भारत के राष्ट्रपति ने शुक्रवार (14 सितंबर 2012) को भारत के राजदूतों और उच्चायुक्तों से आग्रह किया कि वे विश्व के सम्मुख भारत की आर्थिक खूबियों को प्रस्तुत करें और यह सन्देश दें कि घबराने की बिलकुल जरूरत नहीं है।
मिशन प्रमुखों के चौथे सम्मेलन के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि यद्यपि अर्थव्यवस्था कठिनाईयों का सामना कर रही है परंतु भारत की विकास गाथा अभी सामने आ रही है और निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
राष्ट्रपति ने कहा कि अरब जगत के ऐतिहासिक घटनाक्रमों और किस प्रकार यह इन देशों के साथ हमारे अल्पकालिक और मध्यकालिक द्विपक्षीय एजेंडा को प्रभावित करता है, का आकलन करने की जरूरत है। यह ध्यान दिलाते हुए कि भारत के, यूरोप और अमरीका जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यनीतिक साझीदार वर्तमान में गहरे आर्थिक संकट में है, उन्होंने कहा कि हमारे दूतों को यह आकलन करना चाहिए कि ये सरकारें किस दिशा में बढ़ रही हैं और हमारी सरकार को उन परिवर्तनों के बारे में सलाह देनी चाहिए जिनकी हमारे नीतिनिर्माताओं को प्रत्याशा करनी चाहिए।
आंतकवाद को भारत की सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए, राष्ट्रपति ने इसकी रोकथाम के उपाय करने और निगरानी बढ़ाने के लिए अन्य सहयोगी देशों के साथ समन्वय तेज करने पर बल दिया। उन्होंने यह सुनिश्चित करने पर पूरा ध्यान देने पर जोर दिया कि दूतावास और उनमें कार्य कर रहे लोग और उनके परिवार यथासंभव सुरक्षित रहें। उन्होंने उल्लेख किया कि अमरिकी और अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के अफगानिस्तान से जाने के बाद की चुनौती हमारे सामने नजर आ रही है। इस बात का उल्लेख करते हुए कि इस स्थिति के अपनी सुरक्षा पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से नहीं बच सकता। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए एक सक्रिय रणनीति तैयार करनी होगी।
राष्ट्रपति ने दूतों का आह्वान किया कि वे इन देशों के साथ हमारे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सम्बन्धों के माध्यम से ‘लुक ईस्ट’ नीति को सफलताओं के लिए कार्य करें। उन्होंने ‘कनैक्ट सेन्ट्रल एशिया’ पहल का उल्लेख किया जो इस क्षेत्र में दूतों के लिए एक विशाल संभावनायुक्त नए अवसरों से भरा क्षेत्र है।