भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (17 सितम्बर, 2013) विज्ञान भवन, नई दिल्ली में एक समारोह में प्रथम इंजीनियर कॉन्क्लेव का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि यह उचित है कि इस कॉन्क्लेव का आयोजन भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरी अकादमी तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ‘एयरोस्पेस प्रणालियों का विनिर्माण’ और ‘इंजीनियरी प्रयासों के माध्यम से सुंदरवन का कायापलट’ नामक दो विषय उचित और सामयिक हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें इस कॉन्क्लेव से निकलकर आने वाले विचारों के व्यावहारिक सच्चाई में बदलने का इंतजार रहेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों में हमारी उपलब्धियों के कारण भारत 21वीं सदी में एक अग्रणी राष्ट्र बनने के मुहाने पर खड़ा है। उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों तथा इंजीनियरों की नवान्वेषण क्षमता भारत को इस लक्ष्य की प्राप्ति में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इंजीनियरी प्रयासों के मूल में लोगों को मानव संसाधन, उपभोक्ता तथा विक्रेता तक पहुंचाने का प्रयास होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि नवान्वेषण विकास की प्रमुख प्रबंधकीय कार्यनीति है। हमें प्रक्रिया नवान्वेषण, उत्पाद नवान्वेषण, व्यवसाय मॉडल नवान्वेषण तथा नवीन प्रौद्योगिकी नवान्वेषण जैसे विभिन्न आयामों पर जोर देना होगा। मशीन उपकरण के डिजायन तथा उन्हें तैयार करने के क्षेत्र में सशक्त क्षमताओं की खासकर जरूरत है। उन्होंने उद्योग का आह्वान किया कि वे इस लक्ष्य को आगे ले जाने के लिए संस्थानों के साथ निकट से साझीदारी विकसित करें। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग गांवों में रहते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विशिष्ट प्रौद्योगिकी नवान्वेषण की जरूरत है।