भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (24 मई, 2013) टैगोर संस्कृति एवं सभ्यता अध्ययन केंद्र का उद्घाटन किया तथा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में प्रथम रवीन्द्रनाथ टैगोर स्मारक व्याख्यान दिया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हमें टैगोर की इस धारणा को आत्मसात् करना चाहिए कि ‘धन ज्ञान की पूर्व शर्त नहीं है।’ टैगोर का आदर्श ऐसा नैतिक नेतृत्व है जो ताकत अथवा धन से नहीं वरन् विचारों और सच्चाई से आता है। राष्ट्रपति ने कहा कि उनका मानना है कि हमारे समय की जरूरत यह है कि बुद्धिजीवी नैतिक मसलों पर चर्चा करें और लोगों को मार्गदर्शन दें।
राष्ट्रपति ने कहा कि वे हमारे अंदर घर कर रही नैतिक हृस की भावना से उद्वेलित हैं जो कि हमारे आम जीवन पर छाने लगी है। ऐसा लगता है कि आज हमारे सामने टैगोर जैसे आदर्श नहीं हैं जिनसे हम कुछ सीख सकें। कहा जाता है कि किसी भी समाज को आदर्शों की जरूरत होती है क्योंकि वे अनिश्चितता भरे समय में नैतिकता की दिशा को निर्धारित करते हैं। उन्होंने कहा कि हम एक खराब दौर से गुजर रहे हैं। इस तरह की नैतिक अनिश्चितता के दौर में हमें टैगोर जैसे महान बुद्धिजीवियों की ओर लौटना चाहिए और यह देखना चाहिए कि वे हमें क्या मार्गदर्शन देते हैं।
यह विज्ञप्ति 1425 बजे जारी की गई।