भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (18 नवम्बर, 2015) वृंदावन में श्री चैतन्य महाप्रभु ब्रज वृंदावन प्राकट्य पंचशती महोत्सव, वृंदावन, उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित श्री चैतन्य महाप्रभु के पंचशती समारोह में भाग लिया।
राष्ट्रपति ने कहा, चैतन्य महाप्रभु भक्ति आंदोलन के एक महानतम संत थे। उन्होंने अनुपम गीति और सौंदर्यपूर्ण कीर्तन के माध्यम से बंगाल में वैष्णववाद को जनप्रिय बनाया।
श्री चैतन्य महाप्रभु ने अपने प्रदर्शन के द्वारा प्रेमपूर्ण भक्तिसेवा और सामूहिक जप का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने व्यक्तिगत आचरण द्वारा भक्ति साधना को प्रकाशित किया।
राष्ट्रपति ने कहा विविधता में जीना और विविधता में एकता देखना सदियों से भारत की परंपरा रही है। बहुत से लोग अचंभित होते हैं कि भारत एक प्रशासन तंत्र, एक संविधान और एक विधिक न्यायशास्त्र के अंतर्गत इतनी विविधता होते हुए स्वयं को कैसे समायोजित कर लेता है। राष्ट्रपति ने कहा कि इसका उत्तर हमारे सभ्यतागत मूल्यों में छिपा हुआ है। भारत की एकता हमारे सांस्कृतिक और सभ्यतागत मूल्यों के कारण संभव रही है। हमने सदियों से इसे विरासत में पाया है और सहेजकर रखा है। यह अब हमारे जीवन का अंग है।
राष्ट्रपति ने यह कहा कि चैतन्य महाप्रभु ने प्रेम, समता, मानवता और सद्भाव का प्रचार किया। हमें महान संत के इस संदेश को ग्रहण करना चाहिए और अपने समाज को पुन: जाग्रत करना चाहिए। हमें प्रेम संदेश के द्वारा एक बार फिर स्वयं को परिवर्तित करना होगा। श्री चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाएं समसामयिक जगत में अत्यंत प्रासंगिक बनी हुई हैं।
यह विज्ञप्ति 2030 बजे जारी की गई।