भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (25 जून, 2013) सीरीफोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली में 16वीं भारतीय सहकारिता कांग्रेस का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यह सहकारी संस्थाएं ही हैं जिनमें लोकतंत्र तथा सबकी भलाई के आदर्श जीवंत होते हैं। उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि हमारे राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में इन आदर्शों की इससे पहले कभी भी इतनी जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि इसलिए इस कांग्रेस का विषय ‘‘सहकारी उद्यम बनाएं बेहतर विश्व’’ सर्वाधिक समीचीन है।
राष्ट्रपति ने कहा कि संभवत: सहकारी संस्थाएं हमारे देश के उन बहुत विस्तृत सुदूर स्थानों तक पहुंचने की सर्वाधिक उपयुक्त साधन हैं जहां पर निर्धन तथा वंचित तबका रहता है। उन्होंने कहा कि सहकारी संस्थाओं को हमारी अर्थव्यवस्था के एक ऐसे महत्त्वपूर्ण सेक्टर के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए जो कि उपेक्षित तथा कमजोर तबके को सेवा प्रदान करता है। उन्हें वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य बनाया जाना चाहिए तथा ग्रामीण स्वास्थ्य, शिक्षा ऋण, जल संचयन, सटीक कृषि, पर्यटन, संचार तथा आतिथ्य जैसे उन क्षेत्रों में कारगर ढंग से प्रयोग किया जाना चाहिए जिसमें सहकारी संस्थाएं अपना प्रभाव डाल सकती हैं। इन संस्थाओं को न केवल समावेशी विकास प्राप्त करने के हमारे प्रयासों में प्रमुखता मिलनी चाहिए बल्कि उनमें ‘सदस्यों द्वारा, सदस्यों के लिए तथा सदस्यों में से’ के सिद्धांतों पर स्थानीय रूप से संचालित होने का गुण मौजूद रहना चाहिए। ऊपर से नियंत्रण की पद्धति से बचा जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सहकारी संस्थाओं को समुचित रूप से प्रशिक्षित तथा उत्साही सदस्यों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए।
इस अवसर पर ‘कोऑपरेटिव सर्ज अहेड’ नामक पुस्तक जारी की गई तथा इसकी प्रथम प्रति राष्ट्रपति जी को भेंट की गई।
इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में केंद्रीय कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की मुख्य मंत्री तथा ओडिशा और गुजरात के राज्यपाल शामिल थे।