भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (29अक्तूबर, 2014) राष्ट्रपति भवन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों के दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। यह वर्तमान राष्ट्रपति काल के दौरान राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों का दूसरा सम्मेलन तथा इन संस्थाओं के कुलाध्यक्ष के रूप में अपने पद के अनुरूप केन्द्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा भारतीय विज्ञान, शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों के साथ राष्ट्रपति द्वारा किया जाने वाला नियमित, सघन संवाद का भाग है।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने सभी राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से समाज में अपनी भागीदारी को प्रगाढ़ और व्यापक बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि उनके कार्य में हमारे लोगों की आवश्यकताएं और आकांक्षाएं झलकनी चाहिए। हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा आरंभ की गई सांसद आदर्श ग्राम योजना के मॉडल पर, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को कम से कम एक गांव को गोद लेना चाहिए और उसे पूरे देश के लिए अनुकरणीय आदर्श मॉडल गांव के तौर पर रूपांतरित करना चाहिए। उन्हें जरूरत पड़ने पर मॉडल गांवों के रूपांतरण से जुड़े विविध मुद्दों के समाधान के लिए अन्य केंद्रीय संस्थानों के विशेषज्ञों की सेवाएं लेनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को विशेषकर सरकार द्वारा शुरू की गई ‘भारत में निर्माण’ और ‘डिजिटल इंडिया’ पहल के मद्देनजर देश के डिजीटल अंतराल, आय असमानता और ग्रामीण-शहरी अंतर को समाप्त करने के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान ग्रामीण नवान्वेषण, स्थानीय रोजगार तथा विश्व स्तरीय विनिर्माण के बीच संपर्क की शक्ति बन सकते हैं और उन्हें बनना चाहिए।
राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को अनुसंधान और नवान्वेषण में उनके योगदानों के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि यदि समुचित वातावरण प्रदान किया जाए तो हमारे वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीविद दुनिया में अव्वल हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान भारत में गुणवत्तापूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा प्रदान करने में अग्रणी बनकर उभरे हैं। अब आवश्यकता राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को देश-विदेश के संस्थानों के साथ सहयोग करने तथा संपर्क के अनेक स्तरों पर उनके साथ अधिक से अधिक संबंध स्थापित करने की है।
राष्ट्रपति ने कहा कि आर्थिक विकास और शैक्षिक प्रगति के बीच सहज संबंध है। हमारे इंजीनियर और वैज्ञानिक राष्ट्रीय विकास की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान संदर्भ में, शहरीकरण, जलापूर्ति, स्वच्छता,पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा प्रदान करने के लिए नवान्वेषी समाधानों की आवश्यकता है। हमारे इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को नये युग की समस्याओं का समाधान नए युग के उत्तरों के लिए तत्पर रहना चाहिए। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे तकनीकी संस्थानों को विश्व स्तरीय और पेशेवर रूप से सक्षम ऐसे इंजीनियर तैयार करने चाहिए जो न केवल भारत को प्रौद्योगिकी के नए शिखर तक ले जाएं बल्कि हमारे देशवासियों के जीवन स्तर को सुधारें।
राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों को साहसिक, नवान्वेषी और प्रेरक नेतृत्व प्रदान करना चाहिए। प्रत्येक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान को सभी शैक्षणिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में गुणवत्ता आश्वासन और सततता संबंधी उपायों को संस्थागत बनाना चाहिए। प्रमुख महत्वपूर्ण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण संकाय, नवान्वेषण और अनुसंधान, शिक्षण में उत्कृष्टता, उद्योग संबद्धता तथा सामाजिक दायित्व को शामिल करना होगा। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को देश की सर्वोत्तम इंजीनियरी प्रतिभा को आकर्षित करना तथा उन्हें विशिष्ट इंजीनियरी, शोधकर्ताओं,वैज्ञानिकों और शिक्षकों में बदलना होगा। राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से पूर्व विद्यार्थियों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए भी कहा ताकि उनकी मातृ संस्थाओं की प्रगति, जीवंतता और प्रगतिशीलता में उनका पूरा योगदान हासिल किया जा सके।
इस बात का उल्लेख करते हुए कि देश के अधिकांश केन्द्रीय संस्थान सभी स्तरों पर शिक्षकों की घोर कमी का सामना कर रहे हैं,राष्ट्रपति ने कहा कि नॉर्वे और फिनलैंड की उनकी हाल की यात्रा के दौरान, उन्होंने भारतीय समुदाय के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों से पूर्णकालिक या अल्पकालिक आधार पर नियमित,अतिथि या अनुबद्ध रूप में भारतीय कैंपस का हिस्सा बनने का आग्रह किया। उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय उच्च शैक्षिक संस्थानों के विचार-विमर्श से ऐसे आदान-प्रदान के कार्यान्वयन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करेगा।
यह विज्ञप्ति1210 बजे जारी की गई।