भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (27 अक्तूबर 2014) नई दिल्ली में ‘लोक लेखापरीक्षा के माध्यम से सुशासन और जवाबदेही को प्रोत्साहन’ विषय पर 27वें महालेखाकार सम्मेलन का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि लेखापरीक्षा साध्य की दिशा में, एक साधन है न कि स्वयं में एक साध्य। लेखापरीक्षा के निष्कर्ष सुशासन के मापदंड होते हैं, परंतु इनकी उपयोगिता तभी सिद्ध होती है जब सभी भागीदार विशेषकर कार्यपालिका, विधायिका तथा नागरिक इन निष्कर्षों की विश्वसनीयता पर भरोसा करें तथा शासन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए इनका प्रयोग करें। इससे लोक लेखापरीक्षकों पर खूब परिश्रम और स्वतंत्रतापूर्वक,पेशेवराना ढंग से लेखा परीक्षा करने तथा ईमानदारी और संतुलित तरीके से रिपोर्ट देने का भारी दायित्व आ जाता है। लेखापरीक्षक तथा लेखापरीक्षित संस्था,दोनों को यह समझना होगा कि लेखापरीक्षा का अंतिम उद्देश्य शासन कार्यनीतियों के कार्यान्वयन में सुधार लाना है। इस प्रयोजन के लिए लेखापरीक्षा को सुधार का एक साधन माना जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि जनसेवा की सुपुर्दगी के लिए प्रयुक्त मंच लेखापरीक्षा के कार्य को प्रभावित करते हैं। आज ‘डिजीटल भारत’ के सरकारी कामकाज का आधार बनने के कारण लेखापरीक्षा की पारंपरिक पद्धतियों में बदलाव आवश्यक है। आपको लेखापरीक्षा के कौशल,लागत और दायरे को बढ़ाने के लिए ई-शासन द्वारा प्रदान किए जा सकने वाले फायदे का लाभ अपनी मानक प्रचालन प्रक्रियाओं में पुन:सुधार करके भली-भांति उठाना होगा। उन्होंने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि राष्ट्रीय लोकवित्त के प्रहरियों के तौर पर, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक संस्था की राष्ट्रीय विकास तेज करने में एक सकारात्मक और प्रमुख भूमिका है।
यह विज्ञप्ति1500 बजे जारी की गई।