भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (19 मई, 2017) कोलकाता, पश्चिम बंगाल में विभिन्न वर्गों के प्राप्तकर्ताओं को डॉ. मालती एलन चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा स्थापित डॉ. मालती एलन नोबल पुरस्कार, डॉ. सरकार एलन महात्मा हैनमैन पुरस्कार तथा डॉ. शंकर एलन स्वामी जी पुरस्कार प्रदान किए।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि डॉ. मालती एलन चैरिटेबल ट्रस्ट और डॉ. सरकार एलन महात्मा हैनमैन तथा स्वामी ट्रस्ट के होम्योपैथी शिक्षा और प्रैक्टिस के प्रोत्साहन और सुदृढ़ीकरण के प्रयास सराहनीय हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि स्वदेशी आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी के साथ होम्योपैथी की वैकल्पिक प्रणाली की हमारे देश में महत्वपूर्ण भूमिका है। होम्योपैथी के श्रेष्ठ लाभों के अतिरिक्त, उपचार की कम लागत, एलोपैथी के दुष्प्रभावों की वर्तमान प्रवृति के कारण होम्योपैथी तथा वैकल्पिक चिकित्सा की अन्य प्रणालियां बहुत से रोगियों के लिए एक आकर्षक और व्यवहारिक विकल्प बन गई हैं। इसी प्रकार, पुरानी बीमारियों के इलाज में एलोपैथी चिकित्सा की सीमितता के कारण बहुत से लोग विकल्पों की ओर देख रहे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत, विशेषकर बंगाल में होम्योपैथी का एक दीर्घ और सफल इतिहास रहा है। 1835 में एक रोमेनियाई डॉ. जॉन मार्टिन होनिगबर्गर इसे पटियाला के महाराज के दरबार में लेकर आए, यह तब फली-फूली जब कलकत्ता में स्थानांतरित हुई तथा इसे भयानक रोग के उपचार के लिए बड़ी तेजी से ‘हैजा डॉक्टर’ के रूप में जाना जाने लगा। डॉ. महेन्द्र लाल सरकार, बाबू राजन दत्ता, डॉ. पी.सी. मजूमदार, डॉ. वी एल भादुड़ी और डॉ. बी.एन. बैनर्जी आदि के नाम भारत में होम्योपैथी के स्थापना के लिए विख्यात हैं। भारत में पहला होम्योपैथी कॉलेज 1878 में कलकत्ता होम्योपैथी चिकित्सा महाविद्यालय था। औपनिवेशिक प्रशासन की सुविचारित उपेक्षा के बाद पश्चिम बंगाल के सांसद सर सतीश चंद्र सामंत ने 1948 में केंद्रीय होम्योपैथी परिषद की स्थापना का पहला प्रयास किया।
राष्ट्रपति ने बांग्लादेश के पुरस्कार विजेता सहित सभी व्यक्तियों को बधाई दी तथा उनके भावी प्रयासों के सफल होने की कामना की। उन्होंने जनसमूह को यह भी बताया कि राष्ट्रपति भवन में भी चिकित्सा की अनेक पारंपरिक प्रणालियों से संबंधित आयुष चिकित्सालय की स्थापना की गई है तथा सुविधाएं प्राप्त करने के लिए लोगों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।
यह विज्ञप्ति 1530 बजे जारी की गई।