भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (5 फरवरी, 2013) राष्ट्रपति भवन में केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियों के सम्मेलन को संबोधित किया। इस प्रकार का सम्मेलन 10 वर्षों के अंतराल पर आयोजित किया जा रहा है।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि विश्वविद्यालय ज्ञान प्राप्त करने की ऐसे पीठ हैं जो कि स्वयं मानव मस्तिष्क की सीमाओं के अलावा कोई अन्य सीमाएं स्वीकार नहीं करती। उन्होंने कहा कि वे संस्कृति के अभिरक्षक हैं तथा बाहरी विश्व के साथ संपर्क का माध्यम हैं। उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालयों को केवल ज्ञान और कौशल ही नहीं प्रदान करना चाहिए बल्कि मानवता के मूल्यों और सदाचार का भी समावेश करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि जहां यह देश के प्रौद्योगिकीय तथा आर्थिक प्रगति को प्राप्त करने का सशक्त साधन है वहीं उच्च शिक्षा को उन युवाओं की आकांक्षाओं को भी पूरा करना होगा जो कि अधीर हैं और मार्गदर्शन चाहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि उच्च शिक्षा के महत्त्वर्ण संस्थानों में, महत्त्वपूर्ण अकादमिक तथा अनुसंधान पदों के लिए जरूरी प्रतिभा की कमी एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस दिशा में एक अन्य भारी चुनौती है विनियामक ढांचा और शासन की गुणवत्ता। उन्होंने कहा कि इसलिए अब हमारा ध्यान ऐसी नीति के निर्माण पर होना चाहिए जो स्वायत्तता और सुशासन को बढ़ावा दे। राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि बौद्धिक पूंजी के प्रस्थान को संकाय सदस्यों की सेवा शर्तों में सुधार करके तथा उन्हें देश के अंदर संस्थाओं में लंबी अवधि तक सेवा करने के लिए प्रोत्साहन देकर रोकना होगा।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सामाजिक दायित्वों तथा गुणवत्ता संबंधी मानकों की अनदेखी किए बिना उपयुक्त नीतियां बनाकर निजी सेक्टर की सहभागिता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों को इस नीति को कार्यान्वित करने तथा भारत को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए उत्प्रेरक की भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालयों को संकाय की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अधिक सक्रियता से काम करना होगा और उन्हें जमीनी स्तर के नवान्वेषकों की एक निर्देशिका तैयार करनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हम अपने देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर में गिरावट देख रहे हैं। 2008 में राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को एक ऐसा ‘निस्तबद्ध संकट जो गहराई तक पहुंच चुका है’, बताया था। हमें इस रुझान को उलटना होगा और इसके लिए हमें सामूहिक प्रतिभा की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि ज्ञान की प्राप्ति लोगों के सशक्त बनाने के हमारे प्रयासों की बुनियाद है। हालांकि भारत में विश्व की दूसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली मौजूद है परंतु 2010 में कुल पंजीकरण केवल 19 प्रतिशत के लगभग था जो कि 29 प्रतिशत के विश्व औसत से बहुत कम है। उन्होंने कहा कि वंचित तबके के लोगों का पंजीकरण बड़ी चिंता का कारण है। उन्होंने कहा कि, उदाहरण के लिए अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या के लिए उच्च शिक्षा में कुल पंजीकरण का औसत, राष्ट्रीय औसत का केवल आधा है।
राष्ट्रपति ने जोर देते हुए कहा कि साधारण सा तथ्य यह है कि अभी बहुत कुछ किया जाना है। उन्होंने कहा कि हमें अभी प्रदान की जा रही शिक्षा की गुणवत्ता पर तथा अपने निवास स्थान के नजदीक उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उम्मीदवारों को अवसरों की उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि पिछली बार 2003 में सम्मेलन के आयोजन के बाद से शैक्षिक परिदृश्य में भारी बदलाव आ चुका है। उन्होंने कहा कि अपने उच्च शिक्षा के संस्थानों में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना एक ऐसी जरूरी चुनौती है जिस पर हमें सामूहिक रूप से विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों से आदर्श बनने की अपेक्षा है तथा उनके लिए एक महत्त्वपूर्ण भूमिका की परिकल्पना की गई है।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. एम.एम. पल्लम राजू ने विश्वविद्यालयों के अनिवार्य प्रमाणन पर जोर दिया जिससे गुणवत्ता मानक स्थापित होंगे। उन्होंने कहा कि इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए शिक्षकों को प्रेरित करना होगा तथा संकाय की क्षमता निर्माण पर एक केंद्रित नजरिया अपनाना होगा।
इस अवसर पर उपस्थित उच्चाधिकािरयों में, डॉ. सैम पित्रोदा, अध्यक्ष, राष्ट्रीय नवाचार परिषद, डॉ. शशि थरूर एवं श्री जितिन प्रसाद, मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री, प्रोफेसर वेद प्रकाश, अध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति शामिल थे।
यह विज्ञप्ति 1330 बजे जारी की गई