भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (10 जनवरी, 2014) कोलकाता में मरणोपरांत मानव शरीर, अंगों तथा ऊतकों के दान संबंधी अभियान का शुभारंभ किया।
यह अभियान डॉ. मधुसूदन गुप्ता द्वारा कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में एशिया में मानव शव के प्रथम विच्छेदन की 78वीं जयंती के अवसर पर, तार्किक तथा वैज्ञानिक मनोवृत्ति को प्रोत्साहन देने में लगे हुए एक गैर सरकारी संगठन गणदर्पण द्वारा, पश्चिम बंगाल सरकार के स्वास्थ्य विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद के सहयोग से चलाया जा रहा है। इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि भारत अंग दान के मामले में बहुत से देशों से पीछे है। स्पेन प्रति मिलियन लोगों पर 35 अंगदान देने वालों के साथ विश्व में सबसे अधिक दान देने वाले देशों में है। इसी तरह अमरीका में प्रति मिलियन 26 तथा यू.के. में 13 व्यक्ति दान देते हैं और सबसे अधिक दानदाताओं में हैं। इसकी तुलना में भारत में प्रति मिलियन केवल 0.2 दानदाता हैं। भारत में अंगों की बहुत अधिक कमी है। एक आकलन के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष 2 लाख लोगों को चिकित्सकों द्वारा अंग निष्क्रियता से ग्रस्त घोषित किया जाता है और उनको जीवन बचाने के लिए अंग प्रत्यारोपण की जरूरत होती है। दिमागी तौर पर मृत व्यक्ति से 34 अंग और ऊतक प्राप्त किए जा सकते हैं। वर्ष 2012 में दिमागी तौर पर मृत दानदाताओं की अब तक सबसे अधिक 196 की संख्या प्रत्यारोपण की मांग के मुकाबले बहुत ही कम है।
राष्ट्रपति ने कहा कि लोगों के बीच मृत्योपरांत शरीर, अंग तथा ऊतक दान देने के लिए शपथ को प्रोत्साहित करने तथा इस अनोखे कार्य के बारे में शंकाओं का उन्मूलन करने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने इस बात पर दु:ख व्यक्त किया कि भारत में बहुत से लोग अभी भी अंधविश्वासों और समाज में व्याप्त बुरी प्रथाओं में विश्वास करते हैं। उन्होंने, तर्कसंगत चिंतन को प्रोत्साहन देने, चिकित्सा ज्ञान की सीमाओं में वृद्धि करने तथा अंग निष्क्रियता से ग्रस्त व्यक्तियों को नया जीवन देने की दिशा में गणदर्पण के सदस्यों द्वारा किए जा रहे शानदार कार्य के लिए इसे बधाई दी।
इस समारोह में शामिल लोगों में अपने शरीर को चिकित्सा अनुसंधान के लिए दान देने वाले तथा प्रत्यारोपण के लिए अंगों को प्रापत करने वाले लोग भी शामिल थे।
यह विज्ञप्ति 1815 बजे जारी की गई।