भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (13दिसम्बर, 2015) कोलकाता में देवरंजन मुखर्जी मेमोरियल भाषण दिया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि जब तक भारत के पास विश्वस्तरीय शैक्षिक संस्थाएं नहीं होंगी। भारत विश्व के शीर्षस्थ देशों में से एक नहीं हो सकता और अंतरराष्ट्रीय टेबल पर नहीं बैठ सकता। उन्होंने कहा कि विगत वर्षों में भारत में उच्चतर शिक्षा के भौतिक ढांचे का तेजी से विस्तार हुआ है। हमारे 712विश्वविद्यालय और 36,000से अधिक कॉलेज हैं परंतु अब तक प्रथम 200 रैंक की संस्थाओं में भारत का कोई स्थान नहीं है। एक समय था जब भारत की उच्चतर शिक्षा प्रणाली में प्रधान महत्वपूर्ण भूमिका थी और हमारे तक्षशिला,नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, संपूर्ण और ओदंतपुरी जैसे विख्यात शिक्षा केंद्र थे। भारत को अभी अपनी प्राचीन कीर्ति को बहाल करने के लिए कार्य करना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि बड़ी संख्या में उच्च्तर शिक्षा संस्थाओं के कुलाध्यक्ष होने की हैसियत से वह नियमित रूप से सम्मेलन बुलाते हैं और अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में सुधार की आवश्यकता पर बल देते हैं। मूल समस्या हमारे उच्चतर शैक्षिक संस्थाओं में योग्यता की कमी की नहीं है बल्कि तकनीकियों और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग अभिकरणों को प्रासंगिक सूचना प्रदान नहीं करने की है। राष्ट्रपति ने कहा कि वे खुश हैं कि संस्थाएं सक्रियता से और क्रमबद्ध तरीके से रैंकिंग प्रक्रिया को अधिक गंभीरता से नहीं ले रही हैं। संबंधित संस्थाओं के प्रयास और उनके निरंतर प्रेरित करने को धन्यवाद कि दो भारतीय संस्थाओं में प्रथम 200में स्थान प्राप्त किया। वे विश्वस्त थे कि शीघ्र ही और अधिक इन संस्थाओं में शामिल होंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि इंटरनेट, मोबाइल फोन और टीवी ने विश्व परिवर्तन कर दिया है अब कहीं भी कोई क्षेत्रीय सीमाएं नहीं रह गई हैं। प्रौद्योगिकी और कक्षाओं का प्रयोग सर्वोत्तम शिक्षकों तक पहुंचने के लिए किया जा सकता है। इससे संकाय की कमी संबंधी समस्या का निवारण भी हो जाएगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि विचारों के आदान-प्रदान की आवश्यकता है। संकाय और छात्रों को आदान-प्रदान नियमित रूप से किया जाना चाहिए। उन नए विचारों को जिन्हें बाजारू उत्पाद में परिवर्तित किया जा सकता है,समर्थन मिलना चाहिए और उच्चतर शिक्षा संस्थाओं को जमीनी स्तर के उद्यमियों के साथ मिलकर पल्लवन केंद्र तैयार करने चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत एक अपशिष्ट ईंधन चालित ऊर्जा अर्थव्यवस्था है। यहां सौर ऊर्जा और अन्य ऊर्जा को विकसित करने की आवश्यकता है ताकि हाइड्रोकार्बन पर निर्भरता को कम किया जा सके।
राष्ट्रपति ने प्रेमसहित श्री देबरंजन मुखर्जी को स्मरण किया जिन्होंने उन्हें सूरी विद्यासागर कॉलेज में चार वर्ष तक पढ़ाया। उन्होंने स्मरण कराया कि उस समय कॉलेज में उत्कृष्ट शिक्षक होते थे। मेमोरियल भाषण स्वर्गीय देबरंजन मुखर्जी, एक प्रभावी व्यक्तित्व जिन्होंने बंगाली भाषा और सहित्य में पढ़ाया, की यादगार में आरंभ किया गया है। उन्होंने सूरी विद्यासागर कॉलेज, गस्कर महाविद्यालय, विधानचंद्रा कॉलेज, आसनसोल और बर्दवान विश्वविद्यालय,जहां वे बाद में बंगाली विभाग के प्रधान बने, में अपनी सेवाएं दी।
यह विज्ञप्ति1330 बजे जारी की गई।