भारत के राष्ट्रपति, ने आज (29 नवम्बर 2013) विज्ञान भवन, नई दिल्ली में संघ लोक सेवा आयोग के 87वें स्थापना दिवस के अवसर पर ‘शासन एवं लोकसेवा’ विषय पर चतुर्थ वार्षिक स्थापना दिवस व्याख्यान दिया।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे विकास कार्यक्रमों की सफलता लोक प्रशासन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। लोग अपनी जरूरतों की कारगर ढंग से पूर्ति के लिए पारदर्शी तथा पेशेवर रूप से दक्ष प्रशासन चाहते हैं। वे अपनी शिकायतों का त्वरित समाधान चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कल्याण उपायों का लाभ बिना रुकावट निर्धन से निर्धन व्यक्ति तक पहुंचे। इसके लिए सुशासन की व्यवस्था अपनाकर सेवा सुपुर्दगी में सुधार की जरूरत है। आर्थिक, विकास, समता तथा समाज के विभिन्न वर्गों के सामाजिक सहभागिता के लिए शासन अत्यावश्यक है। निष्पक्ष तथा अराजनीतिक नौकरशाही से शासन मजबूत होता है तथा इससे आर्थिक विकास और सामाजिक बदलाव की दिशा में योगदान मिलता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि विभिन्न देश सुशासन को उच्च प्राथमिकता प्रदान कर रहे हैं क्योंकि इसका सामाजिक कल्याण और समावेशी विकास के साथ अनन्य संबंध है। सुशासन का अभाव समाज में बहुत सी खामियों का मूल कारण माना गया है। यह नागरिकों को उनके सामाजिक तथा आर्थिक अधिकारों से वंचित करता है। कानून का शासन, सहभागितापूर्ण निर्णय लेने का ढांचा, पारदर्शिता, जवाबदेही, त्वरित कार्यशीलता, समता तथा समावेशिता जैसे मूलभूत मानदंड सुशासन की विशेषता होते हैं। उन्होंने कहा कि देश का लोक प्रशासन इन्हीं सिद्धांतों पर संचालित होना चाहिए। इसके लिए लोक सेवाओं के नजरिए के पुन: अभिविन्यास की जरूरत है।
इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में श्री नारायणसामी, प्रधानमंत्री कार्यालय तथा कार्मिक, लोकशिकायत एवं पेंशन मंत्रालय में राज्यमंत्री तथा प्रो. डी.पी. अग्रवाल, अध्यक्ष संघ लोक सेवा आयोग शामिल थे।
यह विज्ञप्ति 1330 बजे जारी की गई।