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राष्ट्रपति ने कहा, असहिष्णुता और घृणा की बुरी भावनाओं से निपटने में विश्व के संघर्ष के दौरान भारत के उच्च मूल्यों का स्मरण करने से बेहतर उपाय और कोई नहीं है

राष्ट्रपति भवन : 21.11.2015

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (21 नवम्बर, 2015) राष्ट्रपति भवन में तीन दिवसीय विश्व भारतविद्या सम्मेलन का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि वह संपूर्ण विश्व के भारतीय इतिहास, कला और संस्कृति, विज्ञान और दर्शन के सभी भारतविदों और विद्वानों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। उन्होंने सदियों से सुदूर देशों में भारतीय ज्ञान प्रणाली की जानकारी, प्रचार-प्रसार और प्रोत्साहन में योगदान दिया है।

राष्ट्रपति ने जर्मनी संघीय गणराज्य के वरिष्ठ प्रो. हेनरिच फ्रीहर वोन स्टीटेनक्रोन को प्रथम विशिष्ट भारतविदपुरस्कार प्रदान किया। राष्ट्रपति ने कहा कि प्रो. स्टीटेनक्रोन के कार्य ने भारतविद्या संबंधी अध्ययन में गुणवत्ता और महत्त्व का संवर्धन किया है तथा इससे इस दिशा में भावी प्रयासों को काफी प्रोत्साहन मिलेगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारतविद्या मानव ज्ञान प्रयास का एक प्रमुख घटक है; यह मानव सभ्यता के विकास का ज्ञान तथा मानव जीवन की जटिलताओं की पहचान और उन्हें कम करने का विज्ञान है। पुरातन भारतीयों ने मानव चेतना का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं छोड़ा है चाहे वह धार्मिक और दर्शन की गहरी जानकारी अथवा खाद्य के चिकित्सीय रहस्यों को उजागर करना हो। उन्होंने आयुर्विज्ञान, राज्य शासन, विधि, समाज विज्ञान, धातुकर्म, भाषा, व्याकरण और सौंदर्यशास्त्र पर गहन अद्भुत ग्रंथों का पूरे विस्तार से अध्ययन किया और सारगर्भित ढंग से लिखा। कौटिल्य अर्थशास्त्र राज्य शासन पर एक विस्तृत आलेख है। मनुस्मृति एक विधिक ग्रंथ है जिसका व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है। स्वास्थ्यवर्धक भोजन के माध्यम से देह पोषण पर समान रूप से ध्यान दिया गया तथा पाक शास्त्र एक अत्यंत विकसित विषय बन गया।

राष्ट्रपति ने कहा कि वह भारत और उनके विदेशी साझीदारों के बीच भारतविद्या में शैक्षिक सहयोग की उम्मीद करते हैं। इससे हम इन मित्र देशों के साथ न केवल भारत के द्विपक्षीय संवाद के नए आयाम जोड़ेंगे, बल्कि सहयोग और परस्पर सद्भाव का एक और स्तर भी सृजित करेंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारतविद्या की लोकप्रियता, मानव चिंतन की सभी संभावित जिज्ञासाओं का समाधान करने के इसके व्यापक दायरे और क्षमता में निहित है। प्राचीन भारत के समाज में नूतन विचारों को अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया जाता था। यह मानना होगा कि भारत की प्राचीन परंपराओं ने कायम रहने और आगे बढ़ने के लिए आधुनिकता के श्रेष्ठ तत्त्वों को चुनकर ग्रहण करने में कोई संकोच नहीं किया। इसका इतिहास इसके लोगों के विचारों, कार्यों, रीति-रिवाजों और धार्मिक कृत्यों से परिपूर्ण और सजीव बना रहा। आधुनिकता की सभी अभिव्यक्तियों का यहां समान रूप से स्वागत किया गया।

राष्ट्रपति ने कहा कि आज हम अपूर्व घटनाओं का सामना कर रहे हैं जबकि विश्व मानव की असहिष्णुता और घृणा की बुरी भावनाओं से निपटने के लिए संघर्षरत हैं। ऐसी स्थिति में, उच्च मूल्यों, लिखित और अलिखित संस्कारों, कर्तव्यों और जीवन पद्धति जो भारत की आत्मा है, का स्वयं को स्मरण करवाने से बेहतर और कोई उपाय नहीं है। आधुनिक भारत की जटिल विविधता को बांधे रखने वाले सभ्यतागत मूल्यों को पुन: सुदृढ़ करने और उन्हें हमारी जनता और विश्व के बीच प्रोत्साहित करने का यही समय है।

राष्ट्रपति ने कहा कि मेरा उद्देश्य इस सभा को प्राचीनकाल पर हद से ज्यादा एकाग्र करवाना या हमें भारत के भव्य अतीत की पुरानी स्मृतियों की याद दिलाना नहीं है। इसकी बजाय वह उम्मीद करते हैं कि उनकी विद्वतापूर्ण वार्ता गौरवपूर्ण इतिहास में वर्तमान भारत को दृढ़ता से स्थापित करते हुए, उसकी भावी महानता के तर्कसंगत पथ को प्रकाशित करेगी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि आगामी तीन दिन के दौरान विचार-विमर्श उस तरीके पर बल देगी जिसके द्वारा बहुलवाद और बहुसंस्कृतिवाद भारतीय मानस के मूल में स्थित है। वे निश्चित रूप से भारतविद्या के क्षेत्र में हमारे ज्ञान के वर्तमान भंडार में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे।

यह विज्ञप्ति 1255 बजे जारी की गई।