भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (20 जून, 2013) को सूर्यमणिनगर में त्रिपुरा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के दसवें दीक्षांत समारोह में भाग लिया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से कहा कि वे हमेशा यह याद रखें कि जो शानदार शिक्षा उन्होंने ग्रहण की है उसमें राज्य तथा समुदाय का योगदान है। जिस भूमि पर विश्वविद्यालय खड़ा है उसे भी समुदाय द्वारा प्रदान किया गया है। इसी प्रकार ये इमारतें, पुस्तकालय में भरी हुई पुस्तकें आदि भी उसी धन से प्राप्त हुई हैं जिसे राज्य ने उन पर निवेश किया है। बदले में उनका इस देश तथा इसकी जनता के प्रति महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। ‘‘आप खुद वह परिवर्तन बनें जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।’’ यह हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा दिया गया उपदेश है। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे समाज में बदलाव के अग्रदूत बनें तथा मातृभूमि के प्रति अपने दायित्व को पूर्ण करें।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे युवाओं को मातृभूमि के प्रति प्रेम; कर्तव्यों का निर्वाह; सभी के प्रति करुणा; विविधता के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं का सम्मान; जीवन में ईमानदारी; आचरण में आत्मनियंत्रण; कार्यों में जिम्मेदारी तथा अनुशासन इन नौ अनिवार्य सभ्यतागत मूल्यों को आत्मसात् करके उन्हें अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों में गुणवत्ता में कमी पर खिन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह अत्यंत खेद की बात है कि कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय दुनिया के दो सौ सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों में शामिल नहीं है। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि एक समय था जब हमारे यहां तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा तथा ओदांतपुरी जैसे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय थे। इनमें वह प्रचीन विश्वविद्यालय प्रणाली विद्ममान थी, जिसने छठी सदी ईस्वी पूर्व से अठारह सौ वर्षों तक विश्व पर अपना प्रभुत्व बनाए रखा। उन्होंने भारत के विश्वविद्यालयों का आह्वान किया कि वे कठोर परिश्रम करें ताकि प्राचीन वैभव को पुन: प्राप्त किया जा सके।
यह विज्ञप्ति 1815 बजे जारी की गई।