भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (27 अगस्त, 2016) राजगीर, नालंदा में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह को संबोधित किया तथा इसके नए परिसर की आधारशिला रखी।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष के रूप में उन्हें आशा है कि यह विश्वविद्यालय अतीतकालीन नालंदा की प्रतिष्ठा अवश्य प्राप्त करेगा। प्राचीन नालंदा की ऐसी अनेक परिपाटियां हैं जो नए नालंदा के लिए अनुकरणीय हैं। प्राचीन नालंदा की एक सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि यह एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय संस्थान था जहां विशेष रूप से अंतरएशियाई संबंध फले-फूले । हुएन्सांग, यीजिंग और ह्वीचाव जैसे चाइनीज भिक्षुओं ने नालंदा की यात्रा की, यहां वास, अध्ययन और अध्यापन किया। बाद में तिब्बत के विद्वान बौद्ध धर्म तथा ज्ञान की अन्य शाखाओं का अध्ययन करने के लिए नालंदा आते रहे। श्रीलंका सहित अन्य अनेक देशों के बौद्ध भिक्षु भी नालंदा आए जिनसे इस संस्थान पर धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभावों की विविधता प्रदर्शित होती है। आवागमन एक ही दिशा में नही था, नालंदा के बौद्ध भिक्षुओं ने अपना ज्ञान पूरे विश्व में प्रसारित किया तथा हुएन्सांग की भारत यात्रा से पहले यह चीन पहुंच गया था।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन नालंदा उच्च श्रेणी की परिचर्चा और विचार-विमर्श के लिए विख्यात था। यह मात्र भौगोलिक अभिव्यक्ति नहीं था बल्कि यह एक विचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित करता था। नालंदा ने मैत्री सहयोग, परिचर्चा, विचार-विमर्श तथा तक्षशिलता का संदेश प्रेषित किया। विचार-विमर्श और परिचर्चा हमारी परंपराओं और जीवन का अंग हैं।
राष्ट्रपति ने कहा यद्यपि अध्ययन के प्रमुख विषय बौद्ध ग्रंथ थे परंतु विभिन्न विचारधाराओं द्वारा बौद्ध धर्म की विवेचना, वेदों के अध्ययन आदि को भी महत्व दिया जाता था। आधुनिक नालंदा की शिक्षाएं यह सुनिश्चित करने के लिए है कि यह महान परंपरा अपने आस-पास नए जीवन और ऊर्जा को प्राप्त करे। विश्वविद्यालयों को उन्मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति के केंद्र बनने चाहिए। इन्हें एक ऐसा क्षेत्र बनना चाहिए जहां विचारों की विविध और भिन्न धाराएं समाहित हों। इस संस्थान में असहिष्णुता, संकीर्णता और घृणा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इसके अलावा इसे विविध विचारों, मतों और दर्शनों के सहअस्तित्व में अग्रणी के रूप में कार्य करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि नालंदा सभ्यताओं का केंद्र था तथा आधुनिक भारत को ऐसा ही बनना चाहिए। हमें अपनी खिड़कियां बंद नहीं करनी चाहिए और इसके साथ-साथ बाहर की हवाओं से गिरना भी नहीं चाहिए। हमें संपूर्ण विश्व से हवाओं का उन्मुक्त प्रवाह आने देना चाहिए और उससे समृद्ध बनना चाहिए। हमें संकीर्ण मानसिकताओं और विचारों को पीछे छोड़कर मुक्त विचार-विमर्श और परिचर्चाओं को अपनाना चाहिए।
यह विज्ञप्ति 1640 बजे जारी की गई।