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न्यायिक प्रणाली सुलभ और वहनीय होनी चाहिए

राष्ट्रपति भवन : 20.01.2013

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (20 जनवरी, 2013) कलकत्ता उच्च न्यायालय की डेढ़ सौवीं जयंती समारोहों के समापन समारोह में भाग लिया।

इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका ने भारतीय लोकतंत्र में अपने लिए एक प्रमुख स्थान बना लिया है परंतु जहां यह पूरी तरह लोगों की आकांक्षाएं पूरी नहीं कर पाई है, वह है उन लोगों को त्वरित, शीघ्रता से तथा सुलभ न्याय प्रदान करना जो इसके द्वार खटखटाते हैं। काफी कुछ किया जा चुका है परंतु यह काफी नहीं है। हमारे न्यायालयों को अतिरिक्त संसाधन प्रदान करके तत्काल सुदृढ़ किए जाने की जरूरत है। पूरे देश में न्यायालयों में खाली पड़े पदों को भरने का काम सभी संबंधितों द्वारा प्राथमिकता से किया जाना चाहिए। न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया उच्चतम मानकों के अनुरूप और सुस्थापित तथा पारदर्शी सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश में न्याय प्रणाली न केवल सुलभ वरन् वहनीय भी होनी चाहिए। समय बर्बाद करने वाली तथा महंगी मुकदमेबाजी की समस्या से निपटने के लिए मध्यस्थता तथा माध्यस्थम जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा मुफ्त कानूनी सहायता के लिए समुचित प्रावधान होना चाहिए। पूरे देश में कानूनी साक्षरता फैलाने और कानूनी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए भी प्रयास होने चाहिए।

यह विज्ञप्ति 1845 बजे जारी की गई