भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने कुलाध्यक्ष के रूप में आज (3 अप्रैल, 2014) राष्ट्रपति भवन में भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरु तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों के निदेशकों की एक बैठक को संबोधित किया। यह बैठक फरवरी, 2013 और 2014 में आयोजित केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन तथा नवम्बर, 2013 में आयोजित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशकों के सम्मेलन के अनुक्रम में आयोजित की गई थी।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने भारतीय विज्ञान संस्थान तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों से औसत दर्जे की मानसिकता को नजरअंदाज करते हुए उत्कृष्टता की संस्तुति को बढ़ावा देने के लिए आग्रह किया। उन्होंने कहा कि विज्ञान, शिक्षा, अनुसंधान और नवान्वेषण ऐसे चार स्तंभ हैं जिन पर राष्ट्र का विकास और कार्य संस्कृति आधारित होती है। वैज्ञानिक प्रवृत्ति तब तक जाग्रत नहीं हो सकती जब तक हम सभी स्तरों पर शिक्षा की उपलब्धता नहीं सुधारेंगे। भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों को अनुसंधान के एक बौद्धिक रूप से जीवंत माहौल में विज्ञान का शिक्षण करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवान्वेषण नीति 2013 घोषित कर दी है। इस नीति का एक प्रमुख तत्त्व भारत को 2020 तक पांच वैश्विक वैज्ञानिक शक्तियों में स्थान दिलाना है। भरतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों तथा भारतीय विज्ञान संस्थान को वैज्ञानिक कौशल के हमारे स्वप्न को साकार करने में एक प्रमुख भूमिका निभानी होगी।
ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 55 से 106 होने की ओर ध्यान दिलाते हुए राष्ट्रपति ने शिक्षा की गुणवत्ता के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यदि वर्तमान शैक्षिक स्तर को ऊंचा न किया गया तो आबादी से होने वाला लाभ एक खाली सपना बनकर रह जाएगा। यदि हमारे युवाओं को उत्तम शिक्षा और आवश्यक कौशल प्रदान नहीं करवाए गए तो वे राष्ट्र निर्माण में कम योगदान दे पाएंगे।
राष्ट्रपति के आरंभिक उद्बोधन के बाद, भारतीय विज्ञान संस्थान और भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों के निदेशकों ने परिचर्चा की कार्य सूची के विषयों, अर्थात् भारतीय विज्ञान संस्थान तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों का दर्जा, सरकारी सहयोग की जरूरत वाले मुद्दे तथा भारतीय विज्ञान तथा भारतीय विज्ञान संस्थान तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों को विश्व स्तरीय संस्थान बनाने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के बारे में प्रस्तुतियां दीं।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री, डॉ. एम.एम. पल्लम राजू; राष्ट्रीय अनुसंधान प्रोफेसर डॉ. सी.एन.आर. राव तथा सचिव, उच्चतर शिक्षा, श्री अशोक ठाकुर ने भी बैठक को संबोधित किया।
अपने समापन उद्बोधन में, राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय विज्ञान संस्थान तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों जैसे प्रख्यात संस्थानों के बावजूद, भारत तृतीयक शिक्षा के लिए प्रत्येक वर्ष दो लाख से ज्यादा विद्यार्थी विदेश भेजता है। उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों के निदेशकों का आह्वान किया कि वे न केवल हमारे विद्यार्थियों के लिए अवसर खोजें बल्कि और अधिक विदेशी विद्यार्थियों को भारत में अध्ययन करने के लिए आकर्षित करें। उन्होंने कहा कि भारत को एक महाशक्ति बनाने के लिए हमें न केवल अपनी प्रतिभाओं को वरन् विश्व की प्रतिभाओं को प्रशस्त करना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि सुशासन किसी भी संगठन की सफलता की कुंजी है। एक ऐसे लचीले शासन ढांचे की जरूरत है जो निगरानी योग्य हो, रचनात्मक हो, तथा उच्चतम शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोत्तम विश्व परिपाटियों के साथ गति बनाकर रख सके। उन्होंने निदेशकों से पूर्व विद्यार्थियो का डाटा-बेस तैयार करने तथा शासन ढांचे में पूर्व विद्यार्थियों को शामिल करने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि स्थानीय उद्योगों, उद्योग संघों, पूर्व विद्यार्थियों तथा संकाय सदस्यों को मिलाकर एक ‘उद्योग संपर्क सेल’ का गठन किया जाना चाहिए। भारतीय विज्ञान संस्थान तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थानों को भी उन्नत अनुसंधान केंद्रों तथा जमीनी नवान्वेषकों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा केंद्रीय विश्वविद्यालयों के समान ही ‘नवान्वेषण संजाल’ गठित करना चाहिए। राष्ट्रपति ने निदेशकों से आग्रह किया कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए तेजी से अवसंरचना और संकाय में बढ़ोतरी करें कि उनके संस्थान पूर्ण क्षमता से कार्य करें। उन्होंने कहा कि ऐसी बैठकें प्रतिवर्ष आयोजित की जाएंगी।
यह विज्ञप्ति 1420 बजे जारी की गई।