भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी कल (21 नवम्बर, 2015) राष्ट्रपति भवन में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय विश्व भारतविद्या सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे।
विदेश मंत्री, श्रीमती सुषमा स्वराज तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष, प्रो. लोकेश चन्द्र उद्घाटन समारोह में भाग लेंगे। इस अवसर पर, राष्ट्रपति मुखर्जी जर्मनी के प्रो. हेनरिच फ्रीहर वोन स्टीरनेक्रोन को ‘विशिष्ट भारतविद’ पुरस्कार प्रदान करेंगे।
राष्ट्रपति भवन द्वारा इस प्रकार के सम्मेलन को आयोजित करने का विचार श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा 7 से 11 मई, 2015 तक उनकी रूस यात्रा के दौरान पैदा हुआ। मास्को में अग्रणी भारतविदों के साथ बैठक के बाद राष्ट्रपति ने घोषणा की कि उन्हें राष्ट्रपति भवन में भारतविद्या पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने में खुशी होगी और उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद को इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने का निदेश दिया।
विश्व भर के लगभग 21 प्रख्यात भारतविद् भारत के आठ वरिष्ठ विद्वानों के साथ राष्ट्रपति भवन (राष्ट्रपति भवन का प्रतिष्ठित अतिथि स्कंध जिसमें आमतौर पर आने वाले विदेशी नेता ठहरते हैं) में रहेंगे तथा सम्मेलन के दौरान भारतीय संस्कृति और दर्शन से संबंधित विषयों पर विचार-विमर्श करेंगे।
इस सम्मेलन में ‘ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भारतविद्या अध्ययन’, ‘संस्कृत साहित्य—अतीत और वर्तमान’, ‘संस्कृत नाटक-सिद्धांत और व्यवहार’, ‘भारतीय दार्शनिक विचार’ और ‘भारतीय कला और वास्तुशिल्प’ जैसे शीर्षकों पर बृहत्त विचार-विमर्श होगा। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के पूर्व अध्यक्ष, डॉ. करण सिंह द्वारा उपनिषद पर विशेष व्याख्यान से इसका समापन होगा।
यह सम्मेलन एक अपूर्व मंच होगा जिसमें भारतविद्या की वर्तमान स्थिति, इसकी प्रासंगिकता तथा भारत और विदेश में सम्मुख संबंधित चुनौतियों पर भी विचारार्थ भारत सहित विश्व के सर्वोत्तम विद्वान उपस्थित होंगे। भारत और विदेश के विद्वान बड़ी संख्या में प्राचीन ग्रंथों अथवा चित्रकारी, मूर्तिकला, मुद्राशास्त्र और पुरावशेषों में निहित गहन भारतीय ज्ञान के अध्ययन के प्रति स्वयं को समर्पित कर रहे हैं। परंतु अभी भी ऐसे विषय हैं जिन्हें उजागर करने की जरूरत है। भारतविद्या पर यह सम्मेलन इस संबंध में हमारे पास उपलब्ध सभी का पुनरावलोकन करने के लिए आयोजित किया जा रहा है। इसमें वे विद्वान भाग ले रहे हैं जिन्होंने अपना समूचा जीवन भारत ज्ञान प्रणाली की विवेचना और पुन: विवेचना के प्रति समर्पित कर दिया है। उनके प्रयासों से ऐसे क्षेत्रों पर पूरा बल दिया जाएगा जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि विश्व समुदाय द्वारा भारत के योगदान को बेहतर मान्यता मिल सके।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने विदेश में कार्यरत उन श्रेष्ठ भारतविदों की पहचान हेतु वार्षिक रूप से ‘भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद विशिष्ट भारतविद् पुरस्कार’ का आरंभ किया है जिन्होंने भारत के दर्शन-शास्त्र, विचार, इतिहास, कला, संस्कृति, भारतीय भाषाओं, साहित्य, सभ्यता, समाज आदि में अध्ययन/शिक्षण/अनुसंधान में उत्कृष्ट योगदान दिया है। इस पुरस्कार के प्रथम विजेता प्रो. हेनरिच फ्रीहर वोन स्टीटेनक्रोन ने 1973 से 1998 तक लगभग 25 वर्ष ट्यूबिनगेन विश्वविद्यालय में भारतविद्या और धर्मों के तुलनात्मक इतिहास विभाग के निदेशक के रूप में कार्य किया है। वह एक सुविख्यात शोधकर्ता, अध्यापक, शिक्षाविद् और पुरालेखी हैं।
यह विज्ञप्ति 1235 बजे जारी की गई।