भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (14 मार्च, 2015) चण्डीगढ़ में अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि आयुर्वेद को केवल चिकित्सा की एक पद्धति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह वास्तव में विभिन्न विधाओं का समूह है जो हमारे अंदर संतुलन और समरसता के सृजन के लिए मिलकर कार्य करती हैं। यह इस धारणा पर आधारित है कि जीवन आत्मा, मन, इंद्रियों और शरीर के बीच के संबंध का प्रतीक है। यह शरीर के शारीरिक, मानसिक भावनात्मक तथा आध्यात्मिक अव्यवों में संतुलन बनाए रखने के लिए विज्ञान और दर्शन का एक विशिष्ट संयोजन है। आयुर्वेद के चिकित्सक मानते हैं कि यह संतुलन अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी है। इस तरह का संतुलन बीमारों को ठीक करने में, जो स्वस्थ हैं उनका स्वास्थ्य ठीक रखने में तथा बीमारी रोकने और अच्छा जीवन स्तर बनाए रखने में सहायता देता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हम में से अधिकांश लोग जानबूझकर—अथवा परंपरागत रूप में अपने दैनिक जीवन में आयुर्वेद पर निर्भर हैं। यहां तक कि हम में से जो लोग औपचारिक रूप से आयुर्वेद में प्रशिक्षित नहीं है, उन्होंने भी अपने दैनिक जीवन में इसके सिद्धांतों तथा भोजन संबंधी प्राथमिकताओं को अपना लिया है। भारत के विभिन्न इलाकों की विभिन्न संस्कृतियों में परिवारों द्वारा जड़ी-बूटियों, मसालों, पौधों, पत्तियों, फूलों तथा तेलों को विभिन्न तरह से सम्मिश्रणों के रूप में तैयार कर छोटी-बड़ी बीमारियों के उपचार के लिए प्रतिरोधी पेयों अथवा चिकित्सा उपायों के लिए उनका प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, हमारे रोजाना के भोजन में हल्दी के प्रमुख तत्त्व होने का एक खास कारण है; इसी प्रकार तुलसी के पत्तों का पवित्र जल अथवा चरणामृत में मिलाकर दैनिक पूजा के बाद ग्रहण किया जाता है और गाय के दूध से निर्मित घी सदियों से खाना पकाने का प्रमुख माध्यम रहा है। आयुर्वेदिक उपायों की सरल प्रवृत्ति के कारण हमें से बहुत से लोग आधुनिक दवाओं के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए आयुर्वेद पर निर्भर रहना पसंद करते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि विज्ञान के रूप में आयुर्वेद को दुर्भाग्यवश औपनिवेशिक सत्ता के अधीन बहुत लंबे समय तक दबाए रखा गया जिसके कारण इस प्राचीन विज्ञान में प्रशिक्षण एवं शिक्षा को बहुत क्षति पहुंची। आयुर्वेद को लंबे समय से एक ‘अप्रमाणित’ विधा के तौर पर देखा जाता रहा है। मैं आयुर्वेदिक औषधियों को रहस्यात्मकता के आवरण से बाहर निकालकर उन्हें सूचनाप्रद वाणिज्यिक कार्य-योजना तथा प्रयोक्ता के लिए उपयुक्त पैकेजिंग के माध्यम से लोकप्रिय बनाया जाए; भारत के गांव-गांव में मोबाइल औषधालयों से आयुर्वेदिक उपचार तथा दवाएं प्रदान की जानी चाहिए। राष्ट्रपति ने भारत के युवाओं को प्रोत्साहित किया कि वे इस प्राचीन ज्ञान प्रणाली का अध्ययन करें,उसका अनुरक्षण करें तथा उसमें इलाज करें और उसका प्रचार करें।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह माना जाता है कि आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा पद्धतियों में सदियों पहले आज के एचआईवी तथा क्षय रोग के नाम से जानी जाने वाली बीमारियों से मिलती-जुलती बीमारियों के सफल उपचार के लिए पद्धति निर्धारित कर ली गई थी। यदि इन उपचारों पर अनुसंधान किया जाए तथा उनके निष्कर्षों पर अनुवर्ती कार्रवाई हो तो यह लाखों लोगों के लिए नई उम्मीद तथा आधुनिक चिकित्सा में क्रांति लाएगी। उन्होंने इसकी प्राप्ति के लिए इलाज की पद्धति पर व्यापक डाटा बेस तैयार करने तथा हमारी जनता के लिए सफल चिकित्सा परिपाटियों के विकास के लिए आयुर्वेदिक तथा एलोपैथिक अनुसंधानकर्ताओं के बीच अधिक सहयोग की आवश्यकता बताई। उन्होंने आयुर्वेदिक प्रयोगशालाओं तथा औषधि विनिर्माताओं के बीच सीधे संबंधों के चैनल भी स्थापित करने पर बल दिया। उन्होंने देशभर के अस्पतालों को प्रोत्साहित किया कि वे जैसे भी संभव हो, आयुर्वेदिक चिकित्सा की सुविधा और सेवा उपलब्ध कराएं।
राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि 58वें महासम्मेलन के विचार-विमर्श, आयुर्वेद के बारे में जागरूकता फैलाएंगे और उसमें इलाज को एक नया संबल प्रदान करेंगे तथा इसे आधुनिक वैज्ञानिक उपायों के माध्यम से आसान बनाकर तथा लोकप्रिय बनाकर हमारे समसामयिक समाज में इसकी प्रासंगिकता की वृद्धि में सहायता देंगे।
यह विज्ञप्ति 1905 बजे जारी की गई।