भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (15 मई, 2013) को लुमामी में नागालैंड विश्वविद्यालय के तृतीय दीक्षांत समारोह में भाग लिया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने विश्वविद्यालयों और अकादमिक संस्थानों से आग्रह किया कि वे हमारे समय की नैतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए आगे आएं तथा यह सुनिश्चित करें कि मातृभूमि से प्रेम; कर्तव्य का निर्वहन; सभी के लिए करुणा; बहुलवाद के लिए सहिष्णुता; महिलाओं और बुजुर्गों के लिए सम्मान; जीवन में सच्चाई और ईमानदारी; आचरण में अनुशासन और आत्मसंयम तथा कार्य में उत्तरदायित्व के सभ्यतागत मूल्य युवा मस्तिष्कों में अच्छी तरह समाविष्ट हों।
राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा सामाजिक बदलाव का सशक्त उपकरण है। हाल ही के दौरान महिलाओं और बच्चों पर जो पाशविक हमलों के मामले सामने आए हैं उन्होंने देश की सामूहिक अतंर्रात्मा को झकझोर दिया है। हमें अपने समाज में नैतिक हृस के कारणों का पता लगाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह दशक नवान्वेषण का दशक है। नवान्वेषण से आम आदमी को लाभ पहुंचना चाहिए। विश्वविद्यालयों तथा उद्योग को जमीनी नवान्वेषणों को प्रोत्साहन देना चाहिए।
यह विज्ञप्ति 1245 बजे जारी की गई