भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के जन्म दिवस (09 मई 2015) की पूर्व संध्या पर अपने संदेश में कहा है:-
‘‘रवींद्रनाथ टैगोर के 154वें जन्म दिवस के अवसर पर मैं देशवासियों के साथ मिलकर एशिया के प्रथम नोबेल विजेता तथा भारत के एक सबसे महान बुद्धिजीवी को श्रद्धांजलि देता हूं।
यह बड़ी बात है कि एक सदी बीत जाने के बावजूद टैगोर ने प्रासंगिकता नहीं खोई है। जहां एक ओर उनकी साहित्यिक प्रखरता अभी भी भारत और दुनिया भर में लाखों प्रशंसक बना रही है वहीं शिक्षा, ग्राम-पुननिर्माण, सहकारी प्रयास तथा अन्य विषयों पर उनके विचार और संकल्पनाएं आज भी बेहतर और उज्ज्वल भविष्य की दिशा में हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं।
प्राचीन भारतीय तपोवन के आदर्श पर आधारित टैगोर की शिक्षा संकल्पना में छात्र को शुष्क तथा सुनसान कक्षाओं के बजाय खुले स्थान पर आनंद के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। मनुष्य और प्रकृति के बीच तालमेलपूर्ण संबंधों की जरूरत के नजरिये का अब समय आ गया है। इसी प्रकार, स्व-सहायता तथा पारस्परिक सौहार्द द्वारा निर्देशित सहकारी खेती पर आधारित ग्रामीण पुननिर्माण का टैगोर का विचार भी विश्व-भर में स्वीकार्य ‘सामुदायिक कॉलेज’ की अवधारणा में प्रदर्शित होता है।
एक सदी पूर्व टैगोर ने वैश्वीकरण के विचार की प्रत्याशा में राष्ट्र और सभ्यता के पारस्परिक सहयोग की परिकल्पना की थी। आज के संघर्षों से ग्रस्त विश्व में, जहां विध्वंशक शक्तियां शांति और आपसी मैत्री को नष्ट करने के लिए अपना खतरनाक सिर उठा रही हैं, टैगोर का वैश्वीकवाद का संदेश आश्वस्ति देता है तथा बेहतर भविष्य के प्रति विश्वास पैदा करता है।
गुरुदेव की जन्म जयंती के अवसर पर गीतांजलि के ये शब्द (पूजा गीत) संपूर्ण वायुमंडल में गुंजायमान हों-
जहां मन हो भय रहित तथा सर हो गर्वोन्नत;
स्वतंत्रता के उसी स्वर्ग में, हे पिता मेरे, खुले आंख मेरे देश की’’।
यह विज्ञप्ति 1045 बजे जारी की गई।