भारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी ने आज 16 मई, 2016 राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में ‘टैगोर्स विजन ऑफ द कंटेम्पररी वर्ल्ड’ और ‘टैगोर एंड रशिया’ पुस्तकों की प्रथम प्रतियां प्राप्त कीं। राष्ट्रपति ने इन दोनों पुस्तकों की प्रतियां आईसीसीआर के अध्यक्ष लोकेश चंद्रा, जिन्होंने औपचारिक रूप से इनका विमोचन कियासे प्राप्त की ।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि वे दोनों पुस्तकों की प्रथम प्रतियां प्राप्त करके प्रसन्न हैं जिनमें वर्ष 2011 में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा आयोजित सेमिनारों के पूर्ववर्ती कागजात शामिल हैं। उन्होंने आईसीसीआर को पहल करने के लिए और वर्षों से टैगोर अध्ययन के लिए अपना समर्थन देने के लिए बधाई दी। उन्होंने आगामी दिनों में भी पूरे विश्व में यह प्रयास बनाए रखने और टैगोर विद्वानों को समर्थन देने के लिए आईसीसीआर से आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि टैगोर ने भारत के भीतर और विदेशों की भरपूर यात्रा की। टैगोर के हृदय में रूस के लिए एक विशेष स्थान था। सोवियन संघ के ग्रामीण शिक्षक के कार्यक्रमों की सफलता के बारे में सुनकर टैगोर इसकी ओर आकर्षित हुए। टैगोर ने कहा, ‘वे तीन क्षेत्रों में व्यस्त हैं शिक्षा, कृषि और यांत्रिकी। इन तीन पथों पर चलते हुए पुरा देश विचार,शरीर और रचनात्मक ऊर्जा को पूर्णता देने के पथ पर अग्रसर हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि सर्वशिक्षा का प्रश्न सहकारिता की मसले से निकटता से जुड़ा हुआ है जो उस समय पर रवीन्द्रनाथ के श्री निकेतन अनुभव का अभिन्न अंग है। पाटीसर और भोलपुर में अपने प्रयासों का स्मरण करते हुए रवीन्द्रनाथ ने लिखा, ‘मेरा उद्देश्य किसानों में आत्मविश्वास को मजबूत करना था... कृषि में तब तक सुधार नहीं हो सकता जब तक सहकारिता के माध्यम से भूमि पर सामूहिक रूप से कृषि नहीं होगी... विश्व-भारती के प्रबंधन के अंतर्गत भोलपुर में जब हमारा सहकारिता संगठन था तो मुझे लगा कि हमें अवसर मिल गया है।’
राष्ट्रपति ने कहा कि टैगोर ने यह स्वीकार किया कि संस्कृतियों और रिति-रिवाजों में मतभेद का सम्मान किया जाना चाहिए। टैगोर ने कहा, ‘मतभेदों को कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता, और गरीबों का जीवन तो मतभेदों के बगैर बहुत कठिन होगा। सभी मानव जातियों को उनके व्यक्तित्व में रहने दें और एक समरूपता में नहीं बल्कि जीवन एकता के साथ हम साथ चलें।’
राष्ट्रपति ने कहा कि टैगोर की सद्भाव की वैश्विक व्यवस्था, सहअस्तित्व और किसी का सहयोग और सभ्यता के संबंध में विचार गीतांजली में उनके शब्दों में उत्तम ढंग से व्यक्त है।
‘‘तुमने मुझे उन मित्रों से परिचित कराया जिनको मैं जानता नहीं।
तुमने मुझे उन घरों में जगह दी जो मेरे नहीं थे।
तुमने सुदूर को नजदीक बनाया और अजनबी को भाई बनाया।
मैं भारी महसूस करता हूं जब मुझे अपना आदी शरण छोड़ना पड़ता है।
मैं भूल गया था कि नये में ही पुराना निवास करता है और
वहां भी तुम ही निवास करते हो।’’
‘टैगोर्स विजन ऑफ द कंटेम्पररी वर्ल्ड’ और ‘टैगोर एंड रशिया’ पुस्तकें क्रमश: प्रो. इंद्र नाथ चौधरी और डॉ. रेबा सौम द्वारा संपादित की गईं।
यह विज्ञप्ति 2015 बजे जारी की गई।