भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (16 नवम्बर, 2015) भारतीय प्रेस परिषद द्वारा आयोजित राष्ट्रीय प्रेस दिवस समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने राष्ट्रीय उत्कृष्ट पत्रकारिता पुरस्कार भी प्रदान किए।
समारोह में राष्ट्रपति ने कहा कि प्रतिष्ठित पुरस्कार पेशे के समकक्ष साथियों और अग्रणियों की प्रतिभा, मेधा और परिश्रम का सार्वजनिक सम्मान हैं। प्राप्तकर्ताओं को ऐसे पुरस्कारों को सहेजना और उन्हें महत्त्व देना चाहिए। संवेदनशील मन कई बार समाज की कुछ घटनाओं से व्यथित हो जाता है। भावनाएं तर्क पर हावी नहीं होनी चाहिए और असहमति को बहस और चर्चा के जरिए अभिव्यक्त करना चाहिए। गौरवपूर्ण भारतीय के रूप में भारत के विचार तथा हमारे संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों में हमारा विश्वास होना चाहिए। भारत जरूरत पड़ने पर हमेशा आत्मसुधार करता रहा है।
राष्ट्रपति ने कहा कि मीडिया को जनहित के प्रहरी के तौर पर कार्य करना चाहिए तथा उपेक्षित लोगों की आवाज उठानी चाहिए। पत्रकारों को हमारी जनता के बड़े हिस्से को प्रभावित कर रही अनेक बुराइयों और कष्टों को लोगों की जानकारी में लाना चाहिए। मीडिया की ताकत को हमारी नैतिक दिशा को निर्धारित करने तथा सार्वजनिक जीवन में उदारता, मानवता और सौम्यता को बढ़ावा देने के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। विचार स्वतंत्र हैं परंतु तथ्य सही होने चाहिए। निर्णय देने, विशेषकर उन मामलों में जिनमें यथोचित कानूनी प्रक्रिया पूरी होनी बाकी है, में सावधानी बरतनी चाहिए। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जीवनवृत्ति और प्रतिष्ठा बनने में वर्षों लगते हैं परंतु इन्हें खराब होने में कुछ क्षण लगते हैं। उन्होंने कहा कि भारत का मीडिया समुदाय न केवल समाचार प्रदाता है बल्कि ऐसा शिक्षक भी है जो हमारे देशवासियों को सशक्त तथा देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत बनाता है।
इस वर्ष के राष्ट्रीय प्रेस दिवस समारोह के मुख्य विषय का उल्लेख करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि कार्टून और रेखाचित्र जनता तथा उनमें स्थान पाने वालों का अवलोकन करने के श्रेष्ठ तनाव निवारक हैं। कार्टूनिस्ट समय की नब्ज पकड़ते हैं और उनकी कला बिना किसी को ठेस पहुंचाए व्यंग्य करने में छिपी है जबकि रेखाचित्र बिना तोड़-मरोड़ कर ब्रुश के द्वारा ऐसी बात कह देते हैं जिसे लम्बे लेख भी नहीं कह पाते। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भारतीय कार्टूनिस्ट विभूति वी. शंकर से कहते रहते थे, ‘शंकर मुझे मत बख्शना।’ वह अक्सर गाड़ी से कॉफी पीने के लिए शंकर के घर जाया करते थे और कार्टून के विषय पर बातचीत किया करते थे। खुली मानसिकता और सही आलोचना की प्रशंसा हमारे महान राष्ट्र की एक प्रिय परंपरा है जिसे हमें सहेजना और सुदृढ़ करना चाहिए।
यह विज्ञप्ति 1410 बजे जारी की गई।