भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (12 दिसम्बर 2014) लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में सिविल सेवाओं के 89वें आधारिक पाठ्यक्रम के दीक्षांत समारोह में भाग लिया।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने युवा अधिकारी-प्रशिक्षणार्थियों को बधाई दी और कहा कि उन्होंने देश की एक सबसे कठिन परीक्षा, सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के बाद अखिल भारतीय सेवाओं और केन्द्रीय सिविल सेवाओं में प्रवेश किया है। उन्होंने कहा कि देश के ये युवा अधिकारी विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रहित को बढ़ावा देते हुए प्रशासन के अनेक क्षेत्रों में कार्य करने जा रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों को यह याद रखने के लिए कहा कि वे चाहे जिस किसी भी शाखा से जुड़ें, उन्हें उन्हें अखिल भारतीय भावना, जो कि जन कल्याण और राष्ट्र की प्रगति है, को ध्यान में रखना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के संविधान के प्रावधानों ने हमारे प्रगतिशील लोकतंत्र की बदलती आवश्यकताओं का ध्यान रखा है। हमारे संवैधानिक वायदे का अनुपालन करते हुए भारत का शासनतंत्र हमारे लोकतांत्रिक ढांचे को कायम रखने के लिए निर्मित किया गया है। सिविल सेवा की भूमिका को इन मूल्यों को कायम रखने के संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुशासन, राष्ट्र की संस्थाओं के जरिए लोगों की बेहतरी हेतु, हमारे आर्थिक और सामाजिक संसाधनों के कुशल और प्रभावी प्रबंधन के लिए संविधान के ढांचे के तहत शक्ति का प्रयोग करना है। ‘सुशासन’ अवधारणा के तौर पर प्राचीनकाल से प्रचलन में रही है। कौटिल्य ने राजा और उसकी प्रजा की खुशहाली के बीच एक अटूट संबंध का उल्लेख किया था। सुशासन का अर्थ एक ऐसा ढांचा है जिसका एकमात्र लक्ष्य लोगों की खुशहाली है।
राष्ट्रपति ने कहा कि लोक प्रशासन हमारी राजव्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। उन्होंने युवा अधिकारियों को सलाह दी कि उन्हें सदैव लोगों की आवश्यकताओं के प्रति तत्परता दिखानी चाहिए। उन्हें अपने कर्तव्य निभाते समय तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
यह विज्ञप्ति1740 बजे जारी की गई।