भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (07 सितंबर, 2016) नई दिल्ली में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रथम दीक्षांत समारोह में भाग लिया।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने सभी स्नातक विद्यार्थियों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली का प्रथम दीक्षांत समारोह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। एक ट्रांजिट कैंपस में कार्य करने के बावजूद इसने शिक्षा के स्तर को बनाए रखने तथा शैक्षिक कार्यकलाप के लिए अत्याधुनिक ढांचागत सुविधाएं प्रदान करने के सर्वोत्तम प्रयास किए हैं। इस संस्थान में अल्प समय में ही एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। उन्होंने प्रबंधन की इसकी दूरदृष्टि, संकाय सदस्यों को उनकी निष्ठा और समर्पण तथा कर्मचारियों को उनके परिश्रम और लगन के लिए सराहना की। उन्होंने उनका गौरव और संकल्प के साथ आगे बढ़ने का आह्वान किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे उच्च शिक्षा केंद्रों पर भविष्य के राष्ट्र निर्माताओं को तैयार करने का भारी दायित्व है। उन्हें कुशल तरीके से विद्यार्थियों के शैक्षिक प्रयास तथा क्षमता निर्माण में सहयोग देना चाहिए। उन्हें निरंतर विकास और शिक्षण को बढ़ावा देना चाहिए। विद्यार्थियों को आजीवन प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षा प्रणाली के माध्यम से विशेष क्षमताएं पैदा करनी होंगी। उन्होंने इन क्षमताओं को तीन महत्वपूर्ण हिस्सों में बांटा (1) प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए कुशल बननाः संस्थानों को ज्ञान नेटवर्क और विश्व स्तरीय प्रयोगशाला उपकरणों से सुसज्जित होना चाहिए। इससे विद्यार्थियों को श्रेष्ठ उपकरणों और यंत्रों के साथ कार्य करने और प्रयोग करने में मदद मिलेगी। शिक्षकों को नवीनतम जानकारी के द्वारा स्वयं को अद्यतन बनाए रखना चाहिए। तभी अग्रणी ज्ञान का प्रचार-प्रसार विद्यार्थियों तक हो पाएगा। (2) अग्रणी अनुसंधान और नवान्वेषण का उत्साह होनाः एक मजबूत अनुसंधान उन्मुखीकरण से हमारे इंजीनियरी विद्यार्थी विनिर्माण और डिजाइन के बारे में अत्यधिक मूल्य संवर्धन कर सकते हैं। इंटरनेट और मल्टीमीडिया के इस युग में उपलब्ध सूचनाओं की मात्रा बहुत अधिक है। विद्यार्थियों को बाहरी क्षेत्र से व्यापक ज्ञान प्राप्त करना तथा नवान्वेषी डिजाइन और मॉडल विकसित करने के लिए अपनी शिक्षण रूप-रेखा को प्रयोग करना सीखना चाहिए। उदीयमान इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के रूप में उन्हें समाज की तेजी से बदलती हुई आवश्यकताओं की जानकारी रखनी चाहिए तथा मानव पहलुओं को ध्यान में रखते हुए समस्याओं के समाधान का प्रयास करना चाहिए तथा (3) व्यक्तित्व के समग्र विकास पर बल देनाः सामाजिक विकास के लिए उद्यमिता की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके लिए विद्यार्थियों में मानव बेहतरी की संकल्पना पैदा करनी होगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत ने तकनीकी शिक्षा की हमारी भावी दिशा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों जैसे हमारे अग्रणी इंजीनियर संस्थान निश्चित करेंगे। उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में श्रेष्ठ शिक्षा प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है। एक उत्कृष्ट अनुसंधान और अध्यापन ढांचा तथा निष्ठावान शिक्षक उन्हें सर्वोच्च संस्थान के रूप में निर्मित करने के स्तंभ होंगे। वैश्वीकृत दुनिया के लिए विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करने के लिए योग्य शिक्षकों द्वारा विश्व श्रेणी के अध्यापन की आवश्यकता है। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, अंतरराष्ट्रीय सेमीनारों और कार्यशालाओं में भागीदारी तथा समकक्ष जर्नलों में पत्रों के प्रकाशन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे उच्च शिक्षा संस्थान अपनी विशेषज्ञता प्रयोग करके तथा विद्यार्थियों को बनुयादी स्तर की समस्याओं की पहचान और उनके समाधान में शामिल करके कुशल भारत, स्टार्ट अप इंडिया जैसी पहलों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत एक प्राचीन देश है परंतु एक युवा राष्ट्र है। इसने स्वतंत्रता के बाद से उद्योग से लेकर कृषि और सेवा सभी क्षेत्रों में प्रगति करते हुए महत्वपूर्ण विकास किया है। हमारी क्षमताओं को देखते हुए हम शीघ्र विश्व के उन्नत देशों में शामिल हो सकते हैं। हमारी आकांक्षाएं बड़ी हैं परंतु पूरी की जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें इंजीनियरों, प्रौद्योगिकीविदों, वैज्ञानिकों, प्रबंधकों, प्रशासकों, नीति निर्माताओं, डॉक्टरों, वकीलों, विद्वानों और शोधकर्ताओं की क्षमता, कौशल और प्रतिभा से विश्वास प्राप्त होता है। इन्हीं पर ही हमारी विकास चुनौती को पूरा करने का दायित्व टिका हुआ है। उन्होंने विद्यार्थियों को उनके भावी रोजगार के लिए शुभकामनाएं दीं और कहा कि समाज उन्हें परिवर्तन दूत के रूप में देखता है।
यह विज्ञप्ति 1715 बजे जारी की गई।