भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी आज (8 फरवरी 2015) राष्ट्रपति भवन में मिशन प्रमुखों के छठे सम्मेलन के प्रतिभागियों से मिले।
विदेशों में भारतीय मिशनों के प्रमुख,राजदूतों और उच्चायुक्तों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत ने पिछले वर्ष मई में नई सरकार के शपथ ग्रहण में भाग लेने के लिए दक्षेस राजदूतों के प्रमुखों को बुलाकर एक ऊर्जा और साहसिक नेतृत्व का परिचय दिया था। इस पहल को, अपनी सुरक्षा की हिफाजत तथा अभेद्य सुरक्षा प्रणाली स्थापित करने पर अविचल रहते हुए, प्रभावी कूटनीति के माध्यम से इसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाने के लिए अनुवर्ती कार्रवाई होनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक कहावत कभी भी पुरानी नहीं पड़ती, ‘आप अपने मित्र चुन सकते हैं परंतु पड़ोसी नहीं।’ पड़ोसियों को एक मजबूत संदेश दिया गया था कि इस क्षेत्र को यह फैसला करना होगा कि क्या उसे निरंतर तनाव में जीना है या समझ-बूझ के साथ। अपने पड़ोस में हमारी पहलों के बाद ऐसे कदम उठाए जाने चाहिएं जिससे हमारे रिश्तों में हुई प्रगति को सुदृढ़ तथा स्थाई बनाया जा सके।
आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई के मुद्दे पर राष्ट्रपति ने कहा कि हमने पिछले दिनों सीरिया में निरपराध बंधकों की नृशंस हत्याएं, पेरिस में मीडिया पर आक्रमण तथा पेशावर में स्कूली बच्चों और उनके शिक्षकों की दुखद हत्याएं देखी हैं। आतंकवाद आज बुराई का उद्योग बन चुका है। यह न केवल शांति और सुरक्षा के लिए खतरा है बल्कि हम समझते हैं कि यह कुल मिलाकर मानवता और सभ्यता पर आक्रमण है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत आतंकवाद के सबसे पुराने पीड़ितों में से है। अच्छा आतंकवाद अथवा बुरा आतंकवाद जैसा कुछ नहीं होता। आतंकवाद किसी भी धर्म, सिद्धांत अथवा देश का सम्मान नहीं करता। यह अब बहस का विषय नहीं रह गया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसके विरुद्ध मुखर होना होगा तथा इस समस्या से सुव्यवस्थित, समन्वित तथा दृढ़तापूर्वक कार्यवाही करते हुए निपटना होगा। मानवीय मूल्यों के विरुद्ध इस भयंकर बुराई तथा चुनौती का दृढ़ता से तथा उचित तरीके से अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ सामना करना होगा। राष्ट्रपति ने भारत के राजदूतों और उच्चायुक्तों का आह्वान किया कि वे इस दिशा में चिंतन करें कि इस समस्या का समाधान कैसे हो तथा इस बात पर अपने सुझाव दें कि विश्व को ऐसी ठोस कार्रवाई करने के लिए कैसे एकजुट किया जाए जिससे इस बुराई में कमी आए और उसका खात्मा हो।
राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले आठ महीनों के दौरान भारत की विदेश नीति में नया जोश तथा ऊर्जस्विता दिखाई दी है। राष्ट्रपति बराक ओबामा, गणतंत्र दिवस के लिए हमारे सम्माननीय अतिथि थे। इस यात्रा का स्थाई महत्व था न कि केवल सांकेतिक। हाल ही में रूस के राष्ट्रपति पुतिन तथा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी यहां यात्रा पर आए। हम विश्व व्यापार संगठन में ऐसा समझौता करने में सफल रहे जिससे हम अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी उपाय करने की अपनी स्वतंत्रता पर दुश्प्रभाव डाले बिना, व्यापार उदारीकरण में प्रगति ला सकें। प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से भारतवंशियों से संवाद स्थापित कर रहे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि 1969 में संसद में प्रवेश करने तथा दो बार विदेश मंत्री रहने के चलते उन्होंने विदेश सेवा के अधिकारियों की कई पीढ़ियों के साथ काम किया है। उन्हें मालूम है कि मिशन प्रमुखों का कार्य आसान नहीं है। वह उनकी समस्याओं को समझते हैं। उन्हें मालूम है कि उन्होंने संकट के दौरान किस तरह अपनी क्षमता को सिद्ध किया है तथा सरकार को कभी भी शर्मिंदा नहीं होने दिया है। राष्ट्रपति जी ने युद्ध और संकटग्रस्त विदेशी राष्ट्रों से भारतीय नागरिकों को बाहर निकालने में भारतीय मिशनों द्वारा निभाई गई भूमिका को याद किया। उन्होंने कहा कि भारतीय मिशनों ने ऐसे मौकों पर पड़ोसी देशों को भी सहायता प्रदान की है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के राजनयिकों ने असाधारण साहस, कौशल और अपने लोगों की सहायता करने की इच्छा दर्शाई है। मिशन प्रमुख का कार्य श्रमसाध्य है परंतु उन्हें इसमें कोई संदेह नहीं कि आपमें से हर एक उन ऊंची अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा, जो भारत उनसे रखता है। उन्हें भरोसा है कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे कि भारत का ध्वज ऊंचा फहराता रहेगा।
यह विज्ञप्ति1510 बजे जारी की गई।