भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (16 नवम्बर, 2016) राष्ट्रपति भवन में द्वितीय कुलाध्यक्ष सम्मेलन के आरंभिक दिवस पर राष्ट्रीय विद्यार्थी स्टार्टअप नीति की शुरुआत की।
एआईसीटीई द्वारा तैयार राष्ट्रीय विद्यार्थी स्टार्टअप नीति का लक्ष्य अगले 10 वर्षों के भीतर 100,000 प्रौद्योगिकी आधारित विद्यार्थी स्टार्टअप निर्मित करना तथा दस लाख रोजगार अवसर पैदा करना है। नीति की योजना एक आदर्श उद्यमिता वातावरण तैयार करना तथा तकनीकी संस्थानों के बीच मजबूत अंतरसंस्थागत साझीदारियों को बढ़ावा देकर इसे हासिल करना है। यह 21वीं शताब्दी और उससे आगे भारतीय युवाओं को प्रेरित करने के लिए एक उपयुक्त स्टार्टअप नीति की अत्यावश्यकता पर बल देती है।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि यदि देश में पर्याप्त रोजगार होगा तो संतुष्टि, परिष्करण और श्रेष्ठता होगी। इसके विपरीत दृश्य, संकटपूर्ण हो सकता है। युवाओं का असंतोष और निराशा आंदोलन और रोष में अभिव्यक्त होती है। हमें ऐसी स्थिति पैदा नहीं होने देनी चाहिए। हमें अपने विकासशील जनसांख्यिकीय स्वरूप को विशेषता में बदलना है। इस उद्देश्य के लिए, पर्याप्त रोजगार सृजन एक प्राथमिकता है।
2015 में रोजगार सृजन के आंकड़े 1.35 लाख हैं जो सात वर्षों में सबसे कम हैं और उत्साहजनक नहीं है। मशीनें तेजी से मनुष्य का स्थान ले रही हैं। ऐसे में हमें परिवर्तन को देखना होगा। हमें नवान्वेषी विचारों से युक्त युवाओं को उद्यमी बनाने के लिए तैयार करना होगा। हमें अपने विद्यार्थी से बने नवान्वेषकों को बाजार का दोहन करने के लिए उद्यमी बनाना होगा। केन्द्रीय संस्थाओं के प्रमुखों को सम्मतापूर्ण विकास हासिल करने के लिए इसे अपना प्रमुख दायित्व समझना चाहिए। वह आज एआईसीटीई की विद्यार्थी स्टार्टअप नीति आरंभ करने पर प्रसन्न थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने उच्च शिक्षा संस्थानों के विद्यार्थियों की उद्यमशील प्रतिभा को प्रेरित करने के लिए इस नीति में अत्यधिक संभावनाएं देखीं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों की विश्व वरीयता हमारे आर्थिक कौशल को झुठलाती है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सम्मेलन के अध्यक्ष, गवर्नर बोर्ड तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों की सिफारिशों के आधार पर अगस्त 2014 में आयोजित ‘परियोजना विश्वजीत’ पर अब ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों—खड़गपुर, कानपुर, बांबे, दिल्ली, मद्रास, गुवाहाटी और रुड़की के प्रस्तावों के शीघ्र कार्यान्वयन के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तेजी से जांच की जा रही है। प्रत्येक सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में दस विश्वस्तरीय संस्थानों की स्थापना की मानव संसाधन विकास मंत्रालय की प्रस्तावित नीति भी एक स्वागत योग्य कदम है।
राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व स्तरीय संस्थानों का रास्ता प्रतिभा, संसाधन और प्रबंधन के जरिए जाता है। हमारे संस्थान मेधावी विद्यार्थियों और उच्च श्रेणी के शिक्षकों से भरपूर होने चाहिए। सीमित साधनों के साथ प्रतिभावान विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए, विकसित और परिवर्तनीय शुल्क और आय आकस्मिक ऋण आवश्यक है। उच्च शिक्षा तक पहुंच सूचना अनियमितता द्वारा भी बाधित होती है। विभिन्न वित्तीयन और संचार तथा परामर्श मॉडलों को विशिष्ट आावश्यकताओं के आधार पर विकसित करना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संस्थानों को न केवल घरेलू बल्कि बाहरी प्रतिभाओं के लिए आकर्षक बनाना चाहिए। उन्होंने प्रतिभा पलायन के स्थान पर प्रतिभा भण्डार और प्रतिभा नेटवर्क तैयार करने के लिए शिक्षा संस्थानों का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि विश्व स्तरीय संस्थानों को केवल वित्तीय संसाधनों के द्वारा विकसित किया जा सकता है। सार्वजनिक संस्थाओं में सरकारी वित्तीयन बजट प्रावधानों के अनुसार सीमित हैं। हमारे केन्द्रीय संस्थानों की प्रगति के लिए, उनकी वित्त आवश्यकताओं को उद्योग के दान तथा शोध परियोजनाओं की संविदाओं द्वारा पूरा किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि जिस प्रकार पर्वतों में शिखर होते हैं, उसी प्रकार विश्वभर में बड़ी संख्या में उच्च संस्थानों के बीच विश्वस्तरीय संस्थान हैं। भारत में इस प्रकार के ज्ञान शिखर थोड़े से हैं। यदि हमें भारत को विश्व ज्ञान शक्ति में शामिल करना है तो हमें ऐसे और अनेक शिखर की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उनकी विदेश यात्राओं के दौरान, उनके साथ गए शैक्षिक शिष्टमंडल ने अपने विदेशी समकक्ष संस्थानों के साथ 92 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। अब इन समझौतों को अमल में लाने पर ध्यान देना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च शिक्षा प्रणाली के विश्व मानदण्ड पूरे करना करना दोहरी चुनौती है। हम चाहते हैं कि हमारे प्रतिष्ठित संस्थान विश्व श्रेणी के शिक्षा केंद्र बन जाएं। इसी प्रकार हमारे लिए जरूरी है कि नए संस्थान सफलतापूर्वक आरंभ हों, शुरुआती बाधाओं को दूर करें। देश के सुदूर इलाकों में कुछ नए संस्थान स्थापित किए गए हैं। उनमें अपने प्रदेशों के विकास को तेज करने की संभावनाएं हैं। वे अध्यापन और शिक्षण की स्थानीय क्षमता निर्मित करने के सेतु हो सकते हैं। वित्तीय और प्रशासनिक दोनों आवश्यक सहायता यह देखने के लिए उनके नियंत्रण में होनी चाहिए कि वे पूरी क्षमता से कार्य कर रहे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हाल ही में हमारे संस्थानों में विद्यार्थी असंतोष की घटनाएं हुई हैं। हमारे कैम्पस में उच्च अध्ययन और अनुसंधान करने के लिए विद्यार्थियों हेतु सौहार्दपूर्ण और शांतिपूर्ण वातावरण होना चाहिए। कुलपतियों और निदेशकों को किसी भी ऐसी अधिक स्थिति के साथ समझदारी से निपटना चाहिए। उन्हें ऐसे प्रेरित शिक्षकों सहित सभी हितैषियों की मदद लेनी चाहिए जो अपने ज्ञान, विश्वास और आचरण के आधार पर विद्यार्थियों के बीच भरोसा और शांतिपूर्ण प्रभाव पैदा कर सकते हैं। संबंधित प्रशासनिक मंत्रालयों को भी शैक्षिक अग्रणियों की मदद करनी चाहिए।
इस अवसर पर उपस्थित गणमान्यों में श्री प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री, श्री अशोक गजपति राजू पुसापति, केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री, डॉ. महेंद्र नाथ पांडे, मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री, राष्ट्रपति की सचिव श्रीमती ओमिता पॉल तथा प्रो. अनिल डी. सहस्राबुद्धि, अध्यक्ष, एआईसीटीई उपस्थित थे।
यह विज्ञप्ति 1600 बजे जारी की गई