भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (12 नवम्बर 2014) विज्ञान भवन, नई दिल्ली में ‘महिलाएं बदलाव के माध्यम के रूप में’ विषय पर बीसवां न्यायमूर्ति सुनंदा भंडारे स्मृति व्याख्यान दिया।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि स्वर्गीय न्यायमूर्ति भंडारे महिला अधिकारों कक्त्रद्गी प्रबल समर्थक थीं। उन्होंने अपने पेशेवराना कौशल तथा वंचितों के प्रति चिंता के कारण भी अपनी अलग जगह बनाई। न्यायमूर्ति भंडारे का मानना था कि महिलाओं को खुद अपने भविष्य का निर्माण करने के लिए सशक्त किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हम आज एक ज्ञानवान समाज में रह रहे हैं जहां महिलाओं ने यह प्रदर्शित करने के लिए पुरूषों के साथ स्पर्द्धा की है कि वे भी समान रूप से योग्य हैं। हमें उन रुकावटों को कम करना होगा जो महिलाओं को परिवर्तन का माध्यम बनने से वंचित करती हैं। हमें निर्णयकरण ढांचों में और अधिक महिलाओं की जरूरत है। जहां पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए 33प्रतिशत आरक्षण कुछ सफल रहा है परंतु अन्य स्तरों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व खेदजनक ढंग से कम है। महिलाएं मंत्री, राज्यपाल,राजदूत और न्यायाधीश बन चुकी हैं परंतु परिवर्तन का माध्यम बनने की प्रभावी भूमिका निभाने के लिए उनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश के लैंगिक असमानता के अंतर को समाप्त करने के लिए हमें शिक्षा, आर्थिक सशक्तीकरण तथा शासन जेसे क्षेत्रों में सकारात्मक हस्तक्षेप की आवश्यकता है। हमें उन प्रणालियों और प्रक्रियाओं को मजबूत बनाना होगा जिनसे महिलाओं को अपने जीवन पर नियंत्रण और स्वामित्व में मदद हासिल हो। सशक्तीकरण को सही अर्थ प्रदान करने के लिए हमें उनकी विकल्प की स्वतंत्रता को बढ़ाना होगा। संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं के सशक्तीकरण को, उनके आत्म महत्व के बोध, जीने और चुनाव तय करने के उनके अधिकार, अवसर और संसाधनों तक पहुंच के अधिकार, नियंत्रण की शक्ति के उनके अधिकार के रूप में परिभाषित किया है। इन महत्वपूर्ण उद्देश्यों को साकार करने के लिए, हमें स्वर्गीय न्यायमूर्ति भंडारे जैसी और परिवर्तनकारी विभूतियों की आवश्यकता है। हमें एक न्यायपूर्ण सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के निर्माण के लिए महिलाओं की सामाजिक परिवर्तन की दिशा को प्रभावित करने की उनकी असाधारण योग्यता को पहचानना होगा।
यह विज्ञप्ति1925 बजे जारी की गई।