भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने अन्तर-धार्मिक तथा सांप्रदायिक हिंसा को ‘पागलपन’ करार देते हुए वेदना के साथ उत्कट् अपील करते हुए कहा कि शांति एवं सौहार्द तथा अहिंसा के प्रसार के सामूहिक प्रयास करने होंगे।
राष्ट्रपति, अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस (21 सितंबर, 2013) के अवसर पर राष्ट्रपति भवन में विभिन्न धर्मों के प्रमुखों की उपस्थिति में ‘अखिल भारतीय अहिंसा परमो धर्म जागरूकता अभियान’ के शुभारंभ के अवसर पर बोल रहे थे।
राष्ट्रपति ने कहा कि एक हिंसा मुक्त समाज की रचना के उद्देश्य से चलाया जाने वाला सर्वधर्म अभियान समीचीन और उपयुक्त है। अहिंसा तथा शांति हमारी सभ्यता की बुनियादी शिक्षा है। कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता। हर एक धर्म प्रेम, करुणा तथा सेवा की बात करता है। भारत एक ऐसी पांच हजार वर्ष पुरानी सभ्यता है जहां भगवान बुद्ध तथा भगवान महावीर ने अहिंसा का उपदेश दिया। भारत ने सदैव सभी आस्थाओं, विश्वासों, धार्मिक परिपाटियों तथा परंपराओं को आश्रय दिया है। जो देश अपनी माताओं, बहनों तथा पुत्रियों को सुरक्षा तथा सम्मान नहीं दे सकता, वह खुद को सभ्य नहीं कह सकता। अंतर धर्म तथा सांप्रदायिक हिंसा ‘पागलपन’ का प्रदर्शन है तथा हमें अपने बीच तुरंत विवेकशीलता को वापस लाना होगा।
अब समय आ गया है कि हम अपनी नैतिकता की दिशा का पुनर्निर्धारण करें। प्रत्येक हिंसा के साथ हम ईसा मसीह को बार-बार सूली पर चढ़ा रहे हैं। प्रत्येक हिंसा की घटना के साथ हम महात्मा गांधी की हत्या को दोहरा रहे हैं। हमारे समाज में हिंसा के लिए केवल कुछ लोगों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। हिंसा की घटनाओं के प्रति हमारी सामान्य उदासीनता तथा उसको सहन करना भी इसके लिए उतना ही जिम्मेदार है। हमारी निष्क्रियता ने एक ऐसा माहौल बना दिया है जहां हिंसा के बदले हिंसा होती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास, विजेताओं और शासकों से कहीं अधिक उन लोगों को याद रखता है जो शांति था अहिंसा की वकालत करते हैं। ईसा मसीह तथा भगवान बुद्ध ने सभ्यता को नई दिशा दी। उनके उपदेशों का सदियों से लाखों लोगों द्वारा पालन हो रहा है। तैमूरलंग, चंगेजखान तथा नाजियों का इतिहास में केवल उल्लेख मात्र है। अशोक के काल को हमारे इतिहास में ‘मानव के अशांत इतिहास में सबसे चमकदार अंतराल’ कहा गया है। क्योंकि वह चंड अशोक से धम्म अशोक हो गए। हमें इतिहास से प्राप्त सीख को नहीं भुलाना चाहिए। हिंसा से कुछ नहीं प्राप्त हो सकता। प्रेम और करुणा से सब कुछ पाया जा सकता है। कोई भी धर्म हिंसा को अनदेखा नहीं करता। धर्म के नाम पर हिंसा फैलाना पूरी तरह मानसिक विकृति है।
राष्ट्रपति ने कहा कि समय आ गया है कि अब हम कहें कि बस अब बहुत हो गया। मानवता इसे और अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकती। हमें मानवता और सभ्यता को बचाना होगा। इसे केवल संसद अथवा कानून लागू करने वाली मशीनरी द्वारा नहीं किया जा सकता। इसे समस्त समाज के सामूहिक प्रयास के दौरान प्राप्त करना होगा।
इस, अंतर-आस्था पहल की प्रशंसा करते हुए राष्ट्रपति ने ब्रह्माकुमारी तथा उनके सहयोगी संगठनों को इस अनुकरणीय कार्य के लिए प्रयास करने हेतु धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा उन्हें इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे अपने विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों के संचालन के दौरान अहिंसा के संदेश के प्रसार के लिए अन्य लोगों को भी अपने इस प्रयास में शामिल होने के लिए प्रेरित करेंगे।
इस अवसर पर बोलने वाले विभिन्न धार्मिक प्रमुखों में ब्रह्माकुमारी प्रमुख, 97 वर्षीय दादी जानकी, भारत में बहाई समुदाय के राष्ट्रीय ट्रस्टी, डॉ. ए.के. मर्चेंट, दिल्ली कैथोलिक आर्चडायोसिस के निदेशक (संचार), फादर डोमिनिक इमानुएल, जमायत-ए-इस्लामी हिंद के सचिव, रेव. एजाज़ अहमद असलम, भारत की महाबोधि सोसाइटी के भिक्खु प्रमुख, वेन. आर. सुमितानंद थेरो, इस्कॉन के उपाध्यक्ष, श्री ब्रजेन्द्र नंदन दास तथा जूडा ह्याम साइनागोग के प्रमुख पुजारी (रब्बी), रेव. ई. इसाक मालेकर शामिल थे। सभी प्रमुखों ने विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्द का आह्वान किया तथा इस बात पर जोर दिया कि सभी धर्म, शांति और अहिंसा के पक्षधर हैं।
यह विज्ञप्ति 1455 बजे जारी की गई।