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राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत द्वारा विश्व के अग्रणी राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल होने के लिए एक मजबूत शिक्षा प्रणाली अत्यावश्यक है।

राष्ट्रपति भवन : 05.06.2014

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (5 जून, 2014) सर आशुतोष मुकर्जी की 150वीं जन्म जयंती के उपलक्ष्य में सर आशुतोष मुकर्जी स्मृति व्याख्यान दिया।

इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि यदि भारत को विश्व के अग्रणी राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल होना है तो इसका मार्ग केवल एक मजबूत शिक्षा प्रणाली ही है। भारत को आज सर आशुतोष मुकर्जी जैसे व्यक्तियों की जरूरत है जो हमारे देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए तत्पर हों। उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों के नेतृत्व का आह्वान किया कि वे भारत के इस महान सपूत के कदमों का अनुसरण करें।

राष्ट्रपति ने कहा कि सर आशुतोष मुकर्जी में अकादमिक प्रतिभा का अद्भुत संगम था। उनका एक समन्वित व्यक्तित्व था, वह घोर स्वतंत्रतावादी थे तथा अन्तरविधात्मक विद्वत्ता का शानदार उदाहरण थे। वह एक भाषाविद् भी थे जो 1906 में बंगाल टेक्नीकल इंस्टिट्यूट तथा 1914 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ साइंस की स्थापना के लिए उत्तरदायी थे। उनके मार्गदर्शन के तहत, कलकत्ता विश्वविद्यालय इस भारतीय उप-महाद्वीप में ज्ञान एवं अनुसंधान के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा, जिसमें लाहौर से लेकर रंगून तक के विद्यार्थी पढ़ते थे। उनका खरा व्यक्तित्व तब सामने आया जब उन्होंने 1923 में कुलपति का पद लेने से अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उपनिवेशवादी सरकार द्वारा शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण को पुन: स्थापित करने के प्रयास हो रहे थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि सर आशुतोष ने शैक्षणिक संस्थानों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास किए। अपने संकल्प, उत्साह, कठोर परिश्रम तथा इस सबसे कहीं अधिक अपने शानदार नेतृत्व के माध्यम से उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय को विश्व के अग्रणी संस्थानों की श्रेणी में लाने का प्रयास किया। राष्ट्रपति ने कहा कि इसी तरह हमें अपने विश्वविद्यालयों को विश्व स्तरीय संस्थानों में रूपांतरित करना होगा। तीसरी सदी ईसा पूर्व में तक्षशिला की स्थापना से लेकर 12वीं सदी ईस्वी तक के लगभग 1500 वर्षों के दौरान भारत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी था। परंतु आज हमारे विश्वविद्यालय विश्व के सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों से पिछड़े हुए हैं। हमें अपने देश की उच्च शिक्षा को उच्च प्राथमिकता देते हुए इसके गिरते स्तर में तत्काल सुधार करना होगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमें सर आशुतोष से भारत और विश्व के अन्य क्षेत्रों से विद्वानों के साथ संवाद के द्वारा विचारों के आपसी प्रस्फुटन को सुनिश्चित करने के महत्त्व से सीख लेनी होगी। हमारी शिक्षा संस्थाओं को उन सीमाओं का हटा लेना चाहिए जिसके तहत विभिन्न विधाएं कार्य करती हैं तथा मानविकी, विज्ञान, भाषा तथा अन्य विधाओं के बीच विचारों को सौहार्दपूर्ण आदान-प्रदान के प्रयास करने चाहिए। यही परिवेश नालंदा एवं तक्षशिला के उत्कर्ष काल में वहां मौजूद था।

राष्ट्रपति ने कहा कि सर आशुतोष ने अनुसंधान के महत्त्व को समझा। परंतु आजकल हमारे उच्च शिक्षा ढांचे में अनुसंधान एक उपेक्षित क्षेत्र है। सफल अनुसंधान कार्यक्रमों में लोगों के जीवन में बदलाव लाने की भारी संभावाएं मौजूद हैं, इसलिए हमारे विश्वविद्यालयों को सर्जनात्मक प्रयासों की उर्वरा भूमि बनना होगा। उन्हें अत्याधुनिक नवान्वेषणों तथा प्रौद्योगिकीय विकास का स्रोत बनना होगा। विश्वविद्यालयों को अपने आविष्कारों तथा खोजों के द्वारा पेटेंटों के पंजीकरण में हमारे देश को अग्रदूत बनाना होगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि सर आशुतोष ने सर सी.वी. रमण और डॉ. एस. राधाकृष्णन जैसी प्रतिभाओं की खोज करने में योगदान दिया। उन्होंने किताबी ज्ञान के क्षेत्र से बाहर निकलकर सर सी.वी. रमण को नियुक्त किया जो कलकत्ता टकसाल में कर्मचारी थे। इस प्रकार सर आशुतोष ने दृढ़ आत्मविश्वास तथा जोखिम उठाने की योग्यता दर्शाई, जिन गुणों का अनुकरण हमारे आज के कुलपतियों द्वारा किया जाना चाहिए। हमें यह मानना होगा कि अच्छे शिक्षक हमारी शिक्षा प्रणाली के अति महत्त्वपूर्ण अंग हैं। हमारे विश्वविद्यालयों को ऐसे प्रेरित शिक्षकों की पहचान करने में सक्षम होना चाहिए जो विद्यार्थियों को अलग नजरिए से विचार करने के लिए प्रेरित कर सकें तथा उनमें सर्वांगीण शिक्षा की शुरुआत कर सकें। इस प्रकार के शिक्षकों को कनिष्ठ शिक्षकों और विद्यार्थियों को मार्गदर्शन देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि अकादमिक सत्यनिष्ठा को हर कीमत पर बनाए रखा जाना चाहिए। विद्यार्थियों को अपनी मातृ संस्था के प्रति लगाव बनाए रखने के लिए तथा इसकी प्रगति और विकास में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हमारी शिक्षण संस्थाओं को औसत दर्जे के गंदले पानी से बाहर निकलने के लिए क्रांतिकारी विचारों की जरूरत है। शासन के ढांचों को नवान्वेषी विचार के प्रति सहयोगात्मक रुख अपनाना तथा उन्हें तेजी से निर्णय लेने में सहायक बनना होगा। ऐसे पूर्व विद्यार्थियों की दक्षता एवं अनुभव को कारगर विश्वविद्यालय प्रबंधन में उपयोग किया जा सकता है जो सुस्थापित हैं। हमारे विश्वविद्यालयों, खासकर प्राचीन, को अपनी गतिविधियों में पूर्व विद्यार्थियों को जोड़ने का सुनिश्चित प्रयास करना चाहिए।

यह विज्ञप्ति 1908 बजे जारी की गई।