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राष्ट्रपति ने कहा कि ज्ञान और नवान्वेषण इक्कीसवीं सदी में प्रगति एवं समृद्धि के आधारस्तंभ हैं

राष्ट्रपति भवन : 19-07-2014

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (19 जुलाई 2014) राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुचिरापल्ली के स्वर्ण जयंती समारोहों का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि ज्ञान और नवान्वेषण इक्कीसवीं सदी में प्रगति एवं समृद्धि के आधारस्तंभ हैं। वैश्वीकरण के इस दौर में हम केवल ऐसे परिवेश से प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त कर सकते हैं जो सीखने, अनुसंधान तथा नवान्वेषण में सहायक हो। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को अपने विद्यार्थियों में वैज्ञानिक अभिरुचि को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करने चाहिए। तथापि, हमारे देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के मद्देनजर अनुसंधान का जोर पिछड़ापन खत्म करने तथा अभावों का उन्मूलन करने पर होना चाहिए। नवान्वेषण से ऐसे वंचितों की स्थिति में सुधार आना चाहिए जो अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव चाहते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान त्रिची को उन स्वेदेशी विचारों को बढ़ावा देना चाहिए जो सामाजिक-आर्थिक पायदान पर प्रगति करने के लिए प्रयासरत लोगों को - जैसे कि किसान को बेहतर ढंग से खेती करने में, कारीगर को अपनी कला में महारत हासिल करने में तथा छोटे उद्यमी को अपने उद्यम की उत्पादकता में सुधार करने में बेहतरी का भरोसा दें।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान सिविल एवं इलैक्ट्रिकल इंजीनियरी के क्षेत्र में 50 सर्वोत्तम संस्थानों मंह शामिल हैं। पांच संस्थान ब्रिक्स देशों के 20 सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों में शामिल हैं। सर्वोत्तम 100 एशियाई संस्थानों में भारतीय संस्थानों की संख्या जो 2013 में 3 थी इस वर्ष बढ़कर 10 हो गई है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, खासकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, त्रिची को सफल भारतीय संस्थानों से यह सीखना चाहिए कि वह रेटिंग प्रणाली का कैसे ध्यान रखे। अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में आने से कई लाभ होते हैं जिसमें जहां कुछ संकल्पनात्मक लाभ हैं जैसे विद्यार्थियों एवं संकाय का मनोबल बढ़ना, वहीं कुछ ठोस लाभ भी हैं जैसे कि विद्यार्थियों को बेहतर रोजगार उपलब्ध होना। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रैंकिंग प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी से संस्थानों का विकास सही दिशा में हो पाएगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत हाल ही में वाशिंगटन संधि का स्थाई सदस्य बन गया है, जो कि पेशेवर इंजीनियरी की उपाधियों के लिए 17 देशों का अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन करार है। भारत की प्रतिभागिता से हमारी उपाधियों को वैश्विक मान्यता मिलेगी तथा हमारे इंजीनियरों की गतिशीलता में वृद्धि होगी। इससे हमारे तकनीकी स्कूलों पर गुणवत्ता के वैश्विक मापदंडों को अपनाने की जिम्मेदारी आएगी।

यह विज्ञप्ति 1735 बजे जारी की गई।