भारतीय विदेश सेवा के 2012 बैच के 36 अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों के एक समूह ने कल (24 मई, 2014) राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी से भेंट की।
इन अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि वे भारतीय राजनीति के एक बहुत ही विशेष पड़ाव पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वे विश्व के एक ऐसे सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रतिनिधि हैं जिसने हाल ही में मानव इतिहास में सर्वाधिक संख्या में अपने मतों का प्रयोग किया है।
संपूर्ण विश्व के साथ भारत के रिश्तों को पहले से कहीं अधिक प्रगाढ़ एवं मजबूत बताते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि विभिन्न देशों, समूहों और क्षेत्रों के साथ भारत के आर्थिक एवं कार्यनीतिक संपर्कों की सीमा तथा उनकी प्रगाढ़ता को व्यापक किया जाना चाहिए। भारत से, उभरते विश्व को दिशा देने में प्रमुख भूमिका निभाने की अपेक्षा की जा रही है। हमें भारत के अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक प्रभावशाली और सम्माननीय सदस्य के रूप में उभरने के लिए दीर्घकालीन कार्य योजना बनानी चाहिए। राष्ट्रपति ने युवा कूटनीतिज्ञों से कहा कि सकारात्मक नजरिया तथा देश के प्रति दृढ़ समर्पण उनका सबसे महत्त्वपूर्ण गुण होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत को अपनी पूर्ण क्षमता को प्राप्त करने तथा विश्व मंच पर भूमिका पाने के लिए घरेलू मोर्चे पर, आर्थिक और सामाजिक सूचकांकों, दोनों पर बेहतर प्रदर्शन करना होगा। विदेशों में भारत के प्रतिनिधि के तौर पर भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों को, भारत से विदेशों की ओर तथा विदेशों से भारत की ओर व्यापार तथा निवेश के आवागमन को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए, जिससे रोजगार का सृजन तथा गरीबी उन्मूलन होगा। उन्हें पूरे विश्व से बेहतर परिपाटियों को देश में में लाना होगा, जिससे हम अपनी प्रणालियाके तथा अपने कार्य करने के तरीकों में सुधार कर सकें।
राष्ट्रपति जी ने अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों का आह्वान किया कि वे अपने नजरिए में सक्रिय, परिस्थितियों के अनुसार कार्य करने में निर्णायक तथा अपनी पहलों में नवान्वेषी तथा सकारात्मक बनें। उन्होंने कहा कि उन्हें इन दायित्वों और चुनौतियों को ईमानदारी, समर्पण तथा पेशेवराना नजरिए से पूरा करना चाहिए। विदेश सेवा के अधिकारियों को सदैव सतर्क रहना चाहिए तथा नए विचारों और नवान्वेषण का स्वागत करना चाहिए।
यह विज्ञप्ति 1700 बजे जारी की गई।