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राष्ट्रपति जी ने राष्ट्रीय ज्ञान आयोग को उद्धृत करते हुए उच्च शिक्षा की स्थिति को ‘प्रशांत संकट जो कि गहराई तक पैठा है’ बताया।

राष्ट्रपति भवन : 22.11.2013

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (22 नवंबर, 2013) पश्चिम बंगाल में बर्दवान विश्वविद्यालय के चौंतीसवें दीक्षांत समारोह में भाग लिया।

इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने देश में उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता पर निराशा प्रकट करते हुए कहा कि आत्मतुष्टि के लिए कोई जगह नहीं है। भारत केवल ज्ञान अर्थव्यवस्था का विकास करके ही उच्च आर्थिक प्रगति पा सकता है तथा विश्व समुदाय का अग्रणी बन सकता है। यह उल्लेख करते हुए कि विश्वविद्यालयों में अनुसंधान एक उपेक्षित क्षेत्र है, राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की वर्ष 2006 की रिपोर्ट को उद्धृत किया जिसमें उच्च शिक्षा की स्थिति का ‘प्रशांत संकट जो गहराई तक पैठा है’ के रूप में उल्लेख किया गया है।

यह उल्लेख करते हुए कि देश के शिक्षकों अथवा विद्यार्थियों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, राष्ट्रपति ने कहा कि जरूरत अधिक समन्वित प्रयासों की है। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत लगभग 1800 वर्षों तक विश्व में उच्च शिक्षा का सिरमौर रहा तथा इस दौरान भारी संख्या में विदेशों से विद्यार्थी भारत आते रहे। यह उल्लेख करते हुए कि प्रौद्योगिकी ताकत है, राष्ट्रपति ने शिक्षकों का आह्वान किया कि वह अनुसंधान को प्राथमिकता दें।

यह विज्ञप्ति 1445 बजे जारी की गई।