भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने 16 जनवरी, 2016 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ‘महानिष्क्रमण’ की 75वीं वर्षगांठ मना रहे नेताजी रिसर्च ब्यूरो, कलकत्ता को एक संदेश में युवाओं से गुहार लगाई कि वे नेताजी द्वारा आजाद हिंद फौज के सैनिकों और सिविल कार्मिकों को दिए गए इत्माद (विश्वास), इत्त़ेफाक (एकता) और कुर्बानी (बलिदान) के नारे अपनाएं।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मैं यह जानकर प्रसन्न हूं कि नेताजी रिसर्च ब्यूरो, कोलकाता 16 जनवरी, 2016 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ‘महानिष्क्रमण’ (महानिर्गमन) की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है।
जनवरी 16-17, 1941 की ऐतिहासिक रात को नेताजी एल्जिन रोड, कोलकाता में अपने पैतृक गृह से अपनी वान्डरर कार में बाहर निकले और ब्रिटिश इंडिया से अपने पलायन के प्रथम चरण में गोमोह (झारखण्ड) पहुंचे। उन्होंने गोमोह से दिल्ली तक दिल्ली कालका मेल पकड़ी और फ्रंटियर मेल से पेशावर के लिए गए। पेशावर से, वे काबुल गए और उसके बाद एक इटालियन के नाम से मास्को जाने के लिए वीसा प्राप्त किया। सुभाष के गमन का यह महानिष्क्रमण उल्लेखनीय और इतिहास के पन्नों पर नेताजी का आगमन था। साहसपूर्ण और सावधानीपूर्ण नियोजित गमन देश के युवाओं के लिए प्रेरणादायक है।
अप्रैल, 1941 में यूरोप पहुंचकर, सुभाष चंद्र बोस अपनी पत्नी इमिली शेंकल से मिले, जिन्हें वे पहले जून, 1934 में वियना में मिले थे और दिसम्बर, 1937 में उन्होंने गोपनीय रूप से उनसे विवाह कर लिया था। उनकी पुत्री अनीता ने 24 नवम्बर, 1942 में जन्म लिया। संयोग से मुझे 1995की अपनी आग्सबर्ग की यात्रा की मधुर याद आ रही है, जब मैं विदेश मंत्री के रूप में अपने तत्कालीन जर्मनी के राजदूत, एस.के. लांबा के साथ जर्मनी गया। उस समय इमिली अपनी बेटी अनीला और उसके पति प्रो. मार्टिन टफ, जो जर्मनी संसद के सदस्य थे, के साथ रह रही थी। नेताजी की पत्नी और बेटी ने मेरा जोरदार स्वागत किया।
नेताजी, अपनी पत्नी और 2 महीने की बेटी को छोड़कर आजाद हिंद फौज को उसकी स्वतंत्रता की यशस्वी लड़ाई के लिए 90 दिन की एशिया की संकटमय पनडुब्बी यात्रा पर निकल पड़े। यह सार्वजनिक हित के लिए महान बलिदान का एक उदाहरण है—भारतीय स्वतंत्रता का हित जिसके लिए नेताजी ने अपना जीवन समर्पित कर दिया।
कोलकाता से गोमोह तक नेताजी के सारथी सिसिर कुमार बोस, उनके बड़े भाई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता, सरत चंद्र बोस के बेटे, थे। नेताजी के गमन के समय सिसिर कुमार बोस 21 वर्ष के मैडिकल छात्र थे। नेताजी ने दिसंबर 1940में उनसे कहा, ‘‘अमार एक्टा काज कोरते परबे?’’ (क्या तुम मेरा एक कार्य कर सकते हो?) सिसिर कुमार ने उनको दिए गए कार्य को खूब निभाया। उसके बाद वे अगस्त 1942 से सितम्बर, 1945 तक, भारत छोड़ो अभियान के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें अवर्णनीय यातनाएं झेलनी पड़ी जिसमें कठोर जेल और लाल किला और लाहौर किला में काल कोठरी शामिल हैं। सरत चंद्र बोस भी दिसम्बर, 1941 से सितंबर, 1945 तक चार वर्ष के लिए दक्षिण भारत में जेल गए। समस्त बोस परिवार ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय भूमिका निभाई। बाद में, सिसिर कुमार बोस मेरे अच्छे मित्र बन गए। वह एक विख्यात शिशु रोग विशेषज्ञ और नेताजी रिसर्च ब्यूरो के संस्थपक के रूप में देश की सेवा करते रहे। वे कांग्रेस पार्टी की ओर से पश्चिम बंगाल की विधायी सभा के सदस्य चुने गए और उन्होंने 1982 से 1987 तक सेवा की। सिसिर कुमार बोस ने 30 सितंबर, 2000 तक अपनी मृत्यु पर्यन्त नेताजी का कार्य करना नहीं छोड़ा।
सिसिर कुमार बोस ने ‘महानिष्क्रमण’ नामक एक बंगाली पुस्तक में नेताजी की यात्रा का लिखित ब्यौरा दिया है। मेजर जनरल शाह नवाज़ खान की पुस्तक ‘माई मैमोरीज़ ऑफ आई एन ए एंड इट्स नेताजी’ में नेताजी के सिंगापुर पहुंचने के बाद भारतीय राष्ट्रीय सेना और रैश बिहारी बोस से सुभाष चंद्र बोस तक नेतृत्व में परिवर्तन का ब्यौरा उपलब्ध है।
इस ऐतिहासिक अवसर पर, मैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और भारत के युवाओं से गुहार करता हूं कि वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा आजाद हिंद फौज के सैनिकों और सिविल कार्मिकों को दिए गए इत्माद (विश्वास), इत्त़ेफाक (एकता) और कुर्बानी (बलिदान) के नारे अपनाएं।
मैं नेताजी रिसर्च ब्यूरो को नेताजी के जीवन और उनके योगदान पर अनुसंधान को बढ़ावा देने और विभिन्न कार्यकलापों, जो नेताजी से जुड़े महत्त्वपूर्ण घटनाओं की याद में आयोजित किए जाते हैं, के अथक प्रयासों के लिए बधाई देता हूं। मैं प्रो. कृष्ण बोस, और प्रो. सुजाता बोस, नेताजी रिसर्च ब्यूरो की अध्यक्ष और निदेशक को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।’’
यह विज्ञप्ति 1830 बजे जारी की गई