भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (8 मई, 2013) राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में ‘कान्टेम्पराइजिंग टैगोर एंड द वर्ल्ड’ पुस्तक की प्रथम प्रति स्वीकार की।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यह पुस्तक गुरुदेव टैगोर का 150वां जन्मदिवस मनाने के लिए भारत-बांग्लादेश के संयुक्त प्रयास का परिणाम है। उन्होंने कहा कि यह उस सम्मान के अनुरूप है जो भारत और बांग्लादेश, दोनों में गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर को दिया जाता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि टैगोर, उपनिषदों और गीता से, भारत में भक्ति आंदोलन से तथा बंगाल में बाउलों के दर्शन से प्रेरित थे। इन सभी में टैगोर ने मनुष्य द्वारा स्वयं में ईश्वर की प्राप्ति की तथा तदनुसार अपने धर्म तथा उद्देश्य के साथ उसी दिशा में अपने कार्योें को करने की जरूरत को महसूस किया। उन्होंने कहा कि ये सिद्धांत आज अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, भले ही हम किसी भी धर्म को मानते हों।
राष्ट्रपति ने कहा कि टैगोर ने अपने चित्रों तथा अपने गीतों, दोनों में, नारी की तथा बेहतर समाज के विकास में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका की प्रशंसा करने में कभी भी कोताही नहीं की। उन्होंने आगे कहा कि हम इस बात से अच्छी तरह अवगत हैं कि टैगोर द्वारा शिक्षा की रूपांतरकारी भूमिका तथा बच्चों, महिलाओं तथा युवाओं पर इसके प्रभाव तथा महिला सशक्तीकरण तथा परिवार और वृहत समुदाय दोनों में, समाज की मानसिकता के बदलाव में उनकी भूमिका पर अत्यंत जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि हमारी जीवनशैली के लिए मौलिक, इन मार्गदर्शक सिद्धांतों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। हम भारतीय जीवन शैली के हृस का खतरा नहीं उठा सकते।
इस अवसर पर भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष, डॉ. कर्ण सिंह, ढाका विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. ए.ए.एम.एस. अरेफिन सिद्दीकी, सामाजिक विकास परिषद के अध्यक्ष, प्रो. मुचकुंद दुबे, तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक, डॉ. सुरेश के. गोयल उपस्थित थे।
यह विज्ञप्ति 1925 बजे जारी की गई