भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (20 नवंबर, 2014) तेजपुर, असम में तेजपुर विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें देश के पूर्वोत्तर हिस्से में उच्च शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र माने जाने वाले तेजपुर विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने कहा कि जब भी कोई तेजपुर आता है तो उसे यह यात्रा इसकी शानदार सांस्कृतिक विरासत तथा इसके समृद्ध और विविधतापूर्ण इतिहास की याद दिलाती है। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपने पौत्र, अनिरुद्ध को छुड़ाने के लिए यहां बाणासुर की सेना से युद्ध किया था। यहां का पुरातात्विक स्थल दा पर्बतिया, में छठी सदी ईसवी की वास्तुकला का दर्शन होता है। तेजपुर असम का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र है। यह स्थान भूपेन हज़ारिका, जिन्होंने अपना शुरुआती जीवन यहां बिताया; ज्योति प्रसाद अग्रवाल, जो असम के पहले फिल्म निर्माता थे; तथा कला गुरु विष्णु प्रसाद राभा,कला की महान विभूति तथा अन्य बहुत से लोगों से जुड़ा हुआ है।
राष्ट्रपति ने कहा कि तेजपुर विश्वविद्यालय की शुरुआत 1994में केवल 57 विद्यार्थियों की छोटी-सी संख्या से तथा तीन विभागों से हुई थी। अब यह काफी आगे निकल चुका है। इस उच्च शिक्षा संस्थान द्वारा आज 19 विभागों और 250 संकाय सदस्यों के साथ 63 अकादमिक कार्यक्रमों के तहत तीन हजार से भी अधिक विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान की जा रही है। यह ज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों में अनुसंधान कर रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हो रही है कि उन्होंने अत्याधुनिक विश्लेषणात्मक उपकरणों से सज्जित सुविधा स्थापित की है। यह विश्वविद्यालय कंप्यूटर विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा इंजीनियरी, ऊर्जा तथा भाषा जैसे विभिन्न विभागों द्वारा प्रख्यात यूरोपीय संस्थानों के साथ सहयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें बताया गया है कि विज्ञान, मानविकी, इंजीनियरी तथा प्रबंधन जैसे विषयों के लगभग 1500 विद्यार्थियों को आज उपाधि एवं डिप्लोमा प्रदान किए जा रहे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि इस समय जब विद्यार्थी स्नातक बनकर अपनी मातृ संस्था को अलविदा कह रहे हैं, उन्हें यह भरोसा होना चाहिए कि उनकी शिक्षा ने उन्हें हर जगह तथा हर कार्य में आगे बढ़ने की क्षमता प्रदान की है। डॉ. एस. राधाकृष्णन को उद्धृत करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि, ‘‘सारी शिक्षा जहां एक ओर सत्य की खोज है; दूसरी ओर यह सामाजिक उत्थान का प्रयास है। आप सत्य को खोज सकते हैं परंतु आपको इसका उपयोग समाज की स्थिति में सुधार लाने के लिए करना चाहिए’’। राष्ट्रपति ने कहा कि जहां विद्यार्थियों को अपने सपनों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए,वहीं उन्हें अपने उस समाज तथा राष्ट्र की अपेक्षाओं को भी पूरा करने का प्रयास करना चाहिए जिसने उनको पोषित किया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा ने बड़े पैमाने पर देश के भविष्य को स्वरूप प्रदान किया है। जो देश निर्धनता, सामाजिक अव्यवस्था तथा आर्थिक संकटों से ग्रस्त थे, उन्होंने एक मजबूत शिक्षा प्रणाली के द्वारा निर्मित बेहतर ज्ञान के माध्यम से प्रगति की है। प्राचीन भारत में नालंदा तथा तक्षशिला तथा अन्य बहुत से प्रख्यात शिक्षापीठ थे। यह परिदृश्य आज बिल्कुल अलग है। हमारी संस्थाएं प्रख्यात एजेंसियों द्वारा तैयार की गई अंतरराष्ट्रीय सूची में पिछड़ रही हैं। परंतु हमारे कुछ प्रमुख संस्थानों को बेहतर स्थान प्राप्त होना चाहिए था। उन्हें अपनी उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए कारगर कार्यनीति अपनाने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि केवल बदलाव ही प्रगति ला सकता है। यह हमारी अकादमिक प्रणाली के लिए और भी सत्य है जहां अब बहुत सी पहलों की जरूरत है। मेधावी विद्वानों की तेजी से भर्ती करके; संकाय पुन: अभिमुखीकरण कार्यक्रमों का नियमित रूप से आयोजन करते हुए; संकाय विकास को बढ़ावा देकर; शिक्षा को आजीविका के रूप में अधिक आकर्षक बनाकर; सुझावों, विचारों तथा ज्ञान के सहयोग के लिए व्यापक पैमाने पर सूचना प्रौद्योगिकी नेटवर्कों का उपयोग करके;पाठ्यचर्या विकास और विद्यार्थियों के मार्गदर्शन में पूर्व छात्रों की विशेषज्ञता तथा अनुभवों का उपयोग करके तथा संस्थागत व्यवस्था के माध्यम से उद्योगों से सहयोग लेकर संकाय की कमी की समस्या दूर करनी होगी। राष्ट्रपति ने कहा कि इस वर्ष राष्ट्रपति भवन में आयोजित केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में यह तय किया गया था कि हर विश्वविद्यालय को एक उद्योग सहयोग सेल खोलनी चाहिए, जिसमें स्थानीय उद्योग, उद्योग संघों, पूर्व विद्यार्थियों तथा संकाय सदस्यों का प्रतिनिधित्व हो। यह सेल संयुक्त अनुसंधान, संकाय आदान-प्रदान तथा शिक्षापीठों और वृत्तिदान को प्रायोजित करने जैसे सहयोगात्मक क्रियाकलापों के लिए कैलेंडर तैयार करेगी। उन्होंने कहा कि ‘भारत में निर्माण’ जैसी पहलों की सफलता अच्छी गुणवत्ता के औद्योगिक उत्पादों के विनिर्माण पर निर्भर है और इसमें अकादमिक-उद्योग सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि एक विकसित राष्ट्र के रूप में हमें नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, पेयजल, स्वच्छता तथा शहरीकरण जैसे मुद्दों का समाधान ढूंढ़ना होगा। यह हमारे विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी है कि वे अपनी अनुसंधान प्राथमिकताओं को इन चुनौतियों के अनुरूप तय करें। हमारे विश्वविद्यालयों को रचनात्मक प्रयासों तथा अग्रणी प्रौद्योगिकीय विकास का सृजन स्थल बनना चाहिए। उन्हें अपने विद्यार्थियों को, अपनी जिज्ञासा को शांत करने तथा अपनी सृजनात्मकता को साकार करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। उन्हें इन युवा मस्तिष्कों में वैज्ञानिक नजरिया तथा जिज्ञासा की भावना का समावेश करना होगा। हमारे विश्वविद्यालयों को एक ऐसे परिवेश को समर्थन देना होगा जहां आम आदमी के अनूठेपन से उत्पन्न नवान्वेषी सुझावों को प्रोत्साहित किया जाए। राष्ट्रपति ने कहा कि एक नवान्वेषी संस्कृति को बढ़ावा देने तथा ‘नवान्वेषण में समावेशिता’ के नारे को काम करने योग्य ढांचे में परिणत करने के लिए उन्होंने पहले भी केंद्रीय संस्थानों से नवान्वेषी क्लब खोलने का आह्वान किया था। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि कई संस्थानों में ऐसा मंच सृजित किया जा चुका है। हमारे विश्वविद्यालयों को इन सुझावों को उपयोगी बिक्री योग्य उत्पादों में बदलने के लिए तकनीकी और अनुसंधान संस्थानों में नवान्वेषण गृहों के साथ जोड़ने का प्रयास करना होगा। राष्ट्रपति ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर पूरे देश के उच्च शिक्षा के लिए मानदंड स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभानी है। उन्हें अपने क्षेत्र में अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों को सशक्त करने के लिए उत्प्रेरक बनकर अकादमिक असंतुलन को कम करना होगा। इससे अधिक जरूरी यह है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों को अपने आसपास के क्षेत्रों में प्रसार कार्य के द्वारा शिक्षा की पहुंच बनाने के लिए सामाजिक सशक्तीकरण का साधन बनना होगा। उन्हें ज्ञान का प्रसार करके, नवान्वेषण को बढ़ावा देकर, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देकर तथा कौशल का विकास करके अपने क्षेत्र में लोगों तक पहुंचना होगा। उन्हें मेधावी युवाओं की सहभागिता को प्राप्त करना होगा, उनकी रोजगार-योग्यता को बढ़ाना होगा तथा समाज के वंचित वर्गों की ऊपर की ओर प्रगति की शुरुआत करनी होगी। उनके काम में जनता की जरूरतों तथा उनकी आकांक्षाओं का प्रतिबिंबन होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हाल ही में सरकार ने सांसद आदर्श ग्राम योजना की घोषणा की है जिसका उद्देश्य बेहतर बुनियादी सुविधाओं, अच्छे मानवीय विकास, अधिकारों और हकदारियों तक पहुंच,डिजिटल अवसंरचना के सृजन तथा विस्तृत सामाजिक संबद्धता के साथ मॉडल ग्रामों की स्थापना करना है। इस स्कीम में वित्तीय समावेशन, डिजीटल अवसंरचना का सृजन तथा स्वच्छ भारत अभियान शामिल किए गए हैं। उन्होंने कहा कि पिछले महीने राष्ट्रपति भवन में आयोजित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशकों के सम्मेलन में उन्होंने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों का आह्वान किया था कि वे कम से कम पांच-पांच गांवों को मॉडल गांवों में तब्दील करने के लिए कार्य शुरू करें। उन्होंने कहा कि वह अपेक्षा करते हैं कि तेजपुर विश्वविद्यालय सहित केंद्रीय विश्वविद्यालय भी यह कार्य करेंगे।
विश्वविद्यालय को, अपनाए गए गांवों की बहुत सी समस्याओं के समाधान के लिए जरूरत पड़ने पर, अन्य केंद्रीय संस्थानों से संसाधन व्यक्तियों और विशेषज्ञों को जुटाना होगा। उन्होंने विश्वास जताया कि सभी उच्च शिक्षा संस्थान और विशेषकर केंद्रीय विश्वविद्यालय एक ऐसे भारत को तैयार करने के काम से जुड़ेंगे जो प्रगतिशील और समतापूर्ण हो।
यह विज्ञप्ति 1800 बजे जारी की गई।