भारत के राष्ट्रपति ने, आज (01 दिसम्बर, 2015) अहमदाबाद, गुजरात में गुजरात विद्यापीठ के 62वें दीक्षांत समारोह को संबोधित किया।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि गांधीजी ने सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए नई तालीम का सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसका अर्थ है कि ज्ञान और कार्य अलग-अलग नहीं हैं। हृदय, हाथ और मस्तक नई तालीम के तीन अंग हैं। इस दर्शन को अमल में लाने के लिए गांधीजी ने सभी के लिए मूल शिक्षा के शैक्षिक पाठ्यक्रम को प्रोत्साहन दिया। गुजरात संभवत: अकेला राज्य है जहां सुदूर इलाकों में कार्यरत आश्रमशालाएं और बुनियादी स्कूलों के जरिए नई तालीम संस्थागत तौर पर मौजूद है। नई तालीम चरित्र निर्माण को प्रेरित करता है जिसकी प्रासंगिकता दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। मूल्यपरकता युक्त शिक्षा, शिक्षा में हमारे दृष्टिकोण को दिशा देगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि गुजरात विद्यापीठ विद्यार्थियों को चरित्र निर्माण, योग्यता, संस्कृति और विवेकशीलता से युक्त शिक्षा प्रदान करती है। देश को गांधीवादी आदर्शों के अनुसार देश को पुनऊर्र्जावान बनाने की आवश्यकता है। बढ़ते शहरीकरण के बावजूद, देश की 68 प्रतिशत जनसंख्या अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, कौशल निर्माण, रोजगार, प्रौद्योगिकी प्रसार,स्वास्थ्य और पोषण,आवास, पेयजल और स्वच्छता के प्रयास से ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि तथा गरीबी के मुद्दों का समाधान हो जाएगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि गुजरात विद्यापीठ के विद्यार्थी गांधीजी की संकल्पना के अनुसार ग्रामीण विकास में मदद करने के लिए प्रशिक्षित हैं। वे अपने श्रम के जरिए कैम्पस को स्वच्छ रखते हैं। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि गुजरात विद्यापीठ समान उत्साह के साथ विद्यार्थियों को चरखा और कंप्यूटर की शिक्षा देती है तथा उनमें श्रम के प्रति सम्मान की भावना पैदा करती है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वे अपने प्रशिक्षण का श्रेष्ठ प्रयोग करेंगे तथा हमारे राष्ट्र के योग्य नागरिक बनेंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि सामुदायिक जीवन में ऐसी परंपराएं एक दिन में निर्मित नहीं होती हैं। इसे इस श्रेष्ठ परंपरा के प्रचार प्रसार का प्रयास करना चाहिए। बापू के अनुसार स्वच्छ भारत का अर्थ है स्वच्छ मन, स्वच्छ तन और स्वच्छ पर्यावरण। प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य स्वच्छ भारत को संभव बनाने के लिए स्वयं के और समाज के बाहरी और आंतरिक वातावरण को स्वच्छ बनाना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि गांधीजी जीवनभर और मृत्यु के समय भी सांप्रदायिक सौहार्द के लिए संघर्ष करते रहे। शांति और सौहार्द की शिक्षा समाज की विघटनकारी ताकतों पर नियंत्रण और उन्हें पुनर्भिमुख करने की कुंजी है। गुजरात विद्यापीठ का ध्येय वाक्य ‘स: विद्या य: विमुक्ताय’ अर्थात ‘शिक्षा मुक्त करना है।’ गुजरात विद्यापीठ के विद्यार्थी न केवल गांधीवादी विचारों की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं बल्कि विश्व पंथों का परिचय भी देते हैं। इस संस्थान को यह दर्शाना चाहिए कि सामाजिक नवीकरण अहिंसा द्वारा युवाओं के हृदय और मन को शिक्षित करके संभव है।
यह विज्ञप्ति1220 बजे जारी की गई।