्रशिक्षण में पर्याप्त निवेश किया है। इसके परिणामस्वरूप नीति निर्माताओं को उच्च गुणवत्ता प्रदान करने, सामयिक रिपोर्टें और व्यय तथा राजस्व की मासिक और वार्षिक रिपोर्ट के विश्लेषण के अतिरिक्त केन्द्र सरकार के भुगतान और लेखाकरण दोनों में ही समग्र सुधार हुआ है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार हमारी आबादी के वित्तीय रूप से वंचित और उपेक्षित वर्गों तक पहुंचने के लिए प्रधान साधन के रूप में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण साधन को उच्च प्राथमिकता देती है। राष्ट्रपति ने कहा कि लाभकारी बैंक लेखों को निधि के प्रत्यक्ष अंतरण के इस साधन ने पारदर्शिता सुनिश्चित की है। इससे विलंब की समाप्ति हुई है और भ्रष्टाचार स्तर में दृष्टिगत कमी आई है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार भविष्य में पीएफएमएस पोर्टल पर और अधिक कल्याण योजनाएं लेकर आएगी। उन्होंने कहा कि हम गरीबों और जरूरतमंदों के जीवन में सुधार के लिए अपनी ई-गवर्नेंस क्षमताओं को काम में लाएं और उनका लाभ उठाएं और भारत को एक अधिक साम्य और वित्तीय रूप से समेकित समाज के रूप में परिवर्तित करें।

भारतीय सिविल लेखा के अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि उनके संगठन की सर्वप्रथम चुनौति लोक वित्त की सामयिक और विश्वसनीय वित्तीय रिपोर्टिंग है, जो एक प्रभावी और स्वस्थ वित्तीय प्रबंधन प्रणाली की रीढ़ की हड्डी है। एक अन्य दबावगत आवश्यकता संबंधित मंत्रालयों द्वारा परियोजनाओं और योजनाओं के कार्यान्वयन में निरीक्षण प्रणाली को आवश्यकता मजबूत करने की है। आज आंतरिक लेखा परीक्षण का कार्य बहुधा लेखा परीक्षा के अनुपालन तक सीमित है। इसमें परिवर्तन की आवश्यकता है-लागत और समय की बचत के लिए आंतरिक लेखा परीक्षा को कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्यवन में सहायता पहुंचाना है। इसके अतिरिक्त अनुपालन से ध्यान हटाकर जोखिम प्रबंधन, शमन और नियंत्रण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि महालेखा नियंत्रक ने इस संबंध में अनेक उपाय किए हैं। इस प्रक्रिया को निरंतर बनाए रखने की आवश्यकता है।

श्री अरुण जेटली, वित्ती मंत्री ने इस अवसर पर भारतीय सिविल लेखा संगठन के इतिहास पर एक पुस्तक का विमोचन किया और राष्ट्रपति को इसकी प्रथम प्रति भेंट की।

अन्य गणमान्य व्यक्तियों में श्री शशिकांत शर्मा, भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक; श्री रतन पी वॉटल, सचिव, वित्त मंत्री और श्री एम.जे. जोसेफ, महालेखानियंत्रक मौजूद थे।

यह विज्ञप्ति 1350 बजे जारी की गई।