भारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (16 फ़रवरी 2013)राष्ट्रपति भवन,नई दिल्ली में एन.के.पी साल्वे स्मारक व्याख्यान-माला का उद्घाटन किया और `संविधान और शासन`पर पहला एन.के.पी साल्वे स्मारक व्यख्यान दिया|
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए केवल शासन की नहीं बल्कि सामाजिक लोकाचार में परिवर्तन तथा मनसिकता में बदलाव जरूरी है और यह कार्य केवल विधायिका,कार्यपालिका अथवा न्यायालयों का ही नहीं बल्कि हम में से हर-एक का है| लोकतंत्र का परम लक्ष्य है,आर्थिक,धार्मिक अथवा सामाजिक हैसियत की परवाह किए बिना,हर व्यक्ति को सशक्त करना| कई लोगों को यह दिवास्वप्न लग सकता है परंतु किसी भी व्यवस्था की ताकत,इसकी प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करने की इसकी क्षमता में निहित होती है|
राष्ट्रपति ने कहा कि यह हमारा दायित्व है कि हम ऐसी व्यवस्था का निर्माण करें,जिसमें राजनीति में प्रवेश केवल कुछ भाग्यशाली लोगों तक ही सीमित न रहे बल्कि कोई भी साधारण भारतीय इसमें भाग लेने में समर्थ हो| समतावादी समाज की रचना केवल तभी संभव है जब विकास समावेशी हो| यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि न्याय तथा अवसर समान रूप से उपलब्ध हों तथा राज्य इस तरह की परिस्थितियाँ पैदा न करे जिसमें केवल कुछ ही भाग्यशाली लोग निर्धनताग्रस्त साधारण लोगों की कीमत पर फलते-फूलते हों| एक सतत समाज केवल समतवादी सिद्धांतों पर आधारित हो सकता है|
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत तब तक सच्ची प्रगति हासिल नहीं कर सकता जब तक शासन में सुधार नहीं आता| बुराइयों के लिए कोई एक वर्ग जिम्मेदार नहीं है बल्कि पूरे समाज को नैतिक दिशा का पुनः निर्धारण करना होगा| उन्होंने विधानमंडलों और संसद की कार्यवाहियों में बारम्बार व्यवधानों पर ध्यान बटाते हुए कहा कि इस तरह की प्रवृत्ति में सुधार की जरूरत है| उन्होंने सांसदों और विधायकों का आह्वान किया कि वे वित्तीय मामलों,बजट,पंचवर्षीय योजनाओं आदि पर विचार-विमर्श के लिए कुछ समय लगाएं| यदि इसमें समुचित समय दिया जाए तो भ्रष्टाचार पर शुरू में ही अंकुश लगाया जा सकता है
यह विज्ञप्ति 1330 बजे जारी की गई