भारतीय वन सेवा के 2013-15 बैच के परिवीक्षाधीनों के एक समूह ने आज (5 अगस्त, 2014) राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी से भेंट की।
परिवीक्षाधीनों को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि वन केवल एक संसाधन नहीं है, बल्कि वे देश के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक विरासत को समेटे हुए हैं। सरकार ने उन्हें इस अत्यधिक मूल्यवान विरासत की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी है। उन्होंने कहा कि विगत कुछ दशकों के दौरान, पर्यावरणीय हृस,वन क्षेत्र में कमी तथा सबसे बढ़कर जलवायु परिवर्तन लाने वाले वैश्विक तापन के कारण मानवता के अस्तित्व के खतरे के प्रति विश्व सचेत हुआ है। इसीलिए पर्यावरण 21वीं शताब्दी की प्रमुख कार्यसूची के रूप में उभरा है जिसमें वन एक अभिन्न हिस्सा हैं। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न दुष्प्रभावों पर ध्यान देने के लिए, मिलजुलकर इस मुद्दे का समाधान करने के लिए देशों का एकजुट होना अत्यावश्यक है।
राष्ट्रपति ने कहा कि वन प्रबंधन और इसका संचालन एक चुनौतिपूर्ण कार्य है। इसे प्रौद्योगिकी के व्यापक प्रयोग के जरिए नागरिक अनुकूल बनाया जा सकता है। परिवीक्षाधीनों को परिवर्तनशील अंतरराष्ट्रीय और घरेलू वन प्रबंधन मुद्दों की जानकारी रखनी चाहिए तथा अपने पेशे की सर्वोत्तम परिपाटियों को अपनाना चाहिए।
2013-15बैच के भारतीय वन सेवा के परिवीक्षाधीन वर्तमान में इदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, देहरादून में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं तथा संसदीय अध्ययन और प्रशिक्षण ब्यूरो में संसदीय प्रक्रियाओं और कार्यप्रणलियों में एक अभिमुखीकरण पाठ्यक्रम में भाग ले रहे हैं।
यह विज्ञप्ति 1845 बजे जारी की गई।