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राष्ट्रपति ने प्रश्न किया, क्या सहिष्णुता और असहमति की स्वीकार्यता कम हो रही है?

राष्ट्रपति भवन : 19.10.2015

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (19अक्तूबर, 2015) पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक स्थानीय साप्ताहिक समाचारपत्र नयाप्रजन्म तथा सांस्कृतिक संगठन सूरी साबुजेर अभिजन द्वारा आयोजित एक समारोह में जनसमूह को संबोधित करते हुए चिंता व्यक्त की कि क्या सहिष्णुता और असहमति की स्वीकार्यता कम हो रही है।

राष्ट्रपति ने श्रोताओं को श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षा जतो मत ततो पथ’ ‘‘जहां अधिक मत होंगे, वहीं अनेक मार्ग होंगे’’ का स्मरण करवाया। उन्होंने कहा कि मानवता और बहुलवाद का किसी भी परिस्थिति में त्याग नहीं करना चाहिए। भारतीय समाज की ग्रहण करके आत्मसात करने की विशेषता है। हमारी सामूहिक शक्ति समाज की बुरी ताकतों को रोकने के लिए प्रयोग की जानी चाहिए।

राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारतीय सभ्यता अपनी सहिष्णुता के कारण 5,000 वर्षों से टिकी हुई है। इसने सदैव असहमतियों और मतांतरों को स्वीकार किया है। बहुत सारी भाषाएं, 1600 बोलियां और 7 पंथ भारत में एकसाथ मौजूद हैं। हमारा संविधान इन सभी अनेकताओं को समायोजित करता है।

दुर्गापूजा के पावन पर्व की पूर्व संध्या पर, राष्ट्रपति ने लोगों को बधाई दी और यह आशा व्यक्त की कि समस्त सकारात्मक शक्तियों का पुंज-महामाया असुरों अर्थात विभाजनकारी ताकतों का विनाश कर देंगी।

इस अवसर पर, नयाप्रजन्म के संपादक, श्री कंचन सरकार ने राष्ट्र के प्रमुख मूल्यों को आगे बढ़ाने में श्री प्रणब मुखर्जी की भूमिका की सराहना की। सांसद और प्रख्यात कलाकार, श्री जोगेन चौधरी ने राष्ट्रपति भवन के अपने दिनों को याद किया तथा विशेषकर राष्ट्रपति भवन में कला और संस्कृति की सीमाओं के विस्तार में राष्ट्रपति के कार्यकलापों पर विस्तार से विचार व्यक्त किए।

अनेक प्रख्यातजनों तथा समाज के विभिन्न वर्गों सहित हजारों लोगों ने अभिनंदन समारोह में भाग लिया।

यह विज्ञप्ति1900 बजे जारी की गई।