भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (6 अप्रैल, 2013) मुंबई में भारतीय नौसेना के ले. कमांडर अभिलाष टॉमी द्वारा अकेले, बिना रुके, बाहरी सहायता रहित, पूरे विश्व की नौपरिक्रमा-‘सागर परिक्रमा-II’ के समापन समारोह में भाग लिया।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि समुद्र में 150 दिनों तक अकेले, बिना रुके, बिना सहायता के तथा विश्व के कुछ अत्यंत कठिन समुद्रों में नौवहन करना एक शानदार उपलब्धि है। उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि ले. कमांडर अभिलाष टॉमी की उपलब्धि नाविकों की भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। उनकी इस ऐतिहासिक यात्रा ने भारत को कुछ ऐसे देशों की श्रेणी में खड़ा कर दिया है जिनके नागरिक इस तरह की कठिन समुद्री यात्रा पूरी करने में सफल रहे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि देश की सामाजिक तथा आर्थिक खुशहाली, न केवल व्यापार के नजरिए से, बल्कि इस नजरिए से भी कि वह समुद्र की तरफ से होने वाले सुरक्षा खतरों से कैसे निपटता है, समुद्रों से सघनता से जुड़ी हुई है। राज्य से इतर शक्तियों के माध्यम से समुद्रों में आतंकवाद को प्रायोजित किया जाना पूरे देश के लिए अत्यंत चिंता का विषय है।
राष्ट्रपति ने कहा कि निरंतर उच्च विकास प्राप्त करने के हमारे निश्चय को तभी प्राप्त किया जा सकता है जब हमारी समुद्री सीमाएं तथा परिसंपत्तियां सुरक्षित और स्थिर हों और वे सहायता प्रदाता के रूप में कार्य करें। भारत की नौसेना पर, भारत की समुद्री शक्ति का प्रमुख अंग होने के नाते, देश की समुद्री हितों की रक्षा के चुनौतीपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी है। भारत के सुरक्षा परिवेश में नौसेना की नेतृत्व की भूमिका निर्धारित है। यह बहुत गर्व की बात है कि भारतीय नौसेना अपनी जिम्मेदारियों को पेशेवर उत्कृष्टता तथा उत्साह के साथ पूरा कर रही है और इसी के साथ समुद्रों के आर-पार मैत्री और सौहार्द के सेतुओं का निर्माण कर रही है।
यह विज्ञप्ति 1720 बजे जारी की गई