इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत ने अपना संविधान 1950 में अपनाया था और प्रथम सामान्य चुनाव 1952 में आयोजित किए गए। आरंभिक वर्षों में बहुत से लोगों को संदेह था कि भारत में लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली सफल होगी। तथापि समय-समय पर आयोजित सफलतापूर्ण चुनावों ने संशयदाताओं को गलत साबित किया। अनेक विद्वानों ने बाद में टिप्पणी की कि हम एक समन्वय युग में प्रवेश कर चुके हैं और भारत जैसे अनेकतापूर्ण देश में एकल दल सरकार बनाने की संभावना नहीं के बराबर है। तथापि 1984 और 2014, जब एक एकल राजनीतिक पार्टी के हित में निर्णायक अध्यादेश दिया गया, के अंतिम सामान्य चुनावों में यह विचार गलत साबित हुआ। राष्ट्रपति ने कहा कि चुनाव आयोजित करने के लिए कुछ एक ऐसे क्षेत्र हैं जहां ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है और असामान्यताएं हैं जिन्हें सही किया जाना है। इसके लिए चुनाव संबंधी सुधार किए जाने की आवश्यकता है जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने संसदीय प्रक्रिया में व्यवधान से बचने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जबकि लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली में 3डी अर्थात डिबेट (वाद-विवाद), डिसेंशन (मतभेद) और डिसिजन (निर्णय) अनिवार्य हैं, डिस्रप्शन (व्यावधान) पूर्णतः अस्वीकार्य है। संसद से महत्वपूर्ण मसलों जैसे कि पैसा और वित्त से संबंधित मामले हैं, पर कार्रवाई करना अपेक्षित है। मतभेद चाहे कुछ भी हों, सदस्यों को उनके विचार रखने और मामलों पर मुक्त रूप से चर्चा करने का अवसर प्राप्त है। यदि किसी सदस्य ने किसी के विरुद्ध आरोप लगाया है, तो उसपर कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि उसने यह बात सदन में कही है। संसद सदस्यों को उनको मिली इस स्वतंत्रतता की सीमा का दुरुपयोग व्यावधान पैदा करके नहीं करना चाहिए। व्यावधान से बहुसंख्य लोगों के लिए बाधा खड़ी हो जाती है क्योंकि केवल अल्पसंख्यक ही व्यावधान पैदा करते हैं और सभापति के पास प्रक्रिया को स्थगित करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह जाता।
राष्ट्रपति ने कहा कि बारंबार चुनाव आयोजित करने से प्रशासनिक और वित्तीय संसाधनों में खिंचाव पैदा होता है। हम लोकतंत्र के लिए यह मूल्य देने के लिए तैयार हैं, परंतु यह विकास की कीमत पर नहीं होना चाहिए। प्रशासनिक और विकास कार्यों पर चुनाओं के दौरान प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि कोई भी नई विकास परियोजना आरंभ नहीं की जा सकती। राज्य चुनाओं के दौरान उस राज्य में भारत सरकार से संबंधित कार्य प्रभावित नहीं होना चाहिए। चुनाव आयुक्त, राज्य और केंद्रीय सरकार और राजनीतिक दलों को एक साथ बैठकर इस मामले पर विचार-विमर्श करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के चुनाव आयुक्त घोषणा की समयबद्धता, अधिसूचना और चुनाव संचालन को कम करने पर विचार कर सकते हैं। चुनावों की अवधि बहुत लंबी हो जाती है जैसा कि इसमें बहुत से चरणों से गुजरना पड़ता है। राष्ट्रपति द्वारा दिए गए सुझावों में एक अन्य सुझाव था कि लोकसभा की सीटें अधिक हों जिसके लिए एक संवैधानिक संशोधन पर विचार किया जा सकता है। भारत में 800 मिलियन से भी अधिक मतदाता हैं। लोकसभा चुनाव क्षेत्रों का सीमा निर्धारण 1971 जनगणना के आधार पर है। आज 1.28 बिलियन लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए 543 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। लोगों की इच्छा को सही रूप से व्यक्त करने के लिए अब समय आ गया है कि हम उनकी संख्या को बढ़ाकर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के सीमा निर्धारण के कानूनी प्रावधान पर विचार करें।
राष्ट्रपति ने कहा कि एक और महत्वपूर्ण पहलू है और वह है संसद और राज्य विधानसभा में महिलाओं की सीट के लिए आरक्षण। यद्यपि देश में महिलाओं की आबादी बहुधा 50 प्रतिशत है, उनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त रूप से कम है। यह पूर्णतः अस्वीकार्य है।
अंत में राष्ट्रपति ने कहा कि वे भारतीय संसदीय प्रणाली पर गर्व करते हैं परंतु अब निर्वाचन संबंधी सुधार आवश्यक हो गया है।
यह विज्ञप्ति 1715 बजे जारी की गई।