भारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (16 अप्रैल, 2016) राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल में सर्वोच्च न्यायालय के फोर्थ रिट्रीट ऑफ जजेज का उद्घाटन किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य साथी जजों को इस रिट्रीट के आयोजन के लिए बधाई दी जो उन सामयिक चुनौतियों पर विचार-विमर्श के लिए एक मंच उपलब्ध करवाएगा जिनका देश आज विधिक विवादों और अधिनिर्णयों के वैश्विक और अंतरराष्ट्रीय तत्वों के साथ सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की परिचर्चा और विचार जजों को समय के साथ चलने तथा तेजी से बदल रहे विश्व में न्यायपूर्ण और प्रभावी न्याय प्रदान करने में मदद के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका जो हमारे लोकतंत्र के तीन अहम स्तंभों में से एक है, संविधान और विधि की अंतिम व्याख्याता है। यह विधि के गलत पक्ष वाले लोगों के साथ तीव्रता और प्रभावी तरीके से निपटकर सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती है। विधि शासन की संरक्षक तथा स्वतंत्रता के अधिकार की प्रवर्तक के रूप में न्यायपालिका की भूमिका पवित्र है। न्यायपालिका में लोगों का विश्वास और भरोसा हमेशा कायम रहना चाहिए। लोगों के लिए न्याय को सार्थक बनाने हेतु इसे सुलभ, वहनीय और त्वरित होना चहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत का एक लिखित संविधान है जो एक सजीव दस्तावेज है, कोई शिलालेख नहीं है। यह सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का एक घोषणापत्र है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश के समक्ष सामयिक स्थितियों और चुनौतियों चाहे वे वैश्विक या घरेलू बदलाव के कारण पैदा हुई हों,के परिदृश्य में संविधान में निहित सुशासन के अधिदेश की निरंतर व्याख्या कर रहा है। यह विधान अथवा विधि व्यवस्था की व्याख्या का कार्य ही नहीं है जो विधि शास्त्र का उदाहरण देने के कार्य से काफी कम है; इसने हमारे विकाशसील समाज की परंपरा को जान लिया है क्योंकि कयह औपनिवेशिक श्रृंखलाओं से निकलकर उस सामाजिक व्यवस्था में बदल गया है जो मानव गरिमा, लोगों की संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में निर्मित होने की आकांक्षाओं से परिपूर्ण है, जैसा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने अधिदेश दिया था।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे विकाशसील देश की परिस्थितियों को देखते हुए, हमारी न्यायपालिका ने न्याय के दायरे का विस्तार किया है। मौलिक अधिकारों के कार्यान्वयन के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने नवान्वेषण और सक्रियता के माध्यम से अधिस्थिति के सामान्य विधि सिद्धांत का विस्तार किया है। इसने न्यायालय को न्यायिक समाधान के लिए कार्य करने तथा न्यायिक प्रक्रिया को सक्रिय करने के लिए पर्याप्त हित तथा प्रमाणिकता वाले व्यक्ति को अनुमति प्रदान करना संभव बना दिया है। अधिकारों के समर्थन के लिए, न्यायालयों ने न्यायिक कार्य आरंभ करने के लिए एक डाकपत्र अथवा अखबार के लेख को ही पर्याप्त सामग्री मान लिया है। इससे न्याय को जनसाधारण के निकट लाने में मदद मिली है। उन्होंने बल देकर कहा कि न्यायिक सक्रियता से शक्तियों की पृथकता कमजोर नहीं होनी चाहिए। हमारे लोकतंत्र के प्रत्येक अंग को अपने दायरे में काम करना चाहिए तथा दूसरों के क्षेत्र पर आधिपत्य नहीं जमाना चाहिए। राष्ट्र के तीनों अंगों के बीच शक्ति संतुलन हमारे संविधान में निहित है। संविधान सर्वोच्च है। शक्ति प्रयोग में संतुलन सदैव बना रहना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि शीघ्र न्याय कुशल न्यायशास्त्र का अपरिहार्य अंग है। न्याय में देरी न्याय से वंचित करना है। न्याय तीव्र, सुलभ और वहनीय होना चाहिए। हमारे न्यायालय वर्तमान में लंबित मामलों की विशाल संख्या के कारण दबे पड़े हैं। मामलों का लंबन न्यायालयों में रिक्तियों की संख्या पर भी निर्भर है। उन्होंने उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में रिक्तियों को तेजी से भरने के लिए किए गए अथक प्रयासों के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के सराहना की। उन्होंने कहा कि कोलेजियम द्वारा जनवरी, 2016 के प्रथम सप्ताह से कार्य करने के बाद 12 अप्रैल, 2016 तक कुल 145 नियुक्तियां की गई हैं। यह कोलेजियम के कार्य की गति को दर्शाता है। उन्होंने जजों से इस गति को बनाए रखने के लिए कहा।
यह विज्ञप्ति 1200बजे जारी की गई।