भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने निर्धन व धनी दोनों द्वारा प्रयोग के लिए उच्च गुणवत्तायुक्त राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया है। वह 16 अक्तूबर, 2012 को नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के 40वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।
राष्ट्रपति ने समाज के कमजोर वर्गों पर स्वास्थ्य और चिकित्सा खर्च के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह अस्वीकार्य है कि हमारी जनता द्वारा स्वास्थ्य देखभाल पर किया गया 80 प्रतिशत व्यय जेब से बाहर व्यक्तिगत भुगतान द्वारा किया जाता है। प्रत्येक वर्ष चार करोड़ लोग चिकित्सा उपचार पर खर्च के कारण गरीब हो जाते हैं।
राष्ट्रपति के अनुसार, हमें याद रखना चाहिए कि गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का खुद का स्वास्थ्य खराब नहीं होना चाहिए। स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रगति विश्व में भारत के भावी प्रतिष्ठित स्थान की कुंजी है। राष्ट्र की उत्पादकता इसके नागरिकों के स्वास्थ्य और सेहत पर निर्भर करती है। यदि आर्थिक विकास के साथ-साथ परिहार्य मृत्यु दर और खराब स्वास्थ्य में कमी न आए तो आर्थिक विकास सतत् और वांछित नहीं होता।
राष्ट्रपति ने एम्स का आह्वान किया कि वह स्वास्थ्य देखभाल में नवान्वेषी समाधान, नए उपचार खोजने, वहनीय स्वास्थ्य देखभाल की मौजूदा और उभरती हुई प्रौद्योगिकियों का प्रयोग करने तथा रोगों की रोकथाम और संपूर्ण स्वास्थ्य निर्मित करने के नए उपाय खोजने के क्षेत्र में भारत का नेतृत्व करे। उन्होंने कहा कि एम्स को बायोमेडिकल अनुसंधान का केंद्र और दूसरों के लिए एक आदर्श बनना चाहिए। एम्स को वर्ष 2020 तक विश्व के 10 सर्वोत्तम चिकित्सा विश्वविद्यालयों में से एक बनने का प्रयास करना चाहिए।
यह विज्ञप्ति 1510 बजे जारी की गई