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राष्ट्रपति ने राज्यपालों से आग्रह किया कि वे देश की एकता एवं अखंडता को कमजोर करने वाली किसी भी कोशिश को विफल करने के प्रयासों पर दृढ़ रहें; उन्होंने कहा कि सरकारी कार्यक्रमों की सुपुर्दगी प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत है

राष्ट्रपति भवन : 11.02.2013

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (11 फरवरी, 2013) राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में राज्यपालों के 44वें सम्मेलन का शुभारंभ किया।

सम्मेलन में अपने आरंभिक संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि यह बैठक दिल्ली में एक युवती के नृशंस बलात्कार तथा मृत्यु की दुखद घटना के साये में हो रही है जिसने पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया था। उन्होंने कहा कि सरकार ने न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिशों पर त्वरित कार्रवाई की है और आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2013 बजट सत्र में संसद में प्रस्तुत किए जाने के लिए तैयार है। उन्होंने राज्यपालों से आग्रह किया कि वे महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण में सुधार की दिशा में प्रयास करें। उन्होंने कहा कि समाज की मानसिकता में बदलाव लाने की तात्कालिक जरूरत है जिससे महिलाओं के साथ गरिमा और सम्मान का बर्ताव हो।

राष्ट्रपति ने कहा कि 2012 में देश की आंतरिक सुरक्षा में सुधार आया है। तथापि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हम राष्ट्र विरोधी ताकतों की, देश की एकता एवं अखंडता को कमजोर करने वाली किसी भी कोशिश को विफल करने के प्रयासों पर दृढ़ रहें। आतंकरोधी अवसंरचना को मजबूत करने के प्रति हमारी प्रतिबद्धता मजबूत रहनी चाहिए। उन्होंने सीमावर्ती राज्यों को अधिक चौकसी बरतने की सलाह दी। उन्होंने आगे कहा कि बढ़ती हुई चुनौतियों का सामना करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में अवसंरचना विकास के लिए शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों को तेजी से पूरा करने की जरूरत है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार की सुपुर्दगी प्रणाली को मजबूत करने की तात्कालिक जरूरत है। जिन राज्यों ने तेजी से प्रगति की है, उनकी अन्य राज्यों के साथ तुलना से यह पता चलता है कि उनके पास मजबूत तथा अच्छी तरह से संचालित सुपुर्दगी प्रणालियां हैं।

भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूर्वी क्षेत्र में अधिक उत्पादन पर ध्यान देते हुए पंजाब और हरियाणा में फसल के विविधीकरण की तैयारी के लिए कार्य योजना बनाई है। तद्नुसार 2010-11 में यह निर्णय लिया गया था कि बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत ‘पूर्वी भारत में हरित क्रांति का सूत्रपात’ नामक कृषि विकास कार्यक्रम को कार्यान्वित किया जाए। वर्ष 2010-11 तथा 2011-12 के दौरान इस कार्यक्रम के लिए 400 करोड़ रुपए की राशि आबंटित की गई थी, जिसे 2012-13 के दौरान बढ़ाकर 1000 करोड़ रुपए कर दिया गया था। पूर्वी भारत में दूसरी हरित क्रांति के लिए केंद्र तथा राज्यों की संबंधित एजेंसियों के सकेंद्रित तथा सतत् प्रयासों की जरूरत होगी। इससे अल्प-उत्पादकता तथा पूर्वी भारत में किसानों की कम आय की पुरानी समस्या का समाधान हो पाएगा। राष्ट्रपति ने कहा कि पहली हरित क्रांति तथा इसके पर्यावरणीय प्रभाव से सीख लेते हुए हमें मिट्टी की उर्वरकता तथा जल प्रबंधन जैसे मुद्दों पर शुरू से ही ध्यान देते हुए दूसरी हरित क्रांति को व्यवहार्य बनाना होगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि खरीद नीति उस क्षेत्र की किसानों के लिए लाभदायक होनी चाहिए तथा उस क्षेत्र में पर्याप्त भंडारण सुविधाएं सृजित की जानी चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले तीन वर्षों के दौरान निरंतर प्रयासों के बहुत उत्साहजनक परिणाम निकले हैं और देश में कुल चावल उत्पादन में इस क्षेत्र के हिस्से में काफी वृद्धि हुई है। देश में 2011-12 के दौरान कुल 104.32 मिलियन टन चावल उत्पादन में से 55.34 मिलियन टन चावल का उत्पादन पूर्वी क्षेत्र द्वारा किया गया है। राष्ट्रपति ने कहा कि जल सेक्टर की चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय जल नीति (2012) घोषित की है तथा ईमानदारी से इसके कार्यान्वयन से जल सेक्टर की अधिकांश चुनौतियां कम होने में मदद मिलेगी तथा आने वाली पीढ़ियों को उनके जल भविष्य के प्रति सुनिश्चितता मिलेगी। भारत में विश्व की 18 प्रतिशत जनसंख्या रहती है लेकिन यहां केवल 4 प्रतिशत उपयोग योग्य जल स्रोत हैं। भारत इस समय भी जल की कमी वाला देश है तथा जैसे-जैसे प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में कमी आएगी, हम शीघ्र ही जल-दुर्लभता वाले देश हो जाएंगे। यह अनुमान है कि 2050 तक 17 प्रतिशत जनसंख्या पूर्ण जल-दुर्लभता के साये में होगी। राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि पेयजल और स्वच्छता जीवन की मूलभूत जरूरतें हैं तथा इनकी संतोषजनक उपलब्धता राज्य में सुशासन के संकेत हैं। भूजल प्रबंधन आज एक उच्चतम प्राथमिकता है। पेयजल तथा स्वच्छता मंत्रालय ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति प्रदान करने के लिए, राज्यों और संघ क्षेत्रों के प्रयासों में सहयोग हेतु राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम को कार्यान्वित कर रहा है और इसके लिए 2012-13 में 10500 करोड़ के बजट परिव्यय का प्रावधान किया गया है। इस कार्यक्रम की सावधानी से अनुश्रवण करने की आवश्यकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि जल, स्वच्छता तथा स्वास्थ्य के बीच सीधा संबंध है। असुरक्षित पेय जल पीने, मानव विष्ठा के खुले में व्ययन, व्यक्तिगत एवं खाद्य स्वच्छता के अभाव का उच्च शिशु मृत्यु दर पर सीधा असर पड़ता है तथा यह बहुत-सी चिकित्सा संबंधी समस्याओं का कारण होते हैं। उन्होंने कहा कि हमें पूरे ग्रामीण तथा शहरी भारत में उपलब्ध जल संसाधनों का समझदारी से उपयोग करना होगा, प्रयुक्त जल का पुन:चक्रण करना होगा, जल प्रयोग में किफायत बरतनी होगी, भूजल का पुनर्भरण करना होगा तथा दक्षतापूर्ण स्वच्छता सुविधाएं सुनिश्चित करनी होंगी। राष्ट्रपति ने सभी राज्यपालों से अनुरोध किया कि वे निर्मल भारत अभियान पर विशेष ध्यान दें, जिसे भारत सरकार ने सभी ग्राम पंचायतों को ‘निर्मल’ बनाने तथा पेयजल सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए शुरू किया है ताकि ग्रामीण लोग अच्छे स्वास्थ्य तथा बेहतर जीवन स्तर का लाभ उठा सकें।

राष्ट्रपति ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन जो 2005 से कार्यान्वित किया जा रहा है, शहरी अवसरंचना सृजन की ओर एक बड़ा निवेश कार्यक्रम है। उन्होंने कहा कि शहर तथा शहरी क्षेत्र, देश में 60 प्रतिशत से अधिक सकल घरेलू उत्पाद तथा 80 प्रतिशत से अधिक क्रमोत्तर रोजगार सृजन कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि अनौपचारिक बस्तियों और झुग्गियों में पानी तथा स्वच्छता का अभाव होता है और परिणामस्वरूप न केवल शहरी गरीबों को बल्कि पूरे समुदाय को बीमारियों का सामना करना होता है। उन्होंने कहा कि यह देखा गया है कि कुछ राज्य शहरी शासन संबंधी सुधारों को कार्यान्वित करने में पिछड़ गए हैं। उन्होंने सुधारों की प्राप्ति में तेजी लाने तथा अगले वर्ष तक अनुमोदित परियोजनाओं को पूरा करने का आग्रह किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत युवाओं का देश है और हम अपनी जनसंख्या के स्वरूप से तभी फायदा उठा सकते हैं जब हम उन्हें उचित शिक्षा और कौशल प्रदान करें। बारहवीं योजना के अंत तक 1 मिलियन को मुक्त तथा सुदूर शिक्षा सहित, 10 मिलियन विद्यार्थियों का अतिरिक्त नामांकन कराए जाने का प्रस्ताव है। क्योंकि अधिकांश नामांकन राज्य संस्थानों में होता है, इसलिए राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपालों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। सभी कुलाधिपतियों का यह प्रयास होना चाहिए कि समता और उत्कृष्टता के साथ उच्च शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए। उन्होंने राज्यपालों का आह्वान किया कि वे (i) संकाय सदस्यों की कमी दूर करें (ii) अनुसंधान की गुणवत्ता सुधारें तथा नवान्वेषण की संस्कृति को प्रेरणा दें (iii) उच्च शिक्षा तक पहुंच तथा उसकी गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग में सुधार करें, तथा (iv) उद्योगों के साथ बेहतर संबंध बनाएं और शिक्षा को अधिक रोजगारपरक बनाएं। राष्ट्रपति के 40 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ 5 फरवरी, 2012 को, एक दिवसीय विचार-विमर्श का संदर्भ देते हुए उन्होंने सभी राज्यपालों से कहा कि वे राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ इसी तरह की बैठकें आयोजित करें।

राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि क्योंकि राज्य विश्वविद्यालयों के पास धन की कमी होती है, इसलिए 12वीं योजना में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के नाम से एक नए कार्यक्रम के माध्यम से, उच्च शिक्षा को केंद्रीय आर्थिक सहायता देने में कार्यात्मक बदलाव की सिफारिश की गई है। केंद्र सरकार संकाय संबंधी मुद्दों पर सर्वांगीण रूप से ध्यान देने तथा सभी स्तरों पर वर्टिकल तथा लेटरल संबद्धता प्रदान करते हुए संस्थागत व्यवस्था को मजबूत करने के तरीकों की सिफारिश करने के लिए शिक्षक तथा शिक्षण संबंधी राष्ट्रीय मिशन शुरू कर रही है। हमारे उच्च शिक्षा के संस्थानों को ऐसा अनुकूल परिवेश तैयार करना चाहिए जिसमें अनुसंधान, नवान्वेषण तथा उद्यमिता को प्रोत्साहन मिले। उन्हें ज्ञान प्रदाता की अपनी मौजूदा भूमिका से आगे बढ़कर ज्ञान सृजन करने तथा धन सृजन करने के लिए प्रेरक की भूमिका में आना होगा। अत्यंत प्रतिस्पर्धात्मक वैश्विक समाज में प्रतिस्पर्धा के लिए उत्कृष्टता का विकास किया जाना चाहिए तथा एक जागरूक जनता के सृजन और ज्ञानवान समाज को बढ़ावा देने के संयुक्त प्रयास होने चाहिए।

14वें वित्त आयोग के जनवरी, 2013 में गठन का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने राज्यपालों से कहा कि वे समुचित कर्मचारियों के साथ राज्य वित्त आयोगों के गठन, इन आयोगों की समय पर राज्यपालों को रिपोर्टें प्रस्तुत करने तथा इन आयोगों की रिपोर्टों पर समय पर राज्य सरकारों द्वारा कार्रवाई पर नजर रखें।

इस दो दिवसीय सम्मेलन के कार्यसूची की मदों में आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा, सरकारी कार्यक्रमों की सुपुर्दगी प्रणाली का सुदृढ़ीकरण, पूर्वी क्षेत्र तक द्वितीय हरित क्रांति का विस्तार, जल प्रबंधन एवं स्वच्छता तथा विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में, उच्च शिक्षा में गुणवत्ता और सुशासन के संदर्भ में राज्यपाल की भूमिका शामिल हैं।

सम्मेलन में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, नौ केंद्रीय मंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष तथा विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के अध्यक्ष भी भाग ले रहे हैं।

इस सम्मेलन को कल प्रात: प्रधानमंत्री संबोधित करेंगे तथा कल दोपहर उपराष्ट्रपति संबोधित करेंगे।