भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (14 मार्च, 2015) चण्डीगढ़ में देश के सबसे पुराने और अग्रणी उच्च शिक्षा केन्द्रों में से, पंजाब विश्वविद्यालय के चाैंसठवें दीक्षांत समारोह को संबोधित किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों की शिक्षित पीढ़ियों में से बहुतों ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त किया है।
राष्ट्रपति ने सफल विद्यार्थियों को बधाई दी और उनसे कहा कि वे अपने परिजनों तथा समग्र समाज और राष्ट्र की आशाओं को समझें। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक शासनतंत्र और बहुलवादी समाज का देदीप्यमान उदाहरण है। लोकतंत्र न केवल अधिकार देता है बल्कि जिम्मेदारियां भी लाता है। शिक्षित युवाओं को उभरते हुए नए भारत के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे सपनों के देश के निर्माण के लिए योग्य और समर्पित लोगों की आवश्यकता है। हमारे विश्वविद्यालयों को चरित्रवान और ईमानदार पुरुष और महिलाएं तैयार करनी होंगी। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘वास्तविक शिक्षा अपने अंदर से सर्वोत्तम प्रतिभा को सामने लाना है। मानवता की पुस्तक से श्रेष्ठ और कौन सी पुस्तक हो सकती है?’’ मानवता की पुस्तक पर अमल करने का बापू का आह्वान वर्तमान समाज के द्वंद्वों का समाधान कर सकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी समाज का उत्थान काफी हद तक मानवपूंजी द्वारा निर्धारित होता है। इसलिए, शिक्षा राष्ट्रों के भविष्य के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाती है। शिक्षा प्रणाली में विश्वविद्यालय का स्थान सबसे ऊंचा है। भारतीय विश्वविद्यालयों में विश्व के अग्रणी संस्थान बनाने की क्षमता है। अच्छा रहेगा कि उच्च श्क्षि संस्थान ऐसी उभरती हुई वैश्विक प्रवृत्तियों की भली-भांति पहचान करें जो ज्ञान प्रदान करने के नए मॉडलों का निर्माण कर रही हैं। उच्च शिक्षा की बढ़ती लागत तथा शिक्षा के इच्छुक लोगों के बदलते प्रोफाइल के कारण प्रौद्योगिकी के सहयोग से मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम आरंभ हो गए हैं। विश्वविद्यालयों को शिक्षा के इन बदलावों पर ध्यान देना चाहिए तथा अधिकतम लाभ प्राप्ति के लिए कदम उठाने चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि बहुत से नवान्वेषी विचार सामान्य व्यक्ति की कल्पना शक्ति से पैदा होते हैं। उनके विचारों को पुष्ट करने तथा व्यावहारिक उत्पादों के डिजायन तैयार करने के लिए उन्हें परामर्श देना नवान्वेषण मूल्य शृंखला के विकास की आवश्यकता है। अपने बहुविध संयोजनों के कारण उच्च शिक्षण संस्थान इस परिवेश को प्रेरित कर सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसी वैज्ञानिक प्रवृत्ति, जो कल्पना को ग्रेड और कक्षा के दायरे से परे ले जाती है, हमारे विद्यार्थियों के लिए अत्यावश्यक है। हमारे संस्थानों को अपने विद्यार्थियों में कल्पना शक्ति जाग्रत करनी चाहिए। शिक्षक को पुस्तकों से अलग सोचने, संकल्पनाओं पर सवाल उठाने तथा अनुसंधान के पश्चात् ही किसी विचार को स्वीकार करने के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। विद्यार्थियों के पास एक बड़ा सपना होना चाहिए जिसे वे अनुसंधान और जांच के माध्यम से वास्तविकता में बदल सकते हैं।
यह विज्ञप्ति1425 बजे जारी की गई।