भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (19 जनवरी, 2016) राष्ट्रपति भवन से उच्च शिक्षण संस्थानों तथा सिविल सेवा अकादमियों के विद्यार्थियों और शिक्षकों को ‘युवा और राष्ट्र निर्माण’ विषय पर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से नववर्ष का संदेश दिया।
विद्यार्थियों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि हमें युवाओं में लोकतांत्रिक आचरण की भावना पैदा करनी चाहिए जिसके लिए हमारे राष्ट्र की समृद्ध विविधता का सम्मान, विचारों का समावेशन तथा भिन्न और प्रतिकूल विचारों के समायोजन की आवश्यकता है। पंथनिरपेक्षता का विचार हमारे राष्ट्र की चेतना में गहराई से बसा हुआ है। एक सौहार्दपूर्ण समाज के निर्माण के लिए युवाओं के मन में इसे और प्रबल बनाना होगा। एक समावेशी समाज बनाने के लिए लैंगिक समानता आवश्यक है। यदि राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में समान शर्तों और बराबर संख्या में महिलाओं की भागीदारी नहीं होगी तो सभी प्रयास अधूरे रहेंगे। हमारे परिवारों और शैक्षिक संस्थाओं के बच्चों में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना पैदा करनी होगी। इससे व्यक्ति के सामाजिक आचरण को बचपन से मार्गदर्शन प्राप्त होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार ने वित्तीय समावेशन, आदर्श गांवों के निर्माण तथा डिजीटल रूप से सशक्त समाज के सृजन के लिए कार्यक्रम आरंभ किए हैं। अब हमें एक आकांक्षापूर्ण भारत की अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए उनके कार्यान्वयन के जरिए पर्याप्त अवसर पैदा करने होंगे। जिस राष्ट्र को नौकरशाह, तकनीकीविद्, वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, सामाजिक नवान्वेषक, विचारक और कृषक के रूप में युवाओं को निर्मित करना है, वह ऐसा भारत होना चाहिए जो अपने सभी नागरिकों के लिए एक सम्मानजनक और संतुष्टिपूर्ण जीवन सुनिश्चित कर सके। इसे एक स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, डिजीटल रूप से सशक्त भारत, शिक्षित और कुशल भारत, तथा सहिष्णु, सौहार्दपूर्ण और शांतिपूर्ण भारत बनाना होगा जहां अंतिम व्यक्ति स्वयं को देश की गाथा का एक हिस्सा महसूस करे।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए, सभी को मिलकर एक ऐसा माहौल पैदा करना होगा जहां नवान्वेषक, उद्यमी और वित्त प्रदाता एकजुट होंगे, जहां प्रतिभा का सम्मान होगा तथा विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवान्वेषण को प्रमुखता मिलेगी। सभी रचनात्मक ताकतों के खुलकर कार्य करने के लिए एक सुविधाकारी और सहयोगी वातावरण चाहे वह सरकार, कारपोरेट क्षेत्र या शिक्षा जगत में हो, सृजित करना होगा। उच्च शिक्षा संस्थानों की अपने विद्यार्थियों की उद्यम योग्यताओं को निखारने में एक स्पष्ट भूमिका है। उद्यमपूर्ण अध्ययनों का हमारे संस्थानों में पाठ्यक्रम के तौर पर अध्यापन एक बढ़िया शुरुआत होगी।
राष्ट्रपति ने सभी शैक्षिक और सिविल सेवा संस्थानों का, अपने विद्यार्थियों और प्रशिक्षुओं में सामाजिक दायित्व भावना पैदा करने का आह्वान किया। उन्होंने समुदाय के साथ अपना जुड़ाव बढ़ाने के लिए कुछ कदम उठाने का सुझाव दिया, जैसे प्रत्येक महीने कम से कम एक घंटे के लिए निकट के सरकारी स्कूलों में उन्हें पढ़ाने का कार्य देना, पड़ोस के लोगों की दशा सुधारने के लिए समुदाय आधारित परियोजना पर कार्य करने के लिए उन्हें नियुक्त करना तथा उन्हें गांवों में मौजूद समस्याओं की पहचान का जिम्मा देना और स्थानीय तरीकों के साथ आधुनिक प्रौद्योगिकी को जोड़ने के नवान्वेषी समाधानों पर कार्य करना।
संबोधन का वेबसाइट http://webcast.gov.in/president/ पर उपलब्ध है।
यह विज्ञप्ति 1410 बजे जारी की गई